कोरो’ना काल के इस दौर में एक तरफ संक्र’मण की रफ़्तार बढ़ती जा रही है। वही दूसरी और वैक्सीन बनाने के लिए भी दुनिया भर में प्रयास चल रहा है। वही एक तरफ भारत में मध्यप्रदेश और पंजाब के मुख्यमंत्रियों के बीच में बासमती चावल की वजह से ठ’न गयी है। ये मामला बढ़ कर देश के प्रधानमंत्री के दफ्तर तक पहुंच चुका है। मध्यप्रदेश द्वारा ‘कड़कनाथ’ मुर्गे के बाद बासमती चावल के जीआई टैग के लिए फिर अपना दावा ठोका गया है। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह द्वारा इसके जवाब में प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर कहा गया है की, मध्यप्रदेश बासमती उगाने वाले विशेष क्षेत्र में नहीं आता। ऐसे में उसे बासमती का जीआई टैग देना जीआई टैगिंग के उद्देश्य को ही ब’र्बाद कर देगा। वहीं मध्यप्रदेश में विधानसभा की 27 सीटों पर उपचुनाव हैं। किसानों की क’र्जमाफी, बिजली बिल, यूरिया जैसे मुद्दे तो हैं ही, अब दो राज्यों के बीच चावल यु’द्ध से भी कांग्रेस-बीजेपी के बीच नई ल’ड़ाई शुरू हो गई है।
गौर करने की बात है कि चावल में बासमती का अपना ठाठ है। पूरी दुनिया में सबसे बड़ा चावल निर्यातक भारत है और बासमती की इसमें बड़ी हिस्सेदारी है। पिछले साल 70 लाख टन चावल का निर्यात भारत द्वारा किया गया था। बासमती चावल के उत्पादन और निर्यात में बड़ी हिस्सेदारी देश के 7 उत्तरी राज्यों पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड दिल्ली, जम्मू-कश्मीर की रही है। बासमती की खेती मध्यप्रदेश के 13 जिलों में होती है, मध्यप्रदेश में बासमती की पैदावार पिछले साल 3 लाख टन हुई थी। लेकिन प्रदेश के पास जीआई टैग नहीं होने की वजह से सीहोर के शरबती गेंहू जैसी धाक, चावल के बाजार में नहीं है। जीआई टैग का इस्तेमाल ऐसे उत्पादों के लिये किया जाता है, जिनका एक विशिष्ट भौगोलिक मूल क्षेत्र होता है। इसी मूल क्षेत्र की वजह से इन उत्पादों की विशेषता और प्रतिष्ठा होती है। ये टैग प्रोडक्ट की क्वालिटी का भरोसा दिलाता है। सबसे पहले जीआई टैग साल 2004 में ‘दार्जिलिंग टी’ को मिला, मध्य प्रदेश में झाबुआ के कड़कनाथ मुर्गा सहित कई प्रोडक्ट्स को जीआई टैग मिल चुका है।
अपने तीसरे कार्यकाल में शिवराज द्वारा कोशिश की गई लेकिन रजिस्ट्रार जीआईटी ने दावे को नका’र दिया था। शिवराज ने इस मामले को मद्रास हाईको’र्ट में उठाया लेकिन हा’र गए, अब ये मामला सुप्रीम को’र्ट में है। हालांकि केंद्र सरकार बीजेपी की है, कृषिमंत्री मध्यप्रदेश से आते हैं मगर बीजेपी द्वारा कांग्रेस से सवाल पूछे जा रहे हैं वही कांग्रेस भी पलटवार कर रही है। कृषि मंत्री कमल पटेल द्वारा कहा गया कि “इसका जवाब कमलनाथ दें कि क्या मध्य प्रदेश के किसानों के साथ कांग्रेस नहीं है, मध्य प्रदेश को बासमाती का जीआई टैग मिले इसके लिये हमने सुप्रीम को’र्ट में अपील की है। निश्चित तौर पर हम मध्य प्रदेश को जीआई टैग दिलाकर रहेंगे माननीय मुख्यमंत्री और हमारी भारत सरकार।” वहीं कांग्रेस प्रवक्ता अभय दुबे द्वारा कहा गया, बीजेपी की मध्य प्रदेश में पंजाब सरकार पर आ’रोप लगाती है क्या राज्य सरकार पंजाब की ऐडवाइस पर काम करती है। दु’र्भाग्य’पूर्ण है नाकामियां को छि’पाने के लिये कांग्रेस पर आ’रोप लगा रही है। एक बार मोदी सरकार का विरो’ध किया होता तो इन 7 सालों में मध्य प्रदेश के चावल उत्पादक किसानों को न्याय मिल चुका होता।
वहीं पंजाब सरकार द्वारा कहा गया कि, मध्यप्रदेश का नाम एपीडा ( एग्रीकल्चर एंड प्रोसेस्ड फूड प्राॅडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी) के बासमती चावल उत्पादक राज्यों की सूची में नहीं है। यहां उगने वाला बासमती ‘ब्रीडर’ बीज की पैदाइश है। शिवराज सिंह ने अपने खत में कहा कि, राज्य के 13 जिलों में बासमती चावल 1908 से पैदा किया जा रहा है। सिंधिया स्टेट (ग्वालियर) के रिकॉर्ड में लिखा है कि, 1944 में प्रदेश के किसानों को बासमती बीज की आपूर्ति की गई थी। हैदराबाद के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ राइस रिसर्च की रिपोर्ट में दर्ज है कि, राज्य में पिछले 25 वर्ष से बासमती चावल का उत्पादन किया जा रहा है। बासमती प्रकरण का आर्थिक-राजनीतिक फायदा यह है कि, जीआई टैग मिला तो शिवराज और बीजेपी की साख बढ़ेगी, हमला करने के लिये कांग्रेसी राज्य है। वहीं पंजाब को ड’र बाद’शाहत ख’त्म होने और आर्थिक नुक’सान का है।