भारतीय गायों के अस्तित्व का प्रश्‍न

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भारत में गाय को पूजनीय मानकर माता कहा जाता है जबकि विश्‍व के दूसरे देशों में ऐसा नहीं है। भारतीय गाय के दूध के अलावा गोमूत्र और गोबर को भी पवित्र माना जाता है। सुख, समृद्धि की प्रतीक रही भारतीय गाय आज गौशालाओं में भी उपेक्षित है। अधिक दूध के लिए विदेशी गायों को पाला जा रहा ह जबकि भारतीय नस्ल की गायें, जो आज भी सर्वाधिक दूध देती हैं, त्याज्य ही हैं। गौशाला में देशी गोवंश के संरक्षण, संवर्द्धन की परंपरा भी खत्म हो रही है। हमारी गौशालाएं ‘डेयरी फार्म’ बन चुकी हैं, जहां दूध का ही व्यवसाय हो रहा है और सरकार भी इसी को अनुदान देती है। हमें देशी गाय के महत्त्व और उसके साथ सहजीवन को समझना जरूरी है। आज भारतीय गौशालाओं से भारतीय गोवंश सिमटता जा रहा है।

गाय की उत्पत्ति स्थल भी भारत ही है। इसका सर्वप्रथम विकास लगभग 15 लाख वर्ष पूर्व एशिया में हुआ। इसके बाद गाय अफ्रीका और यूरोप में फैली। गायों का विकास दुनिया के पर्यावरण, वहां की आबोहवा के साथ उनके भौतिक स्वरूप व अन्य गुणों में परिवर्तित हुआ। विदेशी नस्ल की गाय को भारतीय संस्कृति की दृष्टि से गौमाता नहीं कहा जा सकता। जर्सी, होलस्टीन, फ्रिजियन, आस्ट्रियन आदि नस्लें आधुनिक गोधन जिनेटिकली इंजीनियर्ड है। इन्हें मांस व दूध के अधिक उत्पादन के लिए सुअर के जींस से विकसित किया गया है। अधिक दूध की मांग के आगे नतमस्तक होते हुए भारतीय पशु वैज्ञानिकों ने बजाय भारतीय गायों के संवर्द्‌धन के विदेशी गायों व नस्लों को आयात कर एक आसान रास्ता अपना लिया। आज ब्राजील भारतीय नस्ल की गायों का सबसे बड़ा निर्यातक बन गया है। भारतीय नस्ल की गायें सर्वाधिक दूध देती थीं और आज भी देती हैं। ब्राजील में भारतीय गौवंश की नस्लें सर्वाधिक दूध दे रही हैं। खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) की रिपोर्ट में कहा गया है- ब्राजील भारतीय नस्ल की गायों का सबसे बड़ा निर्यातक बन गया है। वहां भारतीय नस्ल की गायें होलस्टीन, फ्रिजीयन (एचएफ) और जर्सी गाय के बराबर दूध देती हैं।

भारतीय नस्ल के गायों की शारीरिक संरचना अद्भुत है। इसलिए गोपालन के साथ वास्तु शास्त्र में भी गाय को विशेष महत्त्व दिया गया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भारतीय नस्ल के गायों की रीढ़ में सूर्यकेतु नामक एक विशेष नाड़ी होती है। जब इस पर सूर्य की किरणें पड़ती हैं, तब यह नाड़ी सूर्य किरणों के तालमेल से सूक्ष्म स्वर्ण कणों का निर्माण करती है। यही कारण है कि देशी नस्ल की गायों का दूध पीलापन लिए होता है। इस दूध में विशेष गुण होता है। ध्यान दें कि अनेक पालतू पशु दूध देते हैं, पर गाय के दूध को उसके विशेष गुण के कारण सर्वोपरि काह गया है।गाय के दूध के अलावा उसके गोबर व मूत्र में अद्भुत गुण हैं। रासायनिक विश्‍लेषण से पता चलता है कि खेती के लिए जरूरी 23 प्रकार के प्रमुख तत्त्व गोमूत्र में पाए जाते हैं।

इन तत्त्वों में कर्इ महत्त्वपूर्ण मिनरल, लवण, विटामिन, एसिड्स, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट होते हैं। गोबर में विटामिन बी-12 प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह रेडियोधर्मिता को भी सोख लेता है। हिंदुओं के हर धार्मिक कार्यों में गोबर से बने गणेश और गौरी (पार्वती) को पूजा स्थल में रखा जाता है। सर्वप्रथम गौरी-गणेश पूजन के बाद ही पूजा कार्य होता है। गाय के गोबर में खेती के लिए लाभकारी जीवाणु, बैक्टीरिया, फंगल आदि बड़ी संख्या में रहते हैं। गोबर खाद से अन्न उत्पादन व गुणवत्ता में वृद्धि होती है। इन्हीं सब गुणों के कारण भारतीय धर्म, दर्शन, संस्कृति और परंपरा में गाय को पूजनीय माना जाता है। हम भारतीय गौवंश को अपनाकर उन्हें गोशाला में संरक्षित, संवर्धित कर सकते हैं, जिसका सर्वाधिक लाभ भी हमें ही मिलेगा।