काशीपुर: माहवारी…मासिक धर्म…या फिर पीरियड्स। बेटियों और महिलाओं को जब भी ये मुश्किल दिन आते हैं। उनके दर्द में उनको सपोर्ट देने के बजाया अछूत मान लिया जाता है। यह देशभर में लगभगत आम बात है। हालांकि, समय के साथ चीजें भी बदलने लगी हैं। इस पर कई फिल्में भी बन चुकी हैं। बावजदू पूरी तरह से अब तक अक्ल का पर्दा नहीं हटा है। लेकिन, कोशीपुर के जितेंद्र भट्ट और भावना ने जो किया। उससे शायद पूरे देशभर में जहां भी पीरियड्य पर मान्यताओं को लादा जाता है, उनकी संभवतः आंखें खुल गई होंगी।
काशीपुर के एक माता-पिता जितेंद्र भट्ट और भावना, जिनकी रागिनी 13 साल की बेटी है। उन्होंने बेटी के पहले पीरियड पर कुछ ऐसा किया कि देशभर में सुर्खियां तो बनी ही, एक बहुत बड़ी चर्चा का विषय भी बन गया है। जितेंद्र और भावना ने माहवारी से जुड़ी रूढ़ियों को तोड़कर समाज को आइना दिखाने का काम किया है।
बेटी के पहले पीरियड पर माता-पिता ने पड़ासियों और जानने वालों को अपने घर बुलाया और पार्टी दी। बाकायदा बेटी के पहले पीरियड का केक काटा गया। जैसे जितेंद्र ने यह पोस्ट सोशल मीडिया पर डाली, यह वायरल हो गई और सुर्खियां बन गई। कुछ लोग जहां जितेंद्र की इस सोच की खुलकर तारीफ कर रहे हैं, वहीं कुछ को अभी भी ऐसे बदलाव से आपत्ति है। इसी सप्ताह मंगलवार को जितेंद्र भट्ट की पत्नी भावना ने उन्हें बताया कि उनकी 13 साल की बेटी रागिनी को पीरियड्स शुरू हो गए हैं।
बेटी थोड़ा असहज थी, लेकिन दोनों माता-पिता ने बेटी को एक साथ बैठाया और उसे बताया कि पीरियड्स उसके लिए किस तरह से स्पेशल है। ये कोई शर्म और संकोच की बात नहीं है। ये एक ताकत है। सृजन की ताकत जो सिर्फ़ उत्सव और खुशी की बात है।
इस मौके पर माता-पिता ने सभी आस-पड़ोस के लोग और अपने रिश्तेदारों को बुलाया। फिर केक काटा गया रागिनी के पहले पीरियड्स का केक… मेहमान रागिनी के पहले पीरियड शुरू होने पर उसके लिए तरह-तरह के गिफ्ट भी लेकर आए। फोटोग्राफ निकाली गईं। उस उत्सव के तमाम वीडियो बने।
केक का आर्डर लेने वाले दुकानदार का भी कहना है कि वाकई यह कुछ नया है और मैं भी पूरे परिवार को बधाई देता हूं। जब पहली बार मुझे आर्डर दिया गया तो मैं भी थोड़ा संभला और फिर से पूछा क्या संदेश देना है, लेकिन अगली आवाज उनके पिता की थी और उन्होंने बताया कि वह अपनी बेटी के लिए ऐसी पहल कर रहे हैं।
मैं भी खुद को गौरवान्वित मानता हूं कि मैं इस पहल का एक हिस्सा हूं। आने वाली पीढ़ी के लिए ऐसा बदलाव अच्छा है। अपनी तरह का ये अनोखा उत्सव लोगों को निश्चय ही एक नई सोच की तरफ़ सोचने को मजबूर करेगा।
पीरियड को लेकर लोगों की सोच में बहुत बदलाव आया है। शासन और प्रशासन के स्तर पर भी बहुत कुछ हो रहा है। पीरियड के दौरान साफ़-सफ़ाई, अच्छे पोषक भोजन के बारे में जागरूकता बढ़ रही है, लेकिन अभी भी ये योजनाएं ऊंट के मुंह में जीरा जैसी ही हैं। ये तभी सम्भव होगा जब व्यक्तिगत रूप से हम जितेंद्र भट्ट और भावना की तरह सोचने लगेंगे। जब हम पीरियड को लेकर खुलकर बात करेंगे।