झारखंड में इन दिनों माओवादी लॉटरी सिस्टम के जरिये बच्चों की भर्ती कर रहे हैं. द हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक उग्रवादियों की यह नई रणनीति सुरक्षा बलों द्वारा बीते कुछ समय के दौरान उनके खिलाफ चलाए गए तेज अभियान का नतीजा है जिसके चलते उनके लड़ाकों की तादाद काफी कम हुई है.
आदिवासी इस ‘अन’लकी ड्रा से परेशान हैं.
बताया जाता है कि गुमला के जामटी, बोरहा, निराशी, कुमारी, रेहलदाग और कटिया जैसे इलाकों में माओवादियों ने अपना भर्ती अभियान तेज कर दिया है. यह सीपीआई (माओवादी) के प्रभाव वाला इलाका है. रिपोर्ट के मुताबिक वे गांव वालों को जमा करते हैं. इसके बाद जिनके एक से ज्यादा बच्चे हैं उनके और उनके बच्चों के नाम चिट में लिखे जाते हैं. सभी चिटों को एक बर्तन में डाल दिया जाता है. इसके बाद ड्रॉ होता है. यानी तय संख्या में इन चिटों को निकाला जाता है और जिसका नाम इन पर लिखा होता है उसे माओवादी अपने साथ ले जाते हैं चाहे वह लड़का हो या लड़की.
माओवादियों का कहना है कि लॉटरी का यह तरीका इसलिए है कि कोई उनके खिलाफ किसी पूर्वाग्रह का आरोप न लगा सके. उनके मुताबिक मां-बाप अपनी इच्छा से बच्चों को सौंपने के लिए तैयार नहीं थे इसलिए उन्होंने यह तरीका अपनाना शुरू कर दिया है.
माओवादी बाल दस्ते पहले भी रखते रहे हैं. वे अक्सर यह भी कहते रहे हैं कि लोग अपने बच्चों को स्वेच्छा से उन्हें देते हैं. पारंपरिक रूप से इन बच्चों का इस्तेमाल कंप्यूटर ट्रेनिंग या इसी तरह के दूसरे कम जोखिम वाले कामों के लिए ही होता रहा है. लेकिन जब से उग्रवादियों ने बच्चों को हथियार थमा कर उन्हें लड़ाई में इस्तेमाल करना शुरू किया है और उन पर लड़कियों के यौन शोषण के आरोप लगने लगे हैं तो अब कोई भी नहीं चाहता कि उनके बच्चे किसी माओवादी गुट में शामिल हों.
रिपोर्ट के मुताबिक इस नए लॉटरी सिस्टम ने ग्रामीणों में डर पैदा कर दिया है. कई लोग अब 12 से 19 साल की उम्र के अपने बच्चों को दूसरे राज्यों में रह रहे अपने रिश्तेदारों के पास भेज रहे हैं. यही वजह है कि माओवाद से प्रभावित गांवों में कोई किशोर अब मुश्किल से ही दिखता है.
38 साल के फांडू मुंडा गुमला में छिपकर रहते हैं. रिपोर्ट के मुताबिक उनका कहना है कि माओवादी नेता सिल्वेस्टर ने जबरन उनकी बेटी संजीता को उठा लिया था. संजीता की उम्र तब 11 साल थी. बाद में उसे गुरिल्ला फाइटर बना दिया गया. मुंडा बताते हैं कि छह साल बाद संजीता ने जब वह जिंदगी छोड़कर फिर से नई शुरूआत करनी चाही तो माओवादियों ने उस पर पुलिस का मुखबिर होने का इल्जाम लगाया और उसकी हत्या कर दी.
अतीत में माओवादी नेता इससे इनकार करते रहे हैं कि वे बच्चों को लड़ाका बनाने के लिए उनकी भर्ती करते हैं. कुछ समय पहले एक माओवादी गुट के प्रवक्ता दीनबंधु का कहना था, ‘हम 16 साल से कम उम्र वाले बच्चों को कभी हथियार नहीं देते.’ लेकिन गांव वाले इससे इससे इनकार करते हैं. वे कहते हैं कि जिन परिवारों में एक से ज्यादा बच्चे हैं उन्हें माओवादी धमकी देते हैं कि वे अपनी मर्जी से कम से कम एक बच्चा उन्हें दे दें
सूत्रं के मुताबिक गांव वाले डर के मारे माओवादियों की कारगुजारियों की शिकायत पुलिस में दर्ज नहीं करते इसलिए पुलिस के पास भी बच्चों की जबरन भर्ती से संबंधित कोई रिकॉर्ड नहीं है. पुलिस का भी कहना है कि उसे इस लॉटरी सिस्टम के बारे में कोई जानकारी नहीं है. रिपोर्ट के मुताबिक गुमला के एसपी भीमसेन टूटी कहते हैं, ‘माओवादियों ने निश्चित रूप से गांववालों पर अपने बच्चों को उन्हें देने के लिए दबाव बढ़ा दिया है. लेकिन हमारे पास इस बारे में कोई सूचना नहीं है कि वे लॉटरी के जरिये बच्चों को ले जा रहे हैं.’
टूटी की अगुवाई में पुलिस ने बीते हफ्ते तीन दिनों तक प्रभावित गांवों में सघन अभियान चलाया था. लेकिन जल्द ही माओवादी फिर लौट आए. अब गांव वाले मांग कर रहे हैं कि उनके यहां पुलिस के स्थायी कैंप लगाए जाएं.