देहरादून: उत्तराखंड में अंकिता हत्याकांड के बाद राजस्व पुलिस और रेगुलर पुलिस की बहस छिड़ गई है। सरकार ने हालिया कैबिनेट में कुछ क्षेत्रों को राजस्व से रेगुलर पुलिस में शामिल करने के फैसले पर मुहर लगा दी है। लेकिन, अब सोशल मीडिया पर पुलिस और राजस्व पुलिस के लंबित मामलों को लेकर नई बहस छिड़ी हुई है।
हाल के दिनों में अंकिता हत्याकांड के बाद जिस तरह से कुछ पुराने मामले सामने आए हैं। उससे एक बात तो साफ है कि रेगुलर पुलिस ने कई बड़े मामलों को ना केवल ठंडे बस्ते में डाल दिया। बल्कि, हत्या के मामले को बदलकर आत्महत्या करार देकर FR लगा दी, जिसे कोर्ट ने मानने से इंकार कर दिया।
कनून व्यवस्था ध्वस्त पटरी से उतरी नजर आ रही है। अंकिता भंडारी केस के कारण पुलिस का छिपाया हुआ केदार भंडारी हत्याकांड सामने आया साथ साथ ही ममता बहुगुणा की गुमशुदगी को आत्महत्या दिखाना सामने आया जिसमें स्थानीय विधायक के दबाव की बात सामने आई ।
इस केस में पुलिस की फाइनल रिपोर्ट को अदालत ने मानने से इंकार कर दिया। अब रुद्रप्रयाग से मनोज पंवार के महीने भर से ऊपर गायब होने की सूचना के साथ पिंकी को इंसाफ दिलवाने की आवाज जनता उठा रही है। अल्मोड़ा के दलित नेता यह हत्या का मामला भी पूरे देश में छाया रहा। इस मामले में भी पुलिस पर गंभीर सवाल खड़े हुए।
इसी बीच मोदी के मंत्री सौरभ बहुगुणा की हत्या की साजिश का पर्दाफाश हुआ जिसने बताया कि अपराधियों को पुलिस का कोई खौफ नहीं है।
ठाकुरद्वारा में यूपी पुलिस ने इनकाउंटर के नाम पर ज्येष्ठ उप प्रमुख की घरवाली के सीने में गोली मार दी। घायल पुलिस वाले काशीपुर अस्पताल से भाग गए। यूपी पुलिस ने ज्येष्ठ उप प्रमुख के नाम यूपी में FIR दर्ज कर दी।
DIG कुमाऊं ने बयान दिया कि बिना सूचित किए यूपी पुलिस उत्तराखण्ड नहीं आ सकती तो आईजी लॉ एंड ऑर्डर ने बोला कि आ सकती है। रुद्रपुर में ही एक और व्यवसाई की पंजाब से आए भाड़े के हत्यारों ने हत्या कर दी।
रही सही कसर वित मंत्री के भाई के घर हुई चोरी ने पूरी कर दी। ऐसे में पटवारी क्षेत्र में अपराधों के पटवारियों के लंबित रखे गए अपराधों पर समीक्षा कर रहे हैं। जबकि, सवाल पुलिस पर ज्यादा उठ रहे हैं।
भ्रष्टाचार की पुष्टि के बावजूद मंत्री पद पर बने रहना बताता है की मोदी सरकार के एजेंडे में कानून व्यवस्था और भ्रष्टाचार किस के पैरों के तले कुचला जा रहा है।