रविवार 7 फरवरी को उत्तराखंड के चमोली जिले में कुदरत का कहर देखने को मिला। नीती घाटी में रैणी गांव के शीर्ष भाग में ऋषिगंगा के मुहाने पर सुबह करीब 9:15 बजे ग्लेशियर का एक हिस्सा टूटकर ऋषिगंगा में गिर गया। इस कारण नदी में बाढ़ आ गई। इस खौफनाक मंज़र के बाद अब ये मंज़र हिमाचल प्रदेश में देखने को मिल सकता है। जानकारी के मुताबिक पश्चिमी हिमालय में जलवायु परिवर्तन की वजह से ग्लेशियर (Glacier) तेजी से पिघल रहे हैं। जिसके चलते पूरे हिमालय क्षेत्र में बड़े बवंडर की आशंका जताई जा रही है। हिमाचल प्रदेश के विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण परिषद के सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज द्वारा इस खतरे का अंदाज़ा लगाया जा रहा है।
परिषद के मेंबर सेक्रेट्री निशांत ठाकुर ने बताया कि “जलवायु परिवर्तन की वजह से प्रदेश में अनियमित रूप से बारिश और बर्फबारी हो रही है। कभी अत्यधिक बारिश हो रही है तो कभी सूखे जैसी स्थिती बन रही है। बर्फ पड़ने के समय में भी बदलाव हो रहा है।” निशांत ठाकुर के मुताबिक ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से मौसम में भारी परिवर्तन हो रहा है, जिसके चलते ताममान में बढ़ौतरी हो रही है और ग्लेशियर पिघल रहे हैं। उन्होंने कहा कि “हिमाचल और इसके साथ लगते हिमलायी क्षेत्र में सेटेलाइट बेस्ड स्टडी के माध्यम से करीब 33 हजार स्कवेयर किलोमीटर में फैले ग्लेशियर क्षेत्र का अध्ययन किया गया. अध्ययन से पता चला है कि सतलुज रिवर बेसिन में फैले ग्लेशियर में साल 2016 में 581, 2017 में 642, 2018 में 769 और 2019 में 562 झीलें बन गई हैं।”
उन्होंने आगे कहा कि “साइंटिफिक स्टडी में यह बताया गया कि साल 1970 से 2020 तक हिमालय क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन की वजह से एक डिग्री तापमान बढ़ गया है। जिसका सीधा असर कृषि, बागवानी, भूमिगत जल से लेकर पूरी प्रकृति और मानव जाति पर सीधे तौर पर पड़ रहा है।” निशांत ने कहा कि “विकासात्मक गतिविधियों को रोका नहीं जा सकता, लेकिन सतत विकास से कुछ हद तक खतरे को कम किया जा सकता है। निर्माण से लेकर कार्बन उत्सर्जन तक तमाम गतिविधियां सावधानीपूर्वक करनी होंगी।”