कहाँ चले जाते हैं, नये नोट ?

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जब भी सरकार की तरफ़ से यह घोषणा होती है कि रिज़र्व बैंक नये नोट जारी कर रहा है, तब तब मैं नये नोट रखने के अपने शौक के कारण बैंकों के चक्कर लगाने लगता हूं। हर बार केवल निराशा ही हाथ लगती है। रिज़र्व बैंक से लेकर इंडियन ओवरसीज़ बैंक, इलाहाबाद बैंक, बैंक ऑफ़ बडोदा, स्टेट बैंक, महाराष्ट्र बैंक आदि की विभिन्न नगरों की अनेक शाखाओं में केवल चक्कर ही लगाने का क्रम चलता रहता है, हर बार। कहीं भी नये नोट मिलते ही नहीं। एक रुपये, दस रुपये, पचास रुपये, सौ रुपये, दो सौ रुपये, और दो हज़ार रुपये के नोट कहीं नहीं मिलते । सौ रुपये के सिक्के भी अधिक कीमत पर कोई कोई व्यक्ति देने की बात कर देता है। परंतु कोई बैंक अपने नियमित ग्राहकों को नये नोट कभी भी दे नहीं पाता । हां, दिवाली के समय, कुछ बैंक अपने चिर-परिचित पुराने ग्राहकों को कुछ नये नोट सीमित मात्रा में छुपा कर दे देते हैं।

जब रिज़र्व बैंक के गवर्नर मेरे मित्र रघुराम जी थे, तब एक रुपये के नये नोट प्राप्त करने के लिये मुझे उनसे भी प्रार्थना करनी पडी थी । रिज़र्व बैंक के एक उच्चतम अधिकारी ने मुझे पत्र लिखकर सूचित किया कि मैं रिज़र्व बैंक की नागपुर शाखा से संपर्क करूं। वहां के एक अधिकारी ने लिखित उत्तर दिया कि उनके पास एक रुपये के नये नोट नहीं हैं, और मैं स्टेट बैंक, इलाहाबाद बैंक या बैंक ऑफ़ बडोदा से संपर्क करूं । मैं स्वयं इन बैंकों में गया । वहां के अधिकारियों ने बहुत सम्मान देते हुये मुझसे बातचीत की परंतु नये नोट किसी ने नहीं दिये।
हाल ही में पचास रुपये के नये नोट जारी होने का समाचार पढा था। आजतक मैं वो नोट देख नहीं पाया हूं।

रिज़र्व बैंक के नये गवर्नर के हस्ताक्षर से कुछ नये नोट भी जारी किये गये हैं, परंतु मैं उनके दर्शन अभी तक नहीं कर पाया हूं । पांच सौ रुपये के नोट भरे पडे हैं लगभग सभी बैंकों की शाखाओं में, परंतु दो हज़ार रुपये के नोट कहीं नहीं मिलते । कभी कभार, पांच-दस नोट कोई बडी महरबानी करते हुए दे देता है । दो रुपये और पांच रुपये के नोट तो एक युग से दिखाई ही नहीं दिये हैं । मुझे बचपन से ही नये नोट रखने और कुछ नोट जमा करने का शौक रहा है । जब आकाशवाणी में नौकरी करने लगा तो शुरू शुरू में मुझे रिज़र्व बैंक का ही चैक दिल्ली, जयपुर, लखनऊ, भोपाल और नागपुर में मिला करता था । आकाशवाणी के कारण मेरा नाम लोग जानते थे और अनेक बैंक कर्मचारी-अधिकारी बहुत आदर दिया करते थे । तब मुझे नये नये नोट मिल जाया करते थे । फ़िर स्टेट बैंक से नाता जुडा, तब भी अनेक परिचित अधिकारी-कर्मचारी मुझे नये नोट दे दिया करते थे । लेकिन धीरे धीरे यह क्रम रुकता चला गया और आज स्थिति यह हो गई है कि विभिन्न बैंकों की अनेक शाखाओं के अधिकारी-कर्मचारी मुझे जानते भी हैं, आदर भी देते हैं, परंतु नये नोट नहीं दे पाते।

बार बार प्रार्थना करने पर यदा कदा कुछ नये नोट छुपा कर दे दिये जाते हैं, परंतु उनके पास भी एक रुपये, दो रुपये, पांच रुपये, दस रुपये, बीस रुपये, पचास रुपये के नये नोट होते ही नहीं । सौ रुपये, दो सौ रुपये, पांच सौ रुपये और दो हज़ार रुपये के कुछ ही नोट कभी कभार मुझे मिल जाते हैं । अधिकतर ऐसे नोट वो होते हैं जो घूमते घूमते उनके पास आ जाते हैं । वास्तव में वो सब प्रयोग में आ चुके नोट ही होते हैं । बिल्कुल नये नोट उनके खज़ाने में होते ही नहीं। हर वर्ष मैं प्रतीक्षा करता रहता हूं दिवाली के समय की, जब उम्मीद रहती है कि शायद अलग अलग राशि के कुछ नये नोट मुझे मिल जायें ।

एक बैंक अधिकारी ने एक बार मुझे बातचीत में बताया था कि जब भी सीमित संख्या में कोई नये नोट आते हैं तो बैंक के अधिकारी-कर्मचारी सबसे पहले उन्हें आपस में बांट लेते हैं । ग्राहकों के लिये नोट बचते ही नहीं क्योंकि बहुत सीमित संख्या में ऐसे नोट आते हैं । मैंने यह भी सुना था कि बहुत बडे बडे उद्योगपति, व्यवसायी, राजनेता, प्रशासनिक अधिकारी, पुलिस अधिकारी तथा कुछ ऐसे “एजेंट” जो नये नोट बेचने का कारोबार करते हैं, वे किसी भी राशि के नये नोट जारी होते ही, उनपर अपना कब्ज़ा कर लेते हैं । यह बात किसी हद तक मुझे सच भी नज़र आती है क्योंकि कभी कभी इन अदृष्य रहने वाले नये नोटों की गड्डियां कुछ ऐसे चुने हुए लोगों के पास दिखाई दे जाती हैं । वास्तविकता क्या है, यह तो मैं नहीं जानता, परंतु यह प्रश्न मेरे मस्तिष्क में हमेशा घूमता ही रहता है कि आखिर कहां चले जाते हैं, नये नोट ?

किशन शर्मा, 901, केदार, यशोधाम एन्क्लेव,

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