उत्तराखंड की सियासत में बिगड़े बोल और “बवाल”

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उत्तराखंड की भाजपा सरकार में मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल के बिगड़े बोलों ने ऐसा बखेड़ा खड़ा कर दिया है की सरकार के तमाम फैसले बैकग्राउंड स्कोर बनकर रह गए हैं। भू-कानून, यूसीसी, नया बजट—सब किनारे पड़े हैं, और सुर्खियों में सिर्फ “प्रेम कथा” चल रही है।

बजट सत्र से शुरू हुआ हंगामा अब उत्तराखंड की सरहदें लांघकर दिल्ली तक जा पहुंचा है। प्रवासी उत्तराखंडी 2 मार्च को मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल के विरोध में सड़कों पर उतरेंगे। इधर कांग्रेस, उक्रांद और बेरोजगार संघ ने अपने-अपने प्रदर्शन फाइनल कर दिए हैं। पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में मंत्री जी की पहाड़ विरोधी भाषा को कोई बर्दाश्त करने को तैयार नहीं है।

सदन में स्पीकर का धर्म, स्पीकर क्यों दे रही हैं शय ?

9 नवंबर 2000 के बाद से सरकारी/गैर सरकारी हर पत्र या लेख या दस्तावेज में जब भी उत्तराखंड का जिक्र होता आया है, तो ‘पहाड़ी राज्य’ लिखा पढ़ा जाता रहा है। और हमें पूर्ण विश्वास है की उत्तराखंड एक पहाड़ी राज्य है। यह बात विधान सभा अध्यक्षा ऋतु खंडूरी कैसे भूल गईं ? 

स्पीकर महोदया ने सदन में कांग्रेस विधायक लखपत बुटोला को बड़ी मजबूती से तब टोका जब वे अपने क्षेत्र और पहाड़ की समस्या सदन में रख रहे थे। इसी मजबूती से स्पीकर महोदया अगर मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल को रोक देती। ऐसा क्यों नहीं हुआ ? स्पीकर के अधिकार असीम हैं और ऐसे ही उसके कर्तव्य भी हैं। स्पीकर का धर्म है की वे निष्पक्षता से अपने अधिकार और कर्तव्य दोनों का पालन करें। 

सीएम धामी: संकट मोचक या मजबूरी के खिलाड़ी ?

सीएम पुष्कर सिंह धामी ने तुरंत “शांति वार्ता” का तरीका अपनाया और प्रेमचंद से खेद व्यक्त करवा दिया। लेकिन विरोधियों को इससे इतना ही संतोष मिला जितना चाय में चीनी डालने के बाद बिना मिलाए पीने से आता है। धामी जी का “हम सब उत्तराखंडी हैं” वाला बयान किसी पुराने हिंदी फिल्मी गाने की तरह सुनने में अच्छा लगा, लेकिन इसने विवाद की आग बुझाने के बजाय इसे और ज्यादा हवा दे दी।

अब भाजपा क्या करे ?

भाजपा के बड़े रणनीतिकार अब इस “प्रेम संकट” का हल ढूंढने में जुटे हैं। पार्टी का माथा ठनक रहा है कि क्या प्रेमचंद अग्रवाल को हटाया जाए या उन्हें “संस्कारों” की ट्रेनिंग दी जाए ?

प्रदेश की जनता, मंत्री के सदन में दिए अमर्यादित बयान और उसके बाद मंत्री के अधकचरे खेद से बहुत आहत। जिस बात की खुलकर माफी मांगी जानी चाहिए थी, उसपर मुख्य मंत्री ने समय रहते माफी मंगवा दी होती तो आज शायद स्थिति ऐसी नहीं होती। अगर स्पीकर ऋतु खंडूरी सदन के अंदर उसी समय मंत्री से माफी मंगवा देती, तो आज स्थिति ऐसी नहीं होती।