दुश्मनों को धूल चटाने के लिए भारतीय वायुसेना के बेड़े में अब जल्द ही ‘सुपर सुखोई’ शामिल होगा. भारत रूस के साथ इस रुके हुए प्रोजेक्ट पर बातचीत आगे बढ़ाने की तैयारी में है. इसके तहत भारत 5वीं जनरेशन के लिए लड़ाकू विमानों और सुखोई जेट (30MKI) को सुपर सुखोई में बदलने के लिए रूस से समझौता करेगा.
दूसरी ओर, भारत और फ्रांस के बीच अब जल्द ही गोलीबारी करने वाले 36 जेट के लिए करीब 7.8 बिलियन यूरो की डील करने जा रहा है, लेकिन रक्षा मंत्रालय का मानना है कि देश की अभेद सुरक्षा के लिए 36 लड़ाकू विमान काफी नहीं हैं. भारतीय वायुसेना के पास अभी 33 लड़ाकू विमान हैं, जबकि इनमें से 11 बहुत पुराने हो चुके हैं. मिग-21 और मिग-27 अब दस्ते से रिटायर होने के कगार पर हैं.
अंग्रेजी अखबार ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ के मुताबिक, ऐसे में हमें चीन और पाकिस्तान का माकूल जवाब देने के लिए कम से कम 42 लड़ाकू विमानों की जरूरत है. हिंदुस्तान आसमान में अपनी क्षमता बढ़ाने को लेकर लगातार प्रयास कर रहा है. तेजस के बाद अब देश में दूसरे लड़ाकू विमानों को भी लॉन्च करने की तैयारी है. इसमें अमेरिकन एफ ए-18 और एफ-16 के साथ ही स्वीडिश ग्रिपन ई को भारत में बनाने की तैयारी है. यानी अब इन्हें मेड इन इंडिया टैग के साथ लॉन्च किया जाएगा.
अखबार ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि इस समय भारत लड़ाकू विमानों की तकनीक और कीमत संबंधी मुद्दों से निपटने की तैयारी कर रहा है. रूस भी भारतीय वायुसेना के पायलट को प्रोटोटाइप उड़ाने की अनुमति देने को तैयार है. भारत और रूस के बीच सबसे पहले 2007 में लड़ाकू विमानों की शुरुआती डिजाइन के लिए 295 मिलियन डॉलर का सौदा हुआ था. बाद में इसे 2010 के लिए बढ़ा दिया गया था.
भारत अब 5वीं जनरेशन के फाइटर प्लेन के निर्माण को लेकर तैयारी में है. इस डिजाइन कॉन्ट्रैक्ट के करीब छह साल बाद भारत और रूस अब प्रोटोटाइप डवलपमेंट, टेस्टिंग और इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने के लिए करीब 4 बिलियन डॉलर की डील करने जा रहे हैं. यह एक सिंगल सीट लड़ाकू विमान होगा. ऐसे 127 विमान बनाने के लिए करीब 25 बिलियन डॉलर का खर्च आएगा.
रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने बताया कि देश के लिए सुखोई की उपयोगिता 60 फीसदी तक बढ़ गई है, जबकि यह पहले 46 फीसदी ही थी. उन्होंने कहा, ‘हमारा लक्ष्य इसकी उपयोगिता को 75 फीसदी तक करना है.’ सुखोई को बेहतर बनाने के लिए रूस, हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स और भारतीय वायुसेना मिलकर काम करेंगे. सभी मिलकर सुपर सुखोई बनाएंगे.
सुपर सुखोई में एक्टिव इलेक्ट्रॉनिकली स्कैन्ड एरे रडार और लॉन्ग रेंज स्टैंड ऑफ मिसाइल जैसी एडवांस तकनीक होगी. इसके लिए तकनीकी जरूरतों को इस साल के अंत तक पूरा कर लिया जाएगा.