देहरादून: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने आज नए जिलों के गठन को लेकर बयान दिया। उन्होंने कहा कि इस संबंध में प्रदेशभर के जनप्रतिनिधियों से बात की जाएगी, जहां जरूरत होगी। लोगों की सहमति से आगे बढ़ा जाएगा। इस बयान के बाद पूर्व सीएम हरीश रावत भी सामने आ गए।
हरदा ने कहा कि क्या जिले बनाने वाली खबर में कुछ सच्चाई है! केवल ध्यान हटाने के लिए यह शगुफा छोड़ा जा रहा है कि कॉमन सिविल कोड, कोई कह रहा है भू-कानून ताकि जो चूल्हे हिल गई हैंए भाजपा की भर्ती घोटाले और अन्य घोटालों से उससे ध्यान हटाया जा सके।
उन्होंने कहा कि अगर सरकार सच में जिले बनाना चाहती हैं तो मैं सीएम धामी को बधाई दूंगा और कहूंगा कि हमने पूरा होमवर्क किया हुआ है। ऐसे में अगर आप इसको आगे बढ़ाएंगे तो आप सिकंदर साबित होंगे। वहीं, हरदा ने यह भी कहस कि अगर जिले बन रहें हैं तो कमीशनरी भी बनाई जाए, जिससे काम आसान हो।
सीएम धामी का बयान
सीएम धामी ने इस मांग पर सभी जनप्रतिनिधियों से बात की जाएगी और इस दिशा में चर्चा करके आगे बढ़ा जाएगा। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि, नई जिलों की मांग काफी लंबे समय से चली आ रही है। सरकार शीघ्र ही इस पर विचार करेगी कि, प्रदेश में कहां-कहां पुनर्गठन हो सकता है और वास्तव में कहां नए जिले की आवश्यकता है, इस बारे में सभी जनप्रतिनिधियों से बात की जाएगी। इसके बाद इस दिशा में चर्चा करके आगे बढ़ा जाएगा।
दो दशक पुरानी मांग
करीब दो दशक पहले उत्तर प्रदेश के पहाड़ी हिस्सों को अलग करके बने उत्तराखंड में फिलहाल 13 जिले हैं। साल 2011 में तत्कालीन मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने 4 जिले बनाए जाने की घोषणा की थी। इसमें गढ़वाल मंडल में 2 जिले (कोटद्वार, यमुनोत्री) और कुमाऊं मंडल में 2 जिले (रानीखेत, डीडीहाट) बनाने की बात कही थी। लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के पद से हटते ही यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया था। इसके बाद विजय बहुगुणा की सरकार ने इस मामले को राजस्व परिषद की अध्यक्षता में नई प्रशासनिक इकाइयों के गठन संबंधी आयोग के हवाले कर दिया।
आठ जिलों की घोषणा
2016 में मुख्यमंत्री बदलने के बाद हरीश रावत सरकार ने 8 जिलों (डीडीहाट, रानीखेत, रामनगर, काशीपुर, कोटद्वार, यमुनोत्री, रुड़की, ऋषिकेश) को बनाने का खाका भी तैयार किया। हरीश रावत ने नए जिलों के गठन के लिए 100 करोड़ की व्यवस्था करने की बात की थी। नए जिलों के गठन के लिए बनाए गए आयोग ने हर नए जिले के निर्माण में करीब 150 से 200 करोड़ रुपए के व्यय का आकलन किया था। हालांकि, इसके बाद कांग्रेस में राजनीतिक उठा-पटक शुरू हुई और नए जिलों की मांग फिर ठंडे बस्ते में डाल दी गई।