यूं तो चारों तरफ़ यही शोर सुनाई देता रहता है कि देश में भयंकर गरीबी है, लोग तडप-तडप कर जीने पर मजबूर हैं, अनेक लोग गरीबी से परेशान होकर आत्महत्या कर रहे हैं । परंतु बहुत गौर से देखने पर भी मुझे आमतौर पर कहीं ऐसी गरीबी नज़र नहीं आती। अनगिनत लोग जिस प्रकार रुपये खर्च करते रहते हैं, उससे यह बात सच नहीं लगती। अभी दिवाली के दौरान करोडों रुपये के पटाखे फ़ोडकर लोगों ने अपनी “गरीबी” का प्रमाण पेश कर दिया। उच्चतम न्यायालय और सरकार के आदेशों के बावजूद रात भर पटाखों की कानफ़ोडू आवाज़ें अनेक दिन तक परेशान करती रहीं । इस बार तो कुछ ज़्यादा ज़ोरदार आवाज़ वाले पटाखे भी लोगों ने फ़ोडे, जबकि कहा यह जा रहा था कि इस बार “ग्रीन” पटाखों से दीपावली मनाई जायेगी और ध्वनि प्रदूषण बहुत कम होगा। कम से कम मैं तो 75वें वर्ष की आयु में रात रात भर भयंकर आवाज़ों के कारण सो नहीं सका । इसके साथ अनेक स्थानों पर ज़ोर ज़ोर से ड्रम बजाकर कुछ लोग दिवाली की खुशियां मना रहे थे । दूसरों को तकलीफ़ हो, तो हो; उन्हें क्या?
वे तो अपनी खुशी का इज़हार करने में व्यस्त रहे । पुलिस को ऐसी आवाज़ें सुनाई नहीं देतीं । फ़ोन करने पर या तो कह दिया जाता है कि “आदमी भेजते हैं” और कभी कोई आदमी भेजा नहीं जाता, या “कहां आवाज़ आ रही है, उसका पूरा पूरा विवरण और पता बताओ” कहकर टाल दिया जाता है । इसके पीछे एक मुख्य कारण यह भी होता है कि अधिकांश मामलों में कोई न कोई राजनेता कहीं न कहीं बैठा होता है, जिसके कारण कानून-नियम, सब कुछ, कोई महत्व नहीं रखते । गणेश उत्सव और दुर्गा पूजा के दौरान अधिकांश राजनेता ही उत्सव आयोजित करवाते हैं और् रात में 12 या 1 बजे तक ज़ोर ज़ोर से संगीत की आवाज़ से देवी-देवताओं को आकर्षित करते रहते हैं । उनके लिये ध्वनि प्रदूषण के नियम कोई अस्तित्व नहीं रखते । मैंने स्वयं अनेक बार पुलिस स्टेशन फ़ोन करके शिकायत की, लेकिन अधिकांश समय कोई कार्रवाई तब तक नहीं हुई, जब तक पुलिस आयुक्त महोदय से ही शिकायत नहीं की गई।
अश्लील गानों को डी0जे0 की ज़बरदस्त आवाज़ के माध्यम से बजा कर देवी देवताओं की आराधना की जाती है । पूछने पर सफ़ाई दी जाती है कि छोटे छोटे बच्चे भी इन गानों पर ही डांस करने की मांग करते रहते हैं। यातायात के क्षेत्र में तो नियम-कानून कोई महत्व रखते ही नहीं । जिसकी जैसी मर्ज़ी हो, वह वैसे ही वाहन चलाता रहता है। मैंने एक बात महसूस की है कि आजकल के युवाओं सहित अधिकतर लोगों के मन में से पुलिस और मौत का डर गायब हो गया है। यह भी देखा गया है कि हर उम्र की अधिकांश महिलाएं तो नियम-कानून मानना अपना अनादर समझती हैं । मैं सडक दुर्घटनाओं के लिये सडकों की बुरी हालत, लोगों की लापरवाही, निडरता और महिलाओं को ज़िम्मेदार मानता हूं । मेरा निश्चित मत है कि अगर महिलाएं चाहें तो अधिकांश लोग नियम-कानून का पालन करने लग जायेंगे। महिलाओं को केवल इतना करना होगा कि वे स्वयं भी वाहन चलाते समय नियम-कानून का पालन करें और अपने साथी वाहन चालक को भी नियम-कानून का पालन करने के लिये प्रेरित करें।
अगर वे अपने साथी वाहन चालक को नियम-कानून का पालन करने के लिये ज़ोर देकर बाध्य करने लगें, तो अधिकांश वाहन चालक नियम–कानून का पालन करने लगेंगे और दुर्घटनाओं की संख्या बहुत कम होने लगेगी । हमारे देश में नियम-कानून के मुकाबले धन का अधिक महत्व हो गया है, इसलिये कोई भी व्यक्ति डरता नहीं है । 50 या 100 रुपये के नोट जेब में इस तरह रखकर अधिकांश लोग वाहन चलाते हैं कि यदि कहीं, कभी, किसी पुलिसकर्मी ने रोक लिया, तो उसके हाथ में वह नोट रखकर बिना रुके, बिना कुछ कहे-सुने, वहां से आगे बढ सकें । भारत के किसी बडे शहर से भी छोटे राष्ट्र, भूटान में नियम-कानून का पालन करते हुए सब लोगों को देखकर वास्तव में हैरानी हुई थी । कोई व्यक्ति न उल्टी दिशा में वाहन चलाते हुए दिखाई दिया, न दूसरे वाहन से आगे जाने के लिये दाएं-बाएं वाहन चलाकर “लाइन” तोडना, न “सिग्नल” की अनदेखी करना, और न कहीं भी कैसे भी वाहन रोक देना या खडा कर देना कभी भी दिखाई दिया । भूटान जैसे देश से यातायात सहित सभी नियम-कानून का पालन करने के क्षेत्र में हम बहुत कुछ सीख सकते हैं । परंतु भारत के नागरिकों की सबसे बडी विशेषता ही यह है कि वे बचपन से ही सीख जाते हैं, कि किस प्रकार की जाती है, नियमों-कानूनों की अवहेलना ।
इस लेख के लेखक हैं- किशन शर्मा, 901, केदार, यशोधाम एन्क्लेव, प्रशांत नगर, नागपुर – 440015