परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में शामिल होने से वंचित रहने के तीन दिन बाद आज सोमवार को भारत मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम (एमटीसीआर) का सदस्य बन जाएगा। एमटीसीआर दुनिया के चार महत्वपूर्ण परमाणु प्रौद्योगिकी निर्यात करने वाले महत्वपूर्ण देशों के समूह में से एक है।
भारत ने पिछले वर्ष एमटीसीआर की सदस्यता के लिए आवेदन किया था। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने इस आशय की जानकारी देते हुए कहा कि एनएसजी पर भारत अपना प्रयास जारी रखेगा।
विदेश सचिव एस जयशंकर सोमवार को फ्रांस, नीदरलैंड और लक्जमबर्ग के राजदूतों की मौजूदगी में इस क्लब में शामिल होने के लिए दस्तावेज पर हस्ताक्षर करेंगे। विकास स्वरूप ने एनएसजी की सदस्यता न मिलने को असफलता मानने से इनकार करते हुए कहा कि इस मामले में हमें अपेक्षित परिणाम नहीं मिले।
एकमात्र देश ने भारत की सदस्यता के दावे का विरोध किया था। गौरतलब है कि परमाणु प्रौद्योगिकी निर्यात करने वाले समूहों में भारत के शामिल होने की इच्छा वर्षों पुरानी है। इस क्रम में भारत ने एमटीसीआर और एनएसजी के लिए जोर लगाया था।
भविष्य में उसका इरादा इससे संबंधित दो अन्य समूहों ऑस्ट्रेलियन ग्रुप और वास्सेनार एग्रीमेंट में शामिल होने की है। एनएसजी में हालांकि भारत चीन के विरोध की दीवार नहीं लांघ पाया।
मगर एमटीसीआर में अंत समय में इटली का विरोध छोड़ने के बाद भारत का रास्ता साफ हो गया। स्वरूप ने बताया कि सोमवार को भारत एमटीसीआर का पूर्ण रूप से सदस्य बन जाएगा। उन्होंने कहा कि एनएसजी मामले में भारत की पाकिस्तान से तुलना कहीं से उचित नहीं है।
एमटीसीआर का सदस्य बनने से भारत को प्रमुख उत्पादनकर्ताओं से अत्याधुनिक मिसाइल टेक्नोलॉजी और निगरानी प्रणाली खरीद में मदद मिलेगी, जिसे केवल एमटीसीआर सदस्य देशों को ही खरीदने की इजाजत है। सदस्य होने के बाद भारत पर लगा अंकुश हट जाएगा।
भारत के लिए अमेरिका से ड्रोन तकनीकी लेना सरल हो जाएगा। साथ ही भारत मिसाइल तकनीकी का निर्यात कर सकेगा। हेग आचार संहिता में शामिल होने को मजबूती मिलेगी।
यह संहिता बैलेस्टिक मिसाइल अप्रसार संधि की निगरानी करती है। इसके साथ ही रूस के साथ संयुक्त उपक्रम को बल मिलेगा।
एमटीसीआर का उद्देश्य मिसाइलों के प्रसार को प्रतिबंधित करना, रॉकेट सिस्टम को पूरा करने के अलावा मानव रहित जंगी जहाजों पर 500 किलोग्राम भार के प्रक्षेपास्त्र को 300 किलोमीटर तक ले जाने की क्षमता वाली तकनीक को बढ़ावा देना है। व्यापक विनाश वाले हथियारों और तकनीक पर पाबंदी लगाना इस समूह का उद्देश्य है।