उत्तराखंड के देहरादून जिले के जौनसार बावर जनजातीय क्षेत्र में सामाजिक बदलाव की बयार के बीच कालसी तहसील स्थित सिमोग मंदिर का चार सदी पुराना इतिहास बदल गया। जिस किसी ने भी इस मामले के बारे में सुना उसने यहां के लोगों की सोच को सलाम किया।
रविवार को मंदिर की देव पालकियों ने जैसे ही दलित गांव सराड़ी में प्रवेश किया, पूरा गांव देवताओं के उद्घोष से गूंज उठा। हजारों स्थानीय लोग इस अलौकिक पल के साक्षी बने।
गांव में एक साथ तीन-तीन देव पालकी देख गांव के लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। जातपात का भेदभाव भूलकर सभी ने देवताओं की स्तुति की और आशीर्वाद लिया। सराड़ी गांव में धार्मिक अनुष्ठान में खत विशायल, बाना और सिलगांव के लोग शामिल हुए।
रविवार को सिमोग मंदिर में विधि-विधान से पूजा-अर्चना के बाद शिलगुर, विजट और चूड़ू महाराज की पालकी ने दोपहर 12 बजे दलित गांव सराड़ी के लिए प्रस्थान किया। पालकियों के साथ सैकड़ों पदयात्री भी चल रहे थे।
कोटा, डिमऊ, रुपऊ और मुंडवाण गांव में देव पालकियों की भव्य अगवानी की गई। छह किमी की पैदल दूरी नापने के बाद शाम करीब साढ़े तीन बजे देव पालकियां सराड़ी गांव की प्रधान मकतूला देवी के घर एक दिन प्रवास पर पहुंचीं।
बारिश के बावजूद हजारों की संख्या में लोग देव दर्शन को जुटे। देव पालकियां देख गांव के दलित परिवार झूम उठे और मारे खुशी के उनकी आंकों से आंसू छलक गए। देर रात तक लोग देवता की स्तुति में झूमते रहे।