देश की सर्वोच्च अदालत ने एक गर्भ में पल रहे एक बच्चे को बचाने के लिए संविधान के तहत मिली असाधारण शक्तियों का प्रयोग किया है. 20 साल की युवती ने अनचाहे गर्भ को गिराने की अनुमति मांगी थी. इस मामले पर एम्स (AIIMS) ने गर्भपात न करने की सलाह दी. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने एम्स को युवती का सुरक्षित प्रसव कराने का निर्देश दिया है. सुप्रीम कोर्ट के दखल के चलते जन्म के बाद बच्चे को नया परिवार भी मिलेगा.
सुप्रीम कोर्ट ने बच्चे के जन्म के बाद उसे एक इच्छुक परिवार को सौंपने की अनुमति दी है. इस परिवार ने युवती की याचिका के बारे में जानने के बाद बच्चे को गोद लेने की इच्छा जताई थी. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत मिले अधिकार का प्रयोग करते हुए एम्स को प्रसव कराने का निर्देश दिया और शिशु को इच्छुक परिवार को सौंपने की अनुमति दी थी.
20 साल की इंजीनियरिंग छात्रा ने 29 माह के गर्भ को गिराने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. युवती ने कोर्ट को बताया था कि उसे 7 महीने बाद गर्भ ठहरने का पता चला. कोर्ट को यह भी बताया गया कि युवती अविवाहित है और उसके परिवार वाले बच्चे को अपनाने को तैयार नहीं है.