अशोभनीय और अमानवीय

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अशोभनीय और अमानवीय

                                                                                     – किशन शर्मा

मैं प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी का प्रशंसक रहा हूँ, परंतु दिन-ब-दिन मेरी धारणाएं बदलती जा रही हैं और प्रशंसा का स्थान दुखभरी और क्षोभदायी भावनाओं से भरी आलोचना लेती जा रही है । मैं कभी भी किसी भी राजनीतिक दल से जुड़ा भी नहीं रहा हूं और किसी भी राजनीतिक दल का विरोधी भी नहीं रहा हूं ।

एक कलाकार और निष्पक्ष नागरिक के रूप में “जो भी प्यार से मिला, हम उसी के हो लिये” की भावनाओं से प्रेरित होकर उन सभी के प्रति आदर और स्नेह रखता रहा हूं, जिन्होंने मुझे स्नेह दिया, मान दिया, अपनापन दर्शाया, और पहचान बनाये रखी । देश के सभी राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री, अनगिनत केन्द्रीय मंत्री, अनेक राज्यों के राज्यपाल और मुख्य मंत्री, महाराष्ट्र के सभी राज्यपाल और मुख्य मंत्री तथा प्रधान न्यायाधीश, सेना के तीनों अंगों के प्रमुख, अन्य सुरक्षा बलों के प्रमुख, अनेक विदेशी हस्तियों, फ़िल्मी हस्तियों, वरिष्ठ पत्रकारों, उद्योगपतियों, डाक्टरों आदि ने मुझे सदैव स्नेह और अपनापन ही दिया है । मैं भी सभी का पूरा पूरा आदर करता रहा हूं । केवल मंच संचालक या गायक के रूप में ही नहीं बल्कि व्यक्तिगत मित्र के रूप में भी मुझे अनेक गणमान्य व्यक्तित्वों के निकट रहने के अनेक अवसर मिलते रहे हैं ।

वर्तमान प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी जब गुजरात के मुख्य मंत्री थे, तब मुझे जानते थे; परंतु प्रधान मंत्री बनने के बाद मेरे पत्रों के उत्तर तो दूर, उनकी प्राप्ति की सूचना तक मुझे कभी नहीं मिल सकी । इसलिये मैंने पिछले काफ़ी समय से उन्हें किसी भी विषय पर पत्र लिखना ही बंद कर दिया है । फ़िर भी मैं लंबे समय तक उनका प्रशंसक बना रहा । अब मेरी व्यक्तिगत भावनाओं को थोडी ठेस लगने लगी है, और मैं उनका विरोधी तो नहीं बन गया हूं, परंतु कभी कभी आलोचक अवश्य बनने लगा हूं । मैं जिन बातों से आहत होता गया हूं, उन बातों का उल्लेख करना भी आवश्यक है ।

पहली बात तो यह है कि एक प्रधान मंत्री की भाषा कभी भी स्तरहीन नहीं होनी चाहिये । दुर्भाग्यवश, नरेन्द्र मोदी, अपने विरोधियों पर कटाक्ष करते हुए उन्हीं की तरह की निम्नस्तरीय भाषा का प्रयोग करने लग जाते हैं । मैंने पंडित जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इन्दिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी, या मनमोहन सिंह को कभी निम्नस्तरीय भाषा का प्रयोग करते हुए नहीं सुना । प्रधान मंत्री के पद की गरिमा का सम्मान कम से कम स्वयं प्रधान मंत्री को तो रखना चाहिये । मेरा स्पष्ट मत है कि देश का प्रधान मंत्री, किसी एक दल का नहीं बल्कि सम्पूर्ण देश का नेता होता है और उसके शब्द तथा उसकी भाषा सदैव गरिमापूर्ण होनी चाहिये ।

नरेन्द्र मोदी अनेक बार ऐसे शब्दों और ऐसी भाषा का प्रयोग कर जाते हैं जो उनके पद के अनुरूप नहीं हैं और अशोभनीय लगते हैं । दूसरी बात यह है कि वे कुछ अवसरों पर कुछ अति विशिष्ट व्यक्तियों का जानबूझ कर अनादर सा कर जाते हैं । लाल कृष्ण आडवाणी एक अति सम्माननीय व्यक्तित्व हैं । वे पूर्व उप-प्रधान मंत्री भी हैं और वरिष्ठतम राजनेता भी हैं । उनको सार्वजनिक तौर पर दुर्लक्षित करने के कुछ अवसर कम से कम मैंने तो अवश्य देखे हैं ।

एक समारोह में मंच पर लाल कृष्ण आडवाणी खडे थे, उनके सामने से नरेन्द्र मोदी उनकी तरफ़ देखे बिना आगे बढ गये और उनसे बहुत छोटे कुछ अन्य नेताओं से रुक कर बात करते रहे । मैंने स्वयं देखा कि लाल कृष्ण आडवाणी को उन्होंने राजघाट पर भी पूरी तरह दुर्लक्षित किया । मुरली मनोहर जोशी के साथ भी ऐसा हुआ है । यह भी मेरे विचार से एक प्रधान मंत्री के लिये अशोभनीय ही है । तीसरी घटना अभी हाल ही में गुजरात में हुई है । सरदार पटेल की विश्व भर में सबसे ऊंची मूर्ति को जब राष्ट्र को समर्पित करने का समारोह आयोजित किया गया था, तब प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, गुजरात के दो भा0ज0पा0 नेता जो अब अलग अलग राज्यों के राज्यपाल हैं, गुजरात के मुख्य मंत्री तथा गुजरात के कुछ भा0ज0पा0 नेतागण तेज़ी से पूरे समारोह स्थल पर चले जा रहे थे । मैंने टेलीविज़न पर तो समारोह नहीं देखा, क्योंकि मैं टी0वी0 देखता ही नहीं हूं, परंतु मुझे पूरे समारोह का एक वीडियो प्राप्त हुआ, जिसे मैंने देखा । मुझे बहुत पीडा हुई यह देखकर कि गुजरात के राज्यपाल, प्रो0 ओ0 पी0 कोहली, जो शारीरिक रूप से दिव्यांग भी हैं और आयु के लिहाज से भी बहुत वरिष्ठ भी हैं, वे अपनी बेंत के सहारे सबसे पीछे धीरे धीरे हर जगह अकेले चल रहे थे ।

प्रधान मंत्री को तो यह मालूम था कि राज्यपाल दिव्यांग हैं और सबके साथ साथ पूरे विशाल स्थल पर नहीं चल सकते हैं । या तो प्रधान मंत्री को उन्हें पूरे समारोह स्थल पर पैदल चलने से मना कर देना चाहिये था, या पहले ही मूर्ति के स्थल पर पहुंच कर रुकने के लिये कह देना था, और या उनके लिये एक व्हील चेयर की व्यवस्था करवा देनी चाहिये थी । मैं राज्यपाल ओ0 पी0 कोहली का कष्ट से भरा चेहरा देखकर विचलित हो गया, और मैंने यह भी देखा कि वे हर जगह सबसे पीछे बेंत के सहारे बडी मुश्किल से पहुंच पा रहे थे । प्रधान मंत्री तथा मुख्य मंत्री सहित किसी भी नेता ने इस ओर या तो ध्यान ही नहीं दिया, या राज्यपाल की दशा को दुर्लक्षित करते रहे । मुझे यह अमानवीय व्यवहार लगा । मेरा स्पष्ट मत है कि एक प्रधान मंत्री को अपने पद की गरिमा के लिहाज से ऐसे व्यवहार से सदैव बचना चाहिये, जो अशोभनीय और अमानवीय हो ।

901, केदार,
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