2 अक्‍टूबर 1994, मुजफ्फरनगर रामपुर तिराहा कांड, इतना भयानक कि…

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देहरादूनर : 2 अक्टूबर का दिन उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन का वो काला दिन था, जिसके बारे में आज भी याद कर राज्य आंदोलनकारी सिहर उठते हैं। आंदोलनकारियों पर ऐसी बर्बता की गई, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी। गोलियां दागी गई। महिलओं के साथ अभद्रता की गई।

उत्तराखंड राज्य निर्माण की मांग को लेकर आंदोलनकारी बस से दिल्ली जा रहे थे। दो अक्टूबर 1994 को मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा में तत्कालीन यूपी के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के कहने पर पुलिस ने गोलियां चला दी।

उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी मंच के जिलाध्यक्ष प्रदीप कुकरेती का कहना है कि 28 साल पहले दो अक्टूबर को दिल्ली के जंतर-मंतर पर अलग राज्य के लिए प्रदर्शन करना तय हुआ तो गढ़वाल और कुमाऊं से बसों में भरकर लोग दिल्ली के लिए रवाना हुए। काफी संख्या में होने के कारण आंदोलनकारी आगे बढ़े और मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा पहुंचे जहां फायरिंग, लाठीचार्ज और पथराव कर दिया गया। ऐसा अत्याचार जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता है।

पूरा घटनाक्रम 1 अक्टूबर, 1994 को शुरू होता है। आंदोलनकारी उत्तर प्रदेश से अलग कर पहाड़ी प्रदेश की मांग कर रहे थे। राज्य आंदोलनकारी दिल्ली में प्रदर्शन करने के लिए इस पर्वतीय क्षेत्र की अलग-अलग जगहों से 24 बसों में सवार हो कर 1 अक्टूबर को रवाना हो गये। देहरादून से आंदोलनकारियों के रवाना होते ही इनको रोकने की कोशिश की जाने लगी। इस दौरान पुलिस ने रुड़की के गुरुकुल नारसन बॉर्डर पर नाकाबंदी की, लेकिन आंदोलनकारियों की जिद के आगे प्रशासन को झुकना पड़ा और फिर आंदोलनकारियों का हुजूम यहां से दिल्ली के लिए रवाना हो गया। लेकिन, मुजफ्फरनगर पुलिस ने उन्हें रामपुर तिराहे पर रोकने की योजना बनाई और पूरे इलाके को सील कर आंदोलनकारियों को रोक दिया।

आंदोलनकारियों को पुलिस ने मुजफ्फरनगर में रोक तो लिया। लेकिन, आंदोलनकारी दिल्ली जाने की जिद पर अड़ गए. इस दौरान पुलिस से आंदोलनकारियों की नोकझोंक शुरू हो गई. इस बीच जब राज्य आंदोलनकारियों ने सड़क पर नारेबाजी शुरू कर दी तो अचानक यहां पथराव शुरू हो गया, जिसमें मुजफ्फरनगर के तत्कालीन डीएम अनंत कुमार सिंह घायल हो गए, जिसके बाद यूपी पुलिस ने बर्बरता की सभी हदें पार करते हुए राज्य आंदोलनकारियों को दौड़ा-दौड़ाकर लाठियों से पीटना शुरू कर दिया और लगभग ढाई सौ से ज्यादा राज्य आंदोलनकारियों को हिरासत में भी ले लिया गया।

यूपी पुलिस की बर्बरता यहीं नहीं थमी। देर रात लगभग पौने तीन बजे यह सूचना आई कि 42 बसों में सवार होकर राज्य आंदोलनकारी दिल्ली की ओर बढ़ रहे हैं। ऐसे में यह खबर मिलते ही रामपुर तिराहे पर एक बार फिर भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया। जब 42 बसों में सवार होकर राज्य आंदोलनकारी रामपुर तिराहे पर पहुंचे तो पुलिस और राज्य आंदोलनकारियों के बीच झड़प शुरू हो गई। इस दौरान आंदोलकारियों को रोकने के लिए यूपी पुलिस ने 24 राउंड फायरिंग की, जिसमें सात आंदोलनकारियों की जान चली गई और 17 राज्य आंदोलनकारी बुरी तरह घायल हो गए।

मुजफ्फरनगर कांड के बाद उत्तर प्रदेश से अलग राज्य की मांग ने और जोर पकड़ लिया क्योंकि मुजफ्फरनगर में हुई बर्बरता के बाद राज्य आंदोलनकारियों और प्रदेश के लोगों में गुस्सा भड़क गया था। राज्य की मांग को लेकर प्रदेश भर में धरना और विरोध प्रदर्शनों का दौर चलने लगा। आंदोलन की आग इस कदर भड़की कि युवाओं, बुजुर्गों के साथ-साथ स्कूली बच्चे भी आंदोलन की आग में कूद पड़े थे। रामपुर में हुए तिराहा कांड के बाद करीब 6 साल तक आंदोलनकारियों के संघर्ष का ही नतीजा रहा कि सरकारों को इस मामले में गंभीरता से विचार करना पड़ा और 9 नवंबर, 2000 को उत्तर प्रदेश से अलग राज्य उत्तरांचल बना। बाद में नाम बदलकर उत्तराखंड कर दिया गया।