कोरोनावायरस के कारण पूरी दुनिया ने सोशल डिस्टेंसिंग के बारे में सीखा है। लेकिन पाकिस्तान में हिंदू कुश पहाड़ों से घिरे एक रहस्यमयी जनजाति बरसों से इसका पालन कर रही है। कलाश नामक यह समुदाय इन दिनों अपना सबसे बड़ा त्योहार चेमॉस (Chawmos) मना रहा है। बता दें कि इस समुदाय में केवल 4,000 लोग हैं। पाकिस्तान के अफगानिस्तान से सटे बॉर्डर पर सटी कलाश जनजाति पाकिस्तान के सबसे कम संख्या वाले अल्पसंख्यकों में है। इस समुदाय की परंपराओं को हिन्दू जाति की प्राचीन मान्यता से जोड़ा जाता है।
बता दें कि साल 2018 में पाकिस्तान की जनगणना के दौरान पहली बार इस जनजाति को एक अलग जनजाति के तौर पर शामिल किया गया था। इस समुदाय के लोग यहां मिट्टी, लकड़ी और कीचड़ से बने छोटे-छोटे घरों में रहते हैं और किसी भी त्योहार पर औरतें-मर्द सभी साथ मिलकर शराब पीते हैं। अपने सबसे बड़े त्योहार को ये लोग पर्व मंदिर में मनाते हैं जिसको jestekan कहते हैं। घर के पुरुष ब्रेड बेक करते हैं और महिलाओं को देते हैं। इसके बाद एक खास प्रक्रिया होती है, जिसे शुद्धिकरण कहते हैं। इसके बाद त्योहार शुरू हो जाता है, जो पूरे 14 दिन तक चलता है। इस दौरान मिलने वाले लोग एक-दूसरे को फल और मेवे तोहफे में देते हैं। छोटे-छोटे मेले भी लगते हैं।

इस त्योहार के मौके पर महिलाएं -पुरुष और लड़के-लड़कियां आपस में मेल-मुलाकात करते हैं। इन जातियों में इतना खुलापन है कि अगर किसी महिला को दूसरा पुरुष पसंद आ जाए तो वह उसके साथ रह सकती है। वे पति चुनती हैं, साथ रहती हैं लेकिन अगर शादी में साथी से खुश नहीं हैं और कोई दूसरा पसंद आ जाए तो बिना हो-हल्ला वे दूसरे के साथ जा सकती हैं। इस समुदाय के तौर तरीके सबसे अलग हैं। अगर किसी की मौत हो जाती है तो यह लोग दुखी होने की जगह जश्न मनाते हैं। क्रियाकर्म के दौरान ये लोग जाने वाले के लिए खुशी मनाते हुए नाचते-गाते और शराब पीते हैं। वे मानते हैं कि कोई ऊपरवाले की मर्जी से यहां आया और फिर उसी के पास लौट गया।














