मध्यकाल में योरोपीय समाज में सभ्यता का एक नया मापदंड स्थापित हुआ और वो यह कि सभ्य वही है जो शक्तिशाली है, शासक है जबकि अन्य बर्बर या दस्यु हैं जिन्हें दास बनाकर रखना चाहिए। इससे सभ्यता का विकास और सुव्यवस्था संपन्न होती है। बर्बर और अन्धकारग्रस्त लोगों को अपने अधीन लाकर उन्हें सभ्यता का पाठ पढ़ाना चाहिए। योरोपीय समाज की यह विचारधारा साम्राज्यवाद का वायस बनी। भारत भी इससे अछूता नहीं रहा। कालांतर में जागरण काल और फिर पुनर्जागरण काल में हुए अनेक आंदोलनों ने इस विचारधारा को नकारना शुरू किया परिणाम हुआ साम्राजयवाद का खात्मा।
इन आंदोलनों में राजनीतिक और सामाजिक के साथ-साथ जो आंदोलन सबसे अधिक सफल हुआ वह था भाषाई आंदोलन। इस भाषाई आंदोलन में हिंदी पत्रकारिता का बहुत बड़ा योगदान था। आज़ादी के बाद की हिंदी पत्रकारिता ने भारतीय जीवन में एक नया संतुलन स्थापित करने का बीड़ा उठाया। उस काल खंड पर नजर डालें तो सबसे प्रमुख नाम जो उभरकर आता है वह है ”ब्लिट्ज” और नंदकिशोर नौटियाल का नाम।
मुंबई के श्रीमंत समाज में ‘पंडितजी’ और पत्रकारिता के साथ-साथ साहित्य जगत में ‘बाबूजी’ के नाम से प्रख्यात नौटियालजी ने यूं तो अपनी पत्रकारिता का श्रीगणेश 1948 में दिल्ली से किया लेकिन हालात कुछ ऐसे हुए कि दिल्ली छोड़कर बम्बई (अब मुंबई) आना पड़ा। मुंबई में नौटियाल जी ने अपनी पत्रकारिता के माध्यम से भारतीय समाज में जगह-जगह बिखरी असमानता की खाई को भरने का भरपूर काम किया। असमानता की यह खाई सभ्यता के उस मापदंड से उपजी थी जो योरोपीय विचारों की देन थी। यही कारण था कि हिंदी ”ब्लिट्ज,” जिसके संपादक नौटियालजी थे, ने पत्रकारिता के उस नए छितिज को छुआ जहाँ अभी तक कोई नहीं पहुँचा था। नौटियालजी का जुझारूपन और पत्रकारिता के प्रति समर्पण ने उन्हें विशेष की श्रेणी में स्थापित कर दिया। उनकी यह कार्यप्रणाली आज की पीढ़ी के पत्रकारों के लिए एक आदर्श भी है।
असमानता के खड्डों को भरने के लिए नौटियाल जी ने मजदूर आंदोलनों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। अपनी पेशेवर जिम्मेदारी को निभाते हुए वह हर उस शख्स के साथ पूरी निष्ठा से खड़े होते जो तथाकथित सभ्य समाज की सभ्यता के औजार थे। यह नौटियालजी का मानवीय पहलू था, आज भी है। बड़ा दिल, ऊँचा हौसला और परोपकार की उदात्त भावना। श्रेय लेने पूरी तरह इंकार कर देने वाले एक श्रेष्ठ इंसान।
मुंबई के सहित्य जगत के अलावा धनिक वर्ग के बहुत सारे लोगों के लिए संकटमोचक भी थे नौटियालजी। कैसी भी दुरूह परिस्थिति या संकट आसन्न हो नौटियालजी के अनुभवों की थाती से एक समस्या के कई निदान निकलकर बाहर आ जाते। अपने परोपकारी स्वभाव के चलते उन कठिन कार्यों में भी नौटियाल जी हाथ डाल देते हैं जिन्हें दूसरे अक्सर असंभव कहकर टाल देते हैं लेकिन नौटियालजी के शब्दकोष में यह शब्द है ही नहीं।
नौटियाल जी की 70 वर्षीय पत्रकारिता 20 वीं शती के आधे से अधिक हिंदी पत्रकारिता के पन्नों पर लेखों, समाचारों, रिपोर्टों, और सम्पादकीय आदि के विभिन्न रूपों में दर्ज है जो किसी ऐतिहासिक दस्तावेज से कम नहीं है। जीवन में सहस्र चन्द्रदर्शन कर लेने वाले नौटियालजी आज भी उसी शिद्दत, उत्साह और निष्काम भाव से कार्यरत हैं। उनकी पत्रकारिता आज भी 20 वर्ष की युवा है।
वर्तमान में ”नूतन सवेरा” उनकी पत्रकारिता का नया आयाम है। आज भी नौटियाल जी भारतीय जीवन की उस असमानता को मिटने के लिए प्रयत्नशील हैं जो कभी शक्तिशाली और सामंत वर्ग ने पैदा की और वर्तमान में राजनीति कर रही है।
नौटियालजी सकारात्मक ऊर्जा के अजस्र स्रोत कहे जा सकते हैं। उन्हें पढ़ना और सुनना सकारात्मकता से भर देता है। उनकी पत्रकारिता भी सकारात्मक है। वर्तमान की सनसनीखेज़ खबरें, जो कि वास्तव में होती नहीं हैं उसे जबरन बनाया जाता है, को लेकर नौटियालजी का कहना है कि इससे समाज में नकारात्मकता का भाव पनपता है, इससे बचना चाहिए। उनका दृष्टिकोण सामाजिक है, उदारवादी है, धर्मनिरपेक्ष है, प्रगतिशील है और इसी की वे संस्तुति करते भी हैं।
नौटियाल जी को उनके 88वें जन्मदिन पर विशेष शुभकामनाओं और उनके शतायु होने, स्वस्थ होने की शुभकामना के साथ –
– पी कुमार ‘संभव’
# पत्रकारिता के आधार स्तम्भ माननीय नौटियाल जो को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाये !
Comments are closed.