नई दिल्ली – महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) प्रमुख राज ठाकरे बीजेपी के खिलाफ विरोधी ताकतों को इकठ्ठा कर खुद को राजनीति में दोबारा पुर्नजीवित करना चाहते हैं। इसी सिलसिले में सोमवार को उन्होंने यूपीए की चेयरमैन सोनिया गांधी से मुलाकात की थी। राज ठाकरे अब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल, समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव, राष्ट्रीय जनता दल के तेजस्वी यादव और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) प्रमुख एम.के. स्टालिन से मुलाकात करने पर विचार कर रहे हैं।
द प्रिंट की खबर के मुताबिक मनसे ने सोनिया गांधी के साथ राज ठाकरे की मुलाकात को केवल शिष्टाचार मुलाकात बताया था। लेकिन महाराष्ट्र कांग्रेस नेताओं का मानना है कि वो अगले कुछ महीनों बाद राज्य में होने वाले वाले विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी के खिलाफ विपक्षी मोर्चे को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि ठाकरे के सहयोगियों ने जोर देकर कहा कि ये बैठकें केवल कथित ईवीएम छेड़छाड़ के बारे में हैं।
कभी अपने चाचा और शिवसेना के संस्थापक दिवंगत बाल ठाकरे के राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर देखे जाने वाले राज ठाकरे आजकल महाराष्ट्र में हाशिए पर हैं। सोनिया गांधी के साथ उनकी मुलाकात ने सबको आश्चर्य में डाल दिया था। ठाकरे लोकसभा चुनाव से दूर रहे थे लेकिन उन्होंने 10 रैलियों को संबोधित कर अपने लिए एक माहौल बनाने में कामयाब रहे थे। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला बोला। उनके भाषण वायरल हुए,खासकर लावा री वाले। इसके बावजूद जिन जगहों पर उन्होंने रैली की,वहां बीजेपी-शिवसेना ने 10 में से 8 सीटें जींती। राजनीतिक विश्लेषक और कांग्रेस के राज्यसभा सांसद कुमार केतकर का मानना है कि ठाकरे विपक्षी नेताओं से मिलकर मोदी-शाह के खिलाफ एक संयुक्त लड़ाई की बात कर रहे हैं। उन्होंने आगे कहा हराजनीतिक प्रासंगिकता हासिल करने के लिए ठाकरे का गांधी से मिलना एक वजह हो सकता है, यह केंद्र बिंदु नहीं है। उन्होंने कहा कि सोनिया गांधी बीजेपी की शक्तिशाली जोड़ी से निपटने के लिए किसी से भी बैठक करने के लिए तैयार हैं।
मनसे ने 2009 में अपने निर्माण के बाद शिवसेना की तुलना में अधिक सशक्त और आक्रामक तरीके से मिट्टी की विचारधारा और मराठी मानुष की बात की और त्वरित सफलता का स्वाद भी चखा। एक समय उसने उन्होंने मुंबई निकाय चुनावों और राज्य विधानसभा चुनाव में शिवसेना को उसके गढ़ दादर और माहिम में हराया। 2009 के लोकसभा चुनाव में मनसे ने 12 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा और 1 लाख से अधिक वोट हासिल किए। उस साल उन्होंने शिवसेना को काफी नुकसान पहुंचाया और विधानसभा चुनाव में 13 सीटें जीती। किन उस शुरुआती सफलता के बाद मनसे लड़खड़ा गई और 2014 के विधानसभा चुनाव में केवल एक विधानसभा सीट पर सिमट गई।
कांग्रेस और उसकी सहयोगी राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी(एनसीपी) महाराष्ट्र में मनसे के साथ गठबंधन के खिलाफ हैं। कांग्रेस को अपने सेक्यूलर एजेंडे में ठाकरे के साथ आने पर बैलेंस करने में दिक्कत आ सकती है। मनसे की मराठा केंद्रित नीति के बीच कांग्रेस हार्ड लाइन पॉलिटिक्स के संकेत भी दे रही है, जब महराष्ट्र में वो लगातार हार रही है। एनसीपी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि यह स्पष्ट संकेत है कि कांग्रेस हिंदू वोट को मजबूत करने की कोशिश कर रही है। यह केवल बीजेपी और शिवसेना की मदद करेगा। हालांकि केतकर ने कहा कि मनसे समावेशी पार्टी है। उन्होंने कहा कि अगर आप आप ठाकरे के भाषणों को ध्यान से सुनते हैं, तो आपको एहसास होगा कि वह मुस्लिम या जातिविरोधी नहीं हैं। मनसे मराठी पहचान पर केंद्रित है ना कि मराठी रूढ़िवादी। वहीं राजनीतिक विश्लेषक प्रताप अस्बे ने इस बात पर असहमति जताई कि मनसे कांग्रेस की चुनावी संभावनाओं की मदद नहीं करेगी। उन्होंने कहा कि मनसे मुंबई जैसे क्षेत्रों में कमजोर कांग्रेस-एनसीपी कैडर को मजबूत करने में मदद कर सकती है।