नौटियाल जी की रचनाएं समाज और देश को सदैव प्रेरित करेंगी – भगत सिंह कोश्यारी

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मुंबई : ‘‘किसी साहित्यकार की रचना धर्मिता किसी कथाकार की तरह नहीं होती जो समाज का केवल एक सफ़ेद पहलू ही देखता है, लेखक सफ़ेद और स्याह दोनों पहलुओं को देखता है। नंदकिशोर नौटियाल ने भी अपने इस उपन्यास एक महानगर दो गौतम में समाज के स्याह और सफ़ेद दोनों पहलुओं को उजागर किया है।’’ यह बात माननीय राज्यपाल महोदय ने राजभवन में आयोजित स्व. श्री नंदकिशोर नौटियाल के उपन्यास ‘एक महानगर दो गौतम’ के विमोचन समारोह में बोलते हुए कही।

राष्ट्रीय साप्ताहिक नूतन सवेरा की ओर से वरिष्ठ पत्रकार लेखक और संपादक स्व. श्री नंदकिशोर नौटियाल की औपन्यासिक कृति एक महानगर दो गौतम के विमोचन का यह कार्यक्रम 15 फरवरी को मुंबई के राजभवन के लॉन में आयोजित किया गया था। इस कार्यक्रम में अतिथि के रूप में नवनीत के संपादक विश्वनाथ सचदेव, पूर्व मंत्री कृपाशंकर सिंह, वरिष्ठ कथाकारा डॉ. सूर्यबालाजी, कथाकार भुपेन्द्रभाई पांड्या उपस्थित थे। समारोह की अध्यक्षता माननीय राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने की।

नूतन सवेरा के प्रबंध निदेशक राजीव नौटियाल ने अतिथियों का स्वागत किया। संयोजक सुबोध शर्मा और बी आर भट्टड़ ने राज्यपाल का स्वागत पुष्पगुच्छ और सम्मान चिन्ह देकर किया। स्वर्गीय नौटियाल की स्मृति में पद्मश्री अनूप जलोटा ने भजन संध्या का कार्यक्रम प्रस्तुत किया। महानगर के अति विशिष्ठ लोगों से खचाखच भरे पांडाल में राजनीतिक और सामाजिक पृष्ठभूमि पर आधारित इस उपन्यास के बारे में बोलते हुए राज्यपाल महोदय ने कहा कि लेखक और कवि अपने लेखन के माध्यम से समाज को ही प्रतिबिंबित करता है। यही उसकी विशेषता है। नंदकिशोर नौटियाल ने भी अपने इस उपन्यास में समाज और राजनीति के स्याह और सफ़ेद दोनों पहलुओं को उजागर किया है। उन्होंने मुख्य अतिथि के रूप में पधारे नवनीत के संपादक विश्वनाथ सचदेव को इंगित करते हुए कहा कि नंदकिशोर नौटियाल जी ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में जो इस उपन्यास को लिखा है, वह सचमुच उनके जीवन भर का नवनीत है।

इससे पहले नवनीत के संपादक विश्वनाथ सचदेव ने अपने उद्बोधन में कहा कि इस साहित्यिक रचना का लोकार्पण राजभवन में हो रहा है। लोक और सत्ता को, लोक और शासन को, लोक और राजनीति को जोड़ने का यह जो सम्मलेन है, यह अपने आप में एक विलक्षण घटना है। उन्होंने उपन्यास की पृष्ठभूमि पर बोलते हुए कहा कि इसकी कहानी और इसका परिदृश्य हमारे अपने आज के समय का है। उन्होंने उपन्यास में वर्णित अंतरराष्ट्रीय माफियाओं की कार्यप्रणाली और अपराध जगत की बारीकियों पर बोलते हुए कहा कि आश्चर्य होता है कि नंदकिशोर नौटियालजी को इतनी बारीकी से सारी चीजें पता थीं। इतना ही नहीं इस उपन्यास को पढ़ते समय ऐसा लगता है कि यह तो हमारे आस पास घटित हो रहा है। इस उपन्यास के सारे पात्र हमारे देखे और समझे लगते हैं। ऐसा लगता है कि इस पात्र को तो मैं जनता हूँ। यही इस उपन्यास की विशेषता है।

सचदेवजी ने उपन्यास की भूमिका में लिखे नंदकिशोर नौटियाल के शब्दों का उल्लेख करते हुए कहा कि एक होड़ सी चल पड़ी है हमारे इस ज़माने में जिस ज़माने में हम जी रहे हैं। यह होड़ तेजी से ऊपर उछलने की है, यह होड़ तेजी से नीचे फिसलने की है। इस ऊपर उछलने और फिसलने की होड़ को नौटियाल जी ने बड़े सुन्दर ढंग से और बड़े संयम से गूंथा है। यह जो एक महानगर और दो गौतम की कहानी है, यह राजनीति और अपराध के रिश्तों की कहानी है। इस कहानी को पढ़ते समय यदि हम थोड़ा सा भी गहराई में इसे समझने की कोशिश करते है तो हमें लगता है कि यह जो हमारे सामने की दुनिया है यह जो हमारा संसार है इसमें यह सबकुछ हो रहा है।

हिंदी कथा साहित्य की मूर्धन्य कथाकारा डॉ. श्रीमती सूर्यबालाजी ने नंदकिशोर नौटियाल के व्यक्तित्व की चर्चा करते हुए कहा कि नंदकिशोर नौटियालजी महज एक पत्रकार ही नहीं थे वे अपने आप में पूरा महानगर थे। साहित्य, समाज और राजनीति का कोई भी कार्यक्रम नौटियालजी के बिना पूरा नहीं होता था। उन्होंने कहा कि मुझे नहीं पता था कि नौटियालजी के अंदर एक संजीदा उपन्यासकार भी छिपा था। इस अवसर पर विशेष रूप से पधारे कथाकार भुपेन्द्रभाई पंड्या ने भी अपने विचार प्रगट किये।

इससे पहले कार्यक्रम का संचालन अनिल त्रिवेदी ने किया जबकि कार्यक्रम के अंत में भारत नौटियाल ने आभार प्रगट किया। इस अवसर पर नौटियाल जी की पत्नी श्रीमती रुक्मिणी नौटियाल, अनिल गलगली, अनुराग त्रिपाठी, हरि मृदुल, श्रीनारायण अग्रवाल, प्रशांत शर्मा, जगदीश पुरोहित, सत्यनारायण अग्रवाल, रमेशभाई मेहता, एस पी तुलसियान, दिनेश नंदवाना, पूर्णेंदु शेखर, एस पी एस यादव, मोहन काला, माधवानंद भट्ट, कमला बडूनी, सुशीला गुप्ता, चंद्रकांत जोशी, हेमराज शाह, केशरसिंह बिष्ट, अरविंद तिवारी समेत साहित्य और पत्रकारिता जगत के कई दिग्गज समेत अनेक गणमान्य उपस्थित थे। मंच का संचालन अनिल त्रिवेदी ने किया। आभार भारत नौटियाल ने माना।