दिल्ली सरकार ने 3 मार्च 2017 को न्यूनतम मज़दूरी में 11.1 फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी की थी। लेकिन, इसके विरोध में कुछ लोगों ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर दी थी। और उच्च न्यायालय ने 4 सितंबर 2018 को दिल्ली सरकार के फ़ैसले पर रोक लगा दी थी। दिल्ली सरकार ने इस रोक के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर दी थी।
क़रीब 2 साल यह मामला अदालतों में लंबित था और अब गुरुवार को दिल्ली सरकार के हक़ में सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला सुनाया है। उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के फ़ैसले पर रोक लगाकर न्यूनतम मज़दूरी बढ़ाने का आदेश दिया है। साथ ही पीठ ने इस मामले में दायर की गई अन्य अर्ज़ियों की त्वरित सुनवाई का आदेश भी दिया है। यह याचिकाएं विभिन्न नियोक्ताओं और फैक्टरी मालिकों ने दायर की हैं।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दिल्ली में स्नातक कर्मचारियों को 19,572 रुपए प्रति माह से कम वेतन नहीं दे सकते। सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले से क़रीब 50 लाख़ कर्मचारी लाभान्वित होंगे। हालांकि, जस्टिस यू यू ललित की पीठ ने अपने आदेश में कहा है कि कर्मचारियों को कोई एरियर नहीं दिया जाएगा। उल्लेखनीय है कि दिल्ली सरकार के श्रम विभाग ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ही न्यूनतम मज़दूरी बढ़ाने के लिए चार सदस्यीय मूल्य संग्रह समिति का गठन किया था। समिति ने सभी छह श्रेणियों में 11.1 फ़ीसदी तक वेतन बढ़ाने का प्रस्ताव दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल सरकार को न्यूनतम वेतन वृद्धि के लिए नई अधिसूचना जारी करने का आदेश दिया है। बता दें कि दिल्ली सरकार ने अनस्किल्ड लेबर को 14,842 और स्किल्ड लेबर को 17,991 रुपए महीनों की न्यूनतम मज़दूरी तय की है, तो वहीं सेमी स्किल श्रमिकों के लिए 16,341 प्रति महीना तय किया गया है। और ग्रेजुएट कर्मचारियों के लिए न्यूनतम मज़दूरी 19,572 रुपए प्रति महीना तय किया गया है। नॉन मैट्रीकुलेट को 16,341 रुपए प्रति महीना और मैट्रीकुलेट लेकिन बिना ग्रेजुएशन वालों को 17,991 प्रति महीना दिया जाएगा। इस नए न्यूनतम मज़दूरी दर को लागू करने के लिए दिल्ली सरकार जल्द ही अधिसूचना जारी करेगी।