नई दिल्ली – सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त तीन न्यायाधीशों की इन-हाउस कमेटी ने यौन उत्पीड़न मामले में सोमवार को चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को क्लीन चिट दे दी थी। इसके बाद, मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के बाहर वकील और महिला एक्टिविस्ट्सज ने प्रदर्शन किया। इस केस को लेकर एक और मामला उजागर हुआ है। शिकायतकर्ता महिलाओं ने सुप्रीमकोर्ट की इन-हाउस जांच कमेटी को पत्र लिखकर कमेटी से जांच रिपोर्ट की कापी मांगी है।
किसी भी तरह के प्रदर्शन के लिए सुप्रीम कोर्ट के बाहर जमा होने की मनाही है, दिल्ली पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को हिरासत में ले लिया और इलाके में सीआरपीसी की धारा 144 लगा दी। प्रदर्शनकारी उस शिकायतकर्ता के पक्ष में खुलकर सामने आए, जिसने 30 अप्रैल को सीजोआई (प्रधान न्यायाधीश) पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। हालांकि बाद में सभी प्रदर्शनकारियों को रिहा कर दिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट की पूर्व कर्मचारी ने कहा कि उसने शीर्ष अदालत के तीन न्यायाधीशों की उपस्थिति में ‘काफी भयभीत और घबराया हुआ’ महसूस किया। सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की एक इंटरनल कमेटी CJI के खिलाफ मामले की जांच कर रही थी। SC द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि कमेटी ने पाया है कि सर्वोच्च न्यायालय की पूर्व कर्मचारी द्वारा 19 अप्रैल, 2019 को की गई शिकायत में कोई दम नहीं है। इस कमेटी में जस्टिस एस।ए।बोबडे, जस्टिस इंदिरा बनर्जी व जस्टिस इंदु मल्होत्रा शामिल हैं।
वहीं, दिल्ली उच्चम न्या यालय के पूर्व मुख्यम न्याोयाधीश जस्टिस ए पी शाह ने जांच प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि मामले में निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। उन्होंंने यह भी कहा कि यह प्रकरण आने वाले सालों में सुप्रीम कोर्ट को परेशान करता रहेगा।
एक अंग्रेजी अखबार से बातचीत में जस्टिस शाह ने कहा, “जिस तरह से यह जांच हुई, उससे मैं बहुत व्यथित हूं। शुरू में ऐसा लगा था कि सुप्रीम कोर्ट अभूतपूर्व सुनवाई के बाद पैदा हुए हालात सुधारने की कोशिश कर रहा है। कायदे से एक बाहरी समिति को जांच करनी चाहिए थी, लेकिन अदालत ने कमेटी में दो महिलाओं को जोड़ दिया। लेकिन फिर भी इसे जांच नहीं कहा जा सकता। उस महिला (पीड़िता) ने सिर्फ यही कहा था कि वह किसी वकील या दोस्त के जरिए दलीलें रखना चाहती है। मेरी राय में यह बहुत मूलभूत मांग थी। लेकिन उस महिला को वह न्यूतनतम अधिकार नहीं दिया गया”।
जस्टिस शाह ने कहा कि इस जांच से जुड़े कुछ तथ्य भी समस्याप्रद हैं। उन्हों ने कहा, “महिला को बताया गया था कि उसकी गवाही उसे ही नहीं सौंपी जाएगी क्योंकि जांच गोपनीय है। कमेटी के जांच शुरू करने से पहले उसने प्रक्रिया से जुड़ी गाइडलाइंस मांगी थीं, मगर वह भी नहीं दी गईं। अब मुझे ऐसा लगता है कि इस जांच की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की जाएगी, न ही इस इन-हाउस इंक्वायरी को कोई चुनौती देगा। तो यह सब केवल न्याय का मखौल बनकर खत्म हो गया है”।