सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन पर रोक लगा दी है. SC का ये आदेश किसी एक राज्य के लिए नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए है. कोर्ट ने कहा है कि किसी का घर सिर्फ इस आधार पर नहीं तोड़ा जा सकता कि वह किसी आपराधिक मामले में दोषी या आरोपी है. हमारा आदेश है कि ऐसे में प्राधिकार कानून को ताक पर रखकर बुलडोजर एक्शन जैसी कार्रवाई नहीं कर सकते. कोर्ट ने कहा मौलिक अधिकारों को आगे बढ़ाने और वैधानिक अधिकारों को साकार करने के लिए कार्यपालिका को निर्देश जारी किए जा सकते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार क्या न्यायिक कार्य कर सकती है और राज्य मुख्य कार्यों को करने में न्यायपालिका की जगह नहीं ले सकता है. अगर राज्य इसे ध्वस्त करता है तो यह पूरी तरह से अन्यायपूर्ण होगा. कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना संपत्तियां नहीं तोड़ी जा सकती हैं. हमारे पास आए मामलों में यह स्पष्ट है कि प्राधिकारों ने कानून को ताक पर रखकर बुलडोजर एक्शन किया. जस्टिस बी.आर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने ये फैसला सुनाया है.
सुप्रीम कोर्ट ने 17 सितंबर को बुलडोजर एक्शन पर रोक लगा दी थी. कई राज्यों में बुलडोजर एक्शन के खिलाफ याचिका दाखिल की गई थीं. याचिकाकर्ताओं में जमीयत उलेमा-ए-हिंद भी शामिल था. फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह स्पष्ट है कि शक्ति के मनमाने प्रयोग की अनुमति नहीं दी जा सकती. जब नागरिक ने कानून तोड़ा है तो अदालत ने राज्य पर कानून और व्यवस्था बनाए रखने और उन्हें गैरकानूनी कार्रवाई से बचाने का दायित्व डाला है.
इसका पालन करने में विफलता जनता के विश्वास को कमजोर कर सकती है और अराजकता को जन्म दे सकती है. हालांकि व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करना महत्वपूर्ण है संवैधानिक लोकतंत्र को कायम रखते हुए हमने माना है कि राज्य सत्ता के मनमाने प्रयोग पर लगाम लगाने की जरूरत है, ताकि व्यक्तियों को पता चले कि उनकी संपत्ति उनसे मनमाने ढंग से नहीं छीनी जाएगी.
SC ने कहा कि यदि कार्यपालिका मनमाने तरीके से किसी व्यक्ति की संपत्ति को केवल इस आधार पर ध्वस्त कर देती है कि उस व्यक्ति पर अपराध का आरोप है तो यह शक्तियों के सेपरेशन का उल्लंघन है. कानून को अपने हाथ में लेने वाले सार्वजनिक अधिकारियों को मनमानी के लिए जवाबदेह बनाया जाना चाहिए. इस प्रकार यह अवैध है. हमने बाध्यकारी दिशानिर्देश निर्धारित किए हैं जिनका ऐसे मामलों में राज्य के अधिकारियों द्वारा पालन किया जाएगा.
कोर्ट ने कहा कि हमने देखा है कि आरोपी के भी कुछ अधिकार और सुरक्षा उपाय हैं, राज्य और अधिकारी कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना आरोपी या दोषियों के खिलाफ मनमानी कार्रवाई नहीं कर सकते हैं, जब किसी अधिकारी को मनमानी कार्रवाई के लिए उत्तरदायी ठहराया जाता है तो इससे निपटने के लिए संस्थागत तंत्र होना चाहिए. मुआवजा तो दिया ही जा सकता है, सत्ता के गलत इस्तेमाल के लिए ऐसे अधिकारी को बख्शा नहीं जा सकता. कानून को ताक पर रखकर किया गया बुलडोजर एक्शन असंवैधानिक है.
कानून का शासन नागरिकों के अधिकार और प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत आवश्यक शर्तें हैं, यदि किसी संपत्ति को केवल इसलिए ध्वस्त कर दिया जाता है, क्योंकि व्यक्ति पर आरोप लगाया गया है तो यह पूरी तरह से असंवैधानिक है. कार्यपालिका यह निर्धारित नहीं कर सकती कि दोषी कौन है और वह यह तय करने के लिए न्यायाधीश नहीं बन सकती कि वह दोषी है या नहीं और ऐसा कृत्य सीमाओं का उल्लंघन होगा. बुलडोजर का भयावह पक्ष याद दिलाता है कि संवैधानिक मूल्य और लोकाचार सत्ता के इस तरह के दुरुपयोग की अनुमति नहीं देते हैं.