जानें कोरोना वाय’रस से नि’पटने के तरीके, साथ ही पता करें इनके फायदे और नुक़’सान

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देशभर में कोरोना वाय’रस के बढ़ते प्रको’प के चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 मार्च से 21 दिनों का लॉकडाउन लगा दिया था। जिसके कार’ण सारे देशवासियों को घर से बाहर निकलने की इजाज़त नहीं है और सभी अपने अपने घरों में कैद हैं। वहीं इस लॉकडाउन का दूसरा हफ्ता शुरु हो चुका है और वाय’रस से संक्रमित मामले बढ़ते ही जा रहे हैं। ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक संक्रमित लोगों की संख्या 1,590 पहुंच गई है। अब गौर करने की बात यह है कि दुनिया के सभी देश इस महामा’री से निपटने के लिए क्या क़दम उठा रहे हैं और इनके क्या फायदे नुक़सान हैं।

बता दें कि यह खतर’नाक वाय’रस चीन के हुबई प्रांत से बुरी तरह फैलना शुरू हुआ था। जिसके बाद 23 जनवरी को चीन ने हुबई प्रांत को पूरी तरह से बंद कर दिया। लेकिन फिर भी यह वाय’रस धीरे धीरे पूरी दुनिया में फैलने लगा जिसके कार’ण वर्ल्ड हैल्थ ऑर्गनाइजेशन ने 11 मार्च को कोरोना वाय’रस को महामारी घोषित कर दिया था। लॉकडाउन और सोशल डिस्टेसिंग के कार’ण यह वाय’रस दूसरी जगहों पर नहीं फैल सका। जिसके चलते बाक़ी देशों में भी लॉकडाउन लगाने का फैसला किया। बता दें कि दुनिया के कुछ देशों में लॉकडाउन लगाया हुआ है और कहीं सिर्फ सोशल डिस्टेसिंग अपनाया गया है। जहां लॉकडाउन लगाया गया है वहां के हालात सुधरते नज़र आ रहे हैं।

वहीं सोशल डिस्टेंसिंग कितनी फायदेमंद है इसपर अभी भी बहस जारी है। बता दें कि 1918 में फैले स्पेनिश फ्लू के कार’ण अमेरिका के फिलाडेल्फिया में मरीज़ आने के कार’ण काफी देर से सोशल डिस्टेंसिंग की बात की। जिसकी वजह से फिलाडेल्फिया में 10 हजार से ज्यादा लोगों की मौ’त हुई। तो वहीं बीमारी के आउटब्रेक की जगह सेंट लुइस में 700 कैजुएलिटी हुई। वहीं जर्मनी ने भी कोरोना वाय’रस को रोकने के लिए लॉकडाउन नहीं लगाया है और सोशल डिस्टेसिंग से काम चलाया जा रहा है। वहां की सरकार का कहना है कि “सोशल डिस्टेंसिंग के जरिए बीमारी का संक्रम’ण रोके जाने का वक्त मिल जाएगा। इस दौरान इलाज आने की भी उम्मीद की जा रही है।”

वहीं स्वीडन जैसा देश ने भी लॉकडाउन नहीं किया है। हालांकि यहां हाईस्कूल और कॉलेज बंद है लेकिन बच्चों के स्कूल अभी भी खोलें जा रहे हैं। इसके साथ ही पब और रेस्त्रां भी खुले हैं। साथ ही देश ने अपनी सीमाएं खोल रखी है। स्वीडन का मानना है कि वे अर्थव्यवस्था को चालू रखते हुए वाय’रस को कम करने की कोशिश कर रहे हैं। वहीं इसके पड़ोसी देश नार्वे और डेनमार्क पूरी तरह से लॉकडाउन कर दिए गए हैं।बता दें कि दुनिया के हर देश में कोरोना वाय’रस से संक्रमित लोग पाए जा रहे हैं लेकिन अभी तक इस वाय’रस की जांच कर लिए पर्याप्त किट किसी भी देश में नहीं हैं। साउथ कोरिया ही ऐसा देश माना जा रहा है जहां भारी तादाद में लोगों को जांच हो रही है। जिसके लिए फोन बूथ टेस्टिंग की मदद की जा रही है।

बता दें कि 20 मार्च तक साउथ कोरिया में 3,16,664 कोरोना वाय’रस की जमाचे हो चुकी हैं। तो वहीं जर्मनी में इसका आंकड़ा 167,000, रूस में 1,43,519 और भारत में 14,514 लोगों की कोरोना वाय’रस की जांच हो चुकी है। वहीं चीन में कोरोना वाय’रस के डर ने थोड़ा काबू पाया है। इसके कार’ण 67 दिनों के लॉकडाउन के बाद चीन का हुबई प्रांत खोला गया लेकिन वुहान अभी तक पूरी तरह से नहीं खुल पाया है। और अभी तक पता भी नहीं लग पाया है कि यह लॉकडाउन कब तक जारी रहेगा। लेकिन कहा जा रहा है कि लॉकडाउन के दौरान चीन में कुछ बातें हो सकती हैं।

वो बातें यह हैं कि टीका आने के बाद देश अपनी 60 प्रतिशत आबादी को वैक्सीन दे सकें तो बीमारी महामा’री नहीं बन सकेगी। लेकिन इसमें साल भर का समय लग जाता हुआ और इतने समय लॉकडाउन रहना ना मुमकिन है। दूसरी बात यह कि इंफेक्शन होने के बाद लोगों का इम्यून सिस्टम मजबूत हो जाएगा। कम्युनिटी ट्रांसमिशन के बाद यह हालात दिखाई देते हैं। जैसे अगर कोई शख्स एक बार इस बीमारी से संक्रमित होता है तो आखिर में वाय’रस का असर कम हो जाएगा और वह कछ ना कर सके। बता दें कि इम्युनिटी पैदा होने में आमतौर पर 6 महीने से लेकर 1 साल का वक्त लगता है। अभी तक वैज्ञानिक SARS-CoV2 के मामले में यह बात बता नहीं पाए हैं। तीसरी बात यह कि वैज्ञानिक खुद यह मानते हैं कि लॉकडाउन खुलने के बाद यह बीमारी बढ़ सकती है। और यह भी हो सकता है कि यह की किसी देश का हिस्सा भी बन सकती है और हर साल होने की संभावनाएं हैं। जिसके उपाय में उन्होंने बताया कि इन हालातों में हमें कुछ प्रतिबंध नियमित तौर पर लगाने होंगे और लगातार जांच करनी होगी।