कब तक यह सब सहते रहेंगे सामान्य नागरिक ?
– किशन शर्मा
सामान्य नागरिक केवल टैक्स भरते रहने के लिए ही जीते हैं । किसी भी कारणवश अगर कभी टैक्स भरने में ज़रा सी भी देर हो जाये तो उसका परिणाम भी भुगतना पडता है । सारी नियमावली और सज़ाएं केवल सामान्य नागरिकों के लिए ही होती हैं । अति अमीर को तो कोई छू भी नहीं पाता । बहुत अधिक बात बढ़ जाने पर विदेश भाग जाना उन लोगों के लिए सबसे सुविधाजनक रास्ता बन जाता है । नाम गिनाने और बताने की आवश्यकता नहीं है । सभी जानते हैं उन लोगों को जो अनेक लाख-करोड़ रुपये की गड़बड़ी करके विदेश में राजशाही ठाठ से जी रहे हैं ।
गरीब कहलाने वाले लोगों के अनगिनत बचावकर्ता उपस्थित हो जाते हैं । रातों रात किसी भी स्थान पर अनधिकृत झोपड़ी बन जाती है, फ़िर एक मोहल्ला ही खड़ा हो जाता है । किसी सम्बन्धित अधिकारी को वह अनेक वर्ष तक दिखाई नहीं देते, और बाद में उनका उसपर पूरा अधिकार जताया जाने लगता है । पानी, बिजली, शौचालय, सड़क, सब कुछ मुफ़्त में प्रदान कर दिये जाते हैं, वोट की खातिर । अगर कहीं झोपड़ियों को हटाने या तोड़ने की आवश्यकता आ ही जाये तो झोपड़ी धारकों को पुनर्वसित करने की मांग कर दी जाती है । किसी प्रकार का टैक्स तो ऐसे लोगों पर लगता ही नहीं । मैंने लगभग हर झोपड़ी में टेलीविज़न, पंखे, मोटर साइकिल, फ़्रिज आदि देखे हैं । फ़िर भी वे सब “गरीब” कहलाते हैं और वे किसी प्रकार का कोई टैक्स या बिल का भुगतान नहीं करते ।
आजकल किसानों के नाम पर एक नया खेल शुरू कर दिया गया है । कर्ज़ लेलो, लेते जाओ, चिंता मत करो, क्योंकि उन्हें कर्ज़ की रकम वापस नहीं करनी होगी । अनेक राजनेता भी अपने आप को किसान कहलवाते हैं, जबकि उन्हें किसानी की कोई भी जानकारी नहीं होती । लाखों-करोड़ों रुपये के कर्ज़ हर चुनाव से पूर्व माफ़ कर दिये जाते हैं, और किसान कहलाने वाले लोग तुरंत नये कर्ज़ का आवेदन कर देते हैं । यह सब झेलना पड़ता है, सामान्य नागरिकों को । कोई सरकार मंत्रियों या राजनेताओं से रुपये लेकर तो कर्ज़ माफ़ी करते नहीं हैं, और उसकी रकम बैंकों को वापस करते नहीं हैं । यह सारा बोझ उठाता है वोट बैंक, जबकि प्रशंसा होती है सरकार की और राजनेताओं की । अल्पसंख्यक कहलाने वाले अनेक लोग वास्तव में अब बहुसंख्यक होते जा रहे हैं । परंतु उनको कोई कुछ नहीं कहता । उनके नाम पर अलग राजनीति की जाती रहती है, क्योंकि वे “वोट बैंक” के महत्वपूर्ण सदस्य होते हैं ।
दलित और पिछड़े हुए कहलाने वाले अनगिनत लोग ऊंचे से ऊंचे पद पर विराजमान होकर भी हर सुविधा पाने के अधिकारी होते हैं । वोट के नाम पर यह सब कब तक सहते रहेंगे सामान्य नागरिक ? आरक्षण के रक्षण में सभी राजनेता जुट जाते हैं और अधिक से अधिक प्रतिभाशाली होने पर भी सामान्य नागरिक पिछड़ता जाता है । यह भी सहन करना पड़ता है सामान्य नागरिक को । मेरी एक सलाह है, सभी राजनेताओं को । अगर उन्हें आरक्षण से इतना ही प्रेम है तो अपने परिवार के सभी सदस्यों का इलाज केवल “आरक्षित” डाक्टरों से ही करवाएं । मंत्रीगण अपने सचिव, व्यक्तिगत सहायक, सुरक्षाकर्मी, सेवक आदि केवल “आरक्षित” लोगों को ही नियुक्त करें । उस समय उन्हें बड़े से बड़े उच्च शिक्षित लोगों की आवश्यकता क्यों महसूस होने लगती है, यह सभी जानते हैं । वे तो इलाज के लिये तुरंत विदेश भी चले जाते हैं क्योंकि वहां कोई “आरक्षित” डाक्टर नहीं होता । अधिकतर धनवान लोगों के मकान, कारें, नौकर-चाकर, जन्मदिन और विवाह आदि के समारोह पर लाखों-करोड़ रुपये खर्च कर दिये जाते हैं, और उन्हें अधिकारियों तथा राजनेताओं का भरपूर सहयोग घर बैठे मिलता रहता है । उनके टैक्स के मामले अनेक वर्ष तक अदालतों में चलते रहते हैं ।
मैंने कभी किसी अति अमीर व्यक्ति, राजनेता, फ़िल्मी सितारे को पुराने प्रतिबंधित नोट बदलवाने के लिये बैंक के बाहर लाइन में खड़े हुए नहीं देखा । उनके सारे पुराने प्रतिबंधित नोट कब और कैसे बदल गये, यह बताने की आवश्यकता नहीं है । सारे कष्ट सहने के लिए केवल सामान्य नागरिक को ही चुना जाता है । अति अमीर और तथाकथित गरीब तथा विशेष दर्जे के लोगों को कोई तकलीफ़ नहीं होती, हर तकलीफ़ के लिए हमारे देश में एक ही वर्ग के लोगों को चुन रखा है, और वह है सामान्य नागरिकों का वर्ग । मैं सोचता हूं कि किसी दिन इस सामान्य नागरिक की सहनशक्ति ने जवाब दे दिया तो क्या होगा ? आखिर कब तक यह सब सहते रहेंगे, केवल सामान्य नागरिक ?
केदार, यशोधाम एन्क्लेव,
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