उत्तराखंड : रवांई के लिए गौरव का पल, महावीर रवांल्टा को मिलेगा प्रतिष्ठित ‘उत्तराखंड साहित्य गौरव’ सम्मान

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  • प्रदीप रावत ‘रवांल्टा’

उत्तरकाशी: देश के प्रतिष्ठित साहित्यकार महावीर रवांल्टा को उत्तराखंड भाषा संस्थान की ओर से उत्तराखंड साहित्य गौरव सम्मान से सम्मानित किया जाएगा। यह रवांई और रवांल्टी भाषा के लिए गौरव का पल है। महावीर रवांल्टा को हिन्दी साहित्य के लिए इससे पहले भी कई सम्मान मिल चुके हैं। उनके सम्मानों की सूची भले ही कितनी ही लंबी क्यों ना हो, लेकिन लोकभाषा के लिए मिलने वाला यह सम्मान उनके लिए बहुत मायने रखता है।

सम्मान की घोषणा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने की थी। इसके तहत राज्य की भाषाओं के संरक्षण और संवर्धन करने वाले लोकभाषा साहित्यकारों का चयन किया जाना था। इसके लिए बाकायदा एक समिति का गठन किया गया था। चयन समिति ने रवांल्टी के लिए महावीर रवांल्टा का चयन किया। यह सम्मान 30 जून को सर्व चौक स्थिति आईआडीटी ऑडिटोरियम में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी देंगे।

सम्मान के लिए चयन होने के बाद देश के प्रख्यात साहित्यकार महारवी रवांल्टा कुछ भावुक नजर आए। उन्होंने कहा कि उनको बहुत सम्मान मिले हैं, लेकिन अपनी लोकभाषा रवांल्टी के लिए सम्मान मिलना सबसे बड़ा गौरव है। उन्होंने यह भी कहा कि यह रवांल्टी को विश्व पटल पर पहचान दिलाने के उनके आंदोलन का भी सम्मान है। उनको खुशी है कि आज रवांल्टी को पहचान मिली और अब अन्य भाषाओं के साथ स्थापित भाषा बनने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रही है।

महावीर रवांल्टा ने कहा कि रवांल्टी को इस मुकाम तक पहुंचाने में कई लोगों का सहयोग रहा है। लेकिन, पिछले कुछ सालों में युवा साहित्यकार दिनेश रावत समेत कई युवाओं ने इस भाषा आंदोलन में अपना महत्वूपर्ण योग दान दिया। उनका कहना है कि रवांल्टी भाषा का यह सफर इतना भी आसान नहीं रहा है। इस दौरान कई चुनौतियां का सामना भी करना पड़ा। साथ ही कहा कि इस सम्मान के साथ उनकी जिम्मेदारी और बढ़ गई है और अब पहले से ज्यादा ऊर्जा और ताकत से काम करने की जरूत है।

हिन्दी साहित्य जगत में अच्छी दखल रखने वाले महावीर रवांल्टा ने 7 जनवरी सन् 1995 ई को ‘जनलहर’ रवांल्टी कविता ‘दरवालु’ के माध्यम से रवांल्टी को स्थापित करने का भाषा आंदोलन शुरू किया था। तब से लेकर अब तक उन्होंने अनेक कविताएं रच डाली। उनकी 20 रवांल्टी कविताओं के सुप्रसिद्ध चित्रकार दिवंगत बी. मोहन नेगी ने कविता पोस्टर बनाकर प्रदर्शित किए थे। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन के साथ ही स्थानीय मंचों, आकाशवाणी और दूरदर्शन पर रवांल्टी कविताओं की प्रस्तुति से इस ओर उन्होंने लोगों का ध्यान आकृष्ट किया।

भाषा-शोध एवं प्रकाशन केन्द्र वडोदरा (गुजरात) के भारतीय भाषा लोक सर्वेक्षण, उत्तराखण्ड भाषा संस्थान के भाषा सर्वेक्षण और पहाड़ (नैनीताल) के बहुभाषी शब्द कोष ’झिक्कल काम्ची उडायली’ में रवांल्टी भाषा पर काम करने के साथ ही हिन्दी विभाग कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल एवं सोसायटी फॉर इंडेंजर्ड एंड लेस नॉन लेंग्वेजज लखनऊ की ओर से आयोजित भाषा प्रलेखन और शब्दकोश निर्माण कार्यशाला में भी हिस्सा लेकर भाषा आंदोलन को और आगे बढ़ाया और मजबूती दी।

भारत की जिन 870 भाषाओं पर कार्य हुआ है, उनमें आज रवांल्टी भी शामिल है। रवांल्टी में उनके कविता संग्रह ‘गैणी जण आमार सुईन’ और ’छपराल’ प्रकाशित हो चुके हैं। नाटक ‘‘सफेद घोड़े का सवार’’ रथ देवता की लोककथा पर आधारित है। ‘‘एक प्रेम कथा का अंत’’ लोकगाथा गजू-मलारी पर आधारित नाटक भी प्रकाशित हो चुका है।

इसके अलावा ‘‘ढेला और पत्ता’’ के साथ ही ‘‘दैंत्य और पांच बहनें’’ लोककथा संग्रह भी प्रकाशित हो चुके हैं। खास बात है कि सके पांच भाग हैं। हिन्दी साहित्य जगत के सुविख्यात हस्ताक्षर महावीर रवांल्टा की विभिन्न विधाओं में 38 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उनके कथा साहित्य पर विभिन्न विश्वविद्यालयों में लघु शोध एवं शोध प्रबंध प्रस्तुत किए जा चुके हैं।

रंगकर्म एवं लोक साहित्य में गहरी रुचि के चलते अनेक नाटकों के लेखन, अभिनय और निर्देशन का श्रेय भी उन्हें जाता है। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की ‘संस्कार रंग टोली’, कला दर्पण व बाल श्रमिक विद्यालय की ओर से उनकी कहानियों पर आधारित नाटक मंचित हो चुके हैं। पिछले दिनों उनकी लघुकथा ‘तिरस्कार’ पर लघु फिल्म का भी निर्माण हो चुका है।