हर काम का सफ़लतम प्रबंधन कर पाना हर व्यक्ति के बस की बात नहीं है । अच्छे अच्छे प्रबंधक भी कभी कभी उलझ जाते हैं और उनके काम असफ़ल हो जाते हैं । लेकिन एक व्यक्ति की प्रबंधन कला की प्रशंसा किये बिना मैं रह नहीं सकता । पिछले पचास वर्ष में से लगभग चालीस वर्ष से इस व्यक्ति ने अपने श्रेष्ठतम प्रबंधन से सारे विश्व को चकाचौंध कर रखा है । फ़िल्म जगत के अभिनेता अमिताभ बच्चन के बारे में यह टिप्पणी मैं कर रहा हूं । आकाशवाणी में उद्घोषक के पद के लिये नहीं चुने जाने के साथ साथ शुरू के जीवन में असफ़लता का कडवा अनुभव लेकर बाद में अपनी सफ़लता को जिस तरह से अमिताभ बच्चन ने स्वयं संचालित किया है, वह अद्वितीय ही है ।
समय के साथ जिस तरह से अपने हित को ध्यान में रखकर अमिताभ बच्चन ने सब कुछ बदलते रहने की कला में महारत हासिल की है, वह कोई दूसरा नहीं कर सका है । यह सभी को विदित है कि अमिताभ बच्चन वास्तव में अपने जीवन के हर क्षण में “अभिनय” को ही महत्व देते रहे हैं । उनका कोई भी कार्य पूर्व नियोजन के बिना नहीं होता और कोई भी प्रतिक्रिया सोचे-समझे अभिनय के बिना नहीं होती । नाटकीयता उनमें कूट कूट कर भरी है । यह किसे मालूम नहीं है कि जिन जिन फ़िल्मी हस्तियों ने अमिताभ बच्चन को स्थापित करने में मदद की थी, उन सबको बाद में पूरी तरह से दुर्लक्षित करते रहे हैं अमिताभ बच्चन । फ़िल्म अभिनेता-निर्माता महमूद से तो अनेक बार फ़ोन पर भी बात नहीं की थी अमिताभ बच्चन ने ।
फ़िल्म निर्माता प्रकाश मेहरा को भी बहुत दुर्लक्षित किया था । फ़िल्म वितरक सरदार मोहन सिंह को तो पहचानने तक से मुकर गये थे और उनसे मिलने से भी मना कर दिया था । ऐसे कुछ और भी नाम हैं । स्वयं को “बिग बी” घोषित करने वाले अमिताभ बच्चन ने अपने आपको पूरी सदी का “महानायक” भी घोषित कर दिया । करोडों रुपये भी बैंकों से और ए0बी0सी0एल0 के नाम पर लोगों से ले लिये और वापस भी नहीं किये । राजनीति के क्षेत्र में भी अनेक दल बदलते रहे हैं अमिताभ बच्चन, केवल अपने हित को ध्यान में रखते हुए । कभी राजीव गांधी के निकटतम रहने वाले अमिताभ बच्चन ने मौका मिलते ही बाला साहब ठाकरे जी से निकटता बना ली, फ़िर मुलायम सिंह यादव जी से मिल गये, फ़िर अमर सिंह जी का दामन थाम लिया, उसके बाद नरेन्द्र मोदी जी की शरण में आ गये ।
अति धनवान और रसूखदार अनिल अम्बानी जी के निकटतम भी रहे और फ़िर मुकेश अम्बानी जी के घर पर बारातियों को खाना खिलाने वाले की भूमिका में भी प्रस्तुत हो गये अमिताभ बच्चन । अपने पुत्र की सगाई करिश्मा कपूर से तोडने और फ़िर ऐश्वर्या राय से उसका विवाह करवाने तक अमिताभ बच्चन ने अपनी विशेष भूमिका निभाई । मैं आज तक यह नहीं समझ पाया कि हज़ारों लोगों को यह कैसे मालूम पड जाता है कि किस दिन, किस समय अमिताभ बच्चन अपने घर की बालकनी में खडे होकर दर्शन देने वाले हैं ।
सादगी और सीधे पन का सफ़लतम अभिनय करने में कुशल हैं अमिताभ बच्चन । वे बडी विनम्रता का दिखावा करते रहते हैं, लेकिन उनके आस पास भी कोई भी व्यक्ति उनकी मर्ज़ी के बिना पहुंच नहीं सकता क्योंकि वे सुरक्षाकर्मियों से घिरे रहते हैं । अभी राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार उपराष्ट्रपति महोदय ने वितरित किये । अमिताभ बच्चन को दादा साहब फ़ालके पुरस्कार प्रदान किया जाना था, परंतु वे नहीं गये । बीमारी का कारण बता कर अमिताभ बच्चन ने अन्य सब पुरस्कृत कलाकारों के साथ पुरस्कार लेने से मना कर दिया, और फ़िर अलग से समारोह आयोजित करवा कर राष्ट्रपति जी के हाथ से अकेले पुरस्कार ग्रहण कर लिया ।
मुझे याद नहीं आता कि राष्ट्रीय पुरस्कार समारोह में कभी किसी भी पुरस्कृत कलाकार ने विशेष रूप से भाषण दिया हो परंतु अमिताभ बच्चन ने अपनी चिर परिचित “विनम्रता” का दिखावा करते हुए भाषण दे दिया । उनकी असीमित प्रशंसा करने के लिये विशेष उद्घोषिका ने अनेक पृष्ठ का आलेख भी पढ डाला और अमिताभ बच्चन के जीवन पर एक फ़िल्म भी वहां दिखा दी गई । राजकपूर, अशोक कुमार, लता मंगेश्कर, मन्ना डे, नौशाद आदि को भी दादा साहब फ़ालके पुरस्कार मिल चुके हैं, परंतु ऐसा विशेष आयोजन नहीं हुआ ।
अमिताभ बच्चन पहले से निर्धारित कर लिया करते हैं कि कब वे फ़िल्म करेंगे, कब टेलीविज़न कार्यक्रम में भाग लेंगे और कब विज्ञापन करेंगे । एक बात अवश्य प्रशंसनीय है कि वे समय के बहुत पाबंद हैं । अगर वे अपने प्रबंधन में कहीं असफ़ल हुए हैं तो केवल अपने बेटे को लेकर, जिसे अनेक प्रयास करके भी वे सफ़ल अभिनेता के रूप में स्थापित नहीं कर पाये । अन्यथा यह एक निर्विवादित सच्चाई है कि अमिताभ बच्चन जैसी प्रबंधन की ऐसी कुशल कला अन्य किसी भी व्यक्ति के पास नहीं है ।
किशन शर्मा
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