पुलिस ने रामवृक्ष समेत 27 लोगों को जिंदा पकड़ा और उसके बाद…

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जवाहर बाग कांड को लेकर अब मथुरा में लोग जुबान खोलने लगे हैं। एक सिपाही की बात पर अगर यकीन किया जाए तो वह दो जांबाजों की शहादत के बाद भी अपने विभाग को ही कठघरे में खड़ा कर रहा है। वह खुद सीबीआई जांच को जरूरी बताकर पुलिस के किए पर गंभीर सवाल उठा रहा है। इतना ही नहीं, उसका दावा यह भी है कि पुलिस ने रामवृक्ष को परिवार समेत जिंदा पकड़ लिया था, बाद में उसे मारा गया।

मथुरा पुलिस लाइन पर एक सिपाही ने जवाहर बाग कांड पर बमुश्किल बात की। सिपाही (जिसकी बातचीत रिकार्ड है) की बातें पुलिस कार्रवाई को सवालों के घेरे में खड़ा कर रही हैं। हालांकि उसकी बातों में कितनी सच्चाई है यह दीगर बात है। उसका कहना है कि पुलिस अफसरों ने कार्रवाई को छिपाया। कार्रवाई सुबह करनी चाहिए थी, भीड़ की तादाद का अंदाजा आसानी से लग जाता। उसने दावा किया कि अफसरों की मौत के बाद पुलिस ने रामवृक्ष समेत 27 लोगों को पकड़ लिया था।

सिपाही का दावा है कि सभी को पुलिस लाइन के सभागार में लाया गया। लखनऊ के एक अफसर को यह सब बताया भी गया। बकौल सिपाही उसके बाद सभी को मारकर आग में फेंका गया। रामवृक्ष को मारने के बाद भी शिनाख्त नहीं की। उसको साजिश के तहत दो दिन लापता दिखाया। पांच हजार का इनाम घोषित करने के बाद मरा हुआ दिखा दिया। सिपाही का कहना है कि जवाहर बाग में काफी लोगों की जान ली गई। कुछ को शवदाह गृह में जला दिया गया।

जवाहर बाग के नजदीक मवई कालोनी के एक दुकानदार का कहना है कि पुलिस ने कार्रवाई के दौरान अंदर किसी को नहीं जाने दिया। पर अब काफी तादाद में लोगों के मरने की चर्चा है। लेकिन सच्चाई तो पुलिस वाले ही बता सकते हैं। इसी कालोनी के बीटेक कर रहे एक छात्र का कहना था कि पुलिस के साथ भीड़ भी थी। भीड़ ने भी मारा। इसी कालोनी के एक बुजुर्ग का कहना था कि जितने मुंह उतनी बात। मरने वालों की तादाद ज्यादा हो सकती है। अगर मरने वाले मथुरा के होते तो सच का पता चल जाता लेकिन सभी दूसरे प्रदेश के थे। उनका कोई अब यहां है नहीं।
कब्जेधारी बड़ी तादाद में घायल हुए। उनको पकड़कर जेल भेजा गया। अस्पतालों में भर्ती कराया गया। लेकिन घायलों से मिलने पर पुलिस का पहरा है। हालांकि बातचीत में लोग अब कहने लगे हैं कि बाग के भीतर का सच पुलिस और कब्जेधारी ही जानते है। अगर घायलों से बात करा दी जाए तब सारी असलियत सामने आ जाएगी।

जवाहर बाग की घटना के बाद ड्यूटी पर तैनात एक पुलिस अफसर ने माना कि अफसरों की मौत के बाद फायरिंग की गई। हालांकि उनका कहना था कि गोली पैरों में मारने के निर्देश दिए गए थे। भीड़ को निकालने के लिए पुलिस ने दो जगह से बाउंड्री तोड़ी। ताकि पुलिस के दबाव बनाने पर वह भाग सके, लेकिन लोग नहीं भागे। वहां तैनात एक दारोगा का तर्क था कि भीड़ ने झोपड़ियों में आग लगाई ताकि पुलिस उससे डरकर भागे। दारोगा का कहना था कि पुलिस पर हमले के बाद जवाबी कार्रवाई की गई।