मुंबई : महाराष्ट्र में भाजपा की सहयोगी पार्टी शिव सेना ने एक बार फिर काले धन के मुद्दे को लेकर केंद्र सरकार की आलोचना की है. मुखपत्र ‘सामना’ के संपादकीय में शिवसेना ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनके चुनावी वादे को लेकर सवाल उठाए और पूछा कि आखिर सरकार ने दो साल के कार्यकाल में कितने देशवासियों के बैंक खातों में 15 लाख रुपये जमा करवाए हैं?
मुखपत्र के संपादकीय में पार्टी ने लिखा है कि राष्ट्र निर्माण के कार्य के लिए चुनाव से पहले कालेधन की वापसी की महत्वपूर्ण घोषणा की गई थी उसका क्या हुआ? दो साल में आखिर कितने देशवासियों के बैंक खाते में 15 लाख रुपए जमा करवाए हैं केंद्र सरकार ने? आपको बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को रेडियो पर ‘मन की बात’ कार्यक्रम में कालेधन को लेकर अपनी राय लोगों के सामने रखी थी और अघोषित संपत्ति का खुलासा 30 सितंबर से पहले करने को कहा था.
प्रधानमंत्री के ‘मन की बात’ कार्यक्रम पर नि शाना साधते हुए शिवसेना ने लेख का शीर्षक ‘चाय से ज्यादा केतली गरम… मन की बात!’ दिया है. शिवसेना के मुख्सपत्र में कालेधन को केंद्र में रखकर यह लेख लिखा गया है. लेख में तंज कसते हुए कहा गया है कि , ‘देश बदल रहा है, लेकिन हमें मुफ्त चाय नहीं चाहिए? चुनाव से पहले जो आपने वादा किया था उसके अनुसार हमारे बैंक खाते में 15 लाख रुपये कब जमा करते हो, पहले बताओ? ऐसा कोई व्यक्ति चाय की चुस्की मारते हुए पूछे तो क्या उसका जवाब क्या होगा? उसे मारें, जलाएं या पकड़ें, ऐसा सवाल कुछ लोगों के मन में स्वभाविक तौर पर उठ सकता है.’
‘सामना’ में ऐसा सवाल पूछने वालों के लिए जवाब का उल्लेख भी है जिसके अनुसार – ‘बाबा रे, प्रधानमंत्री मोदी 50 साल की गंदगी साफ करने में लगे हैं. उनके हाथ में छड़ी जरूर है, लेकिन वह जादू की छड़ी मालूल नहीं होती. इसलिए सिर्फ दो साल में सब कुछ बदल जाएगा, ऐसी उम्मीद पालने की गलती मत करो. प्रधानमंत्री को कुछ और समय दो.’
शिवसेना ने सामना में लिखा है कि कालाधन उद्योगपति, फिल्मवाले और आतंकवादी संगठनों के साथ राजनीति में भी प्रचुर मात्रा में मिलता है. कालाधन ढूंढने के लिए स्विट्जरलैंड या मॉरिशस जाने की आवश्यकता नहीं है. कालाधन हमारे खुद के घर में है, उसे खोदकर निकाले तो भी मोदी जी का मिशन काला धन सफल हो जाएगा. लेख में आगे लिखा गया है कि मोदी के ‘मन की बात’ कड़क चाय के समान है, लेकिन मुंबई में कालेधन पर लोग ‘मन की बात’ सुने इसलिए कई स्थानों पर मुफ्त में ‘चाय-पानी’ की करवाई गई.
संपादकीय में लिखा गया है कि अगर कोई सिरफिरा सच बोलने की हिम्मत करता है इसलिए उसे मारा जाए, जलाया जाए यह बोलना हमारी संस्कृति के अनुसार उचित नहीं है.