गुरुवार को एक अहम मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया है। जीएसटी परिषद के एक मामले पर सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि जीएसटी काउंसिल द्वारा दी गई सिफारिशों और उनको लागू करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार किसी भी तरह से मजबूर नहीं है। बल्कि जितनी भी सिफारिशें लागू की जाए, इन सभी सिफारिशों पर सलाह-परामर्श करना जरूरी है। सलाह-परामर्श के बाद अगर इन सिफारिशों में बेहतरी दिखे तभी इनको लागू करना चाहिए।
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि “जीएसटी परिषद की सिफारिशें केंद्र और राज्य सरकारों पर बाध्यकारी नहीं हैं। संसद का इरादा जीएसटी परिषद की सिफारिशों को बाध्यकारी बनाना नहीं है।” इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि संसद और राज्य विधानसभाओं के पास पूरा अधिकार है कि वह GST पर कानून बनाए और GST परिषद इन कानूनों पर पर उन्हें अपनी सलाह दें।
इसके साथ ही इस मामले पर बड़ा फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि “राज्य और केंद्र सरकार दोनों माल और सेवा कर पर कानून बना सकते हैं। जीएसटी परिषद की सिफारिशें एक सहयोगी चर्चा का परिणाम हैं। यह आवश्यक नहीं है कि किसी एक संघीय इकाई के पास हमेशा बड़ा हिस्सा हो।” डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मामले पर आगे कहा कि “संविधान का अनुच्छेद 279A एक गैर-बाधा खंड से शुरू नहीं होता है, और अनुच्छेद 246A में प्रतिशोध का प्रावधान शामिल नहीं है। ‘सहकारी संघवाद’ सिद्धांतों के महत्व पर जोर दिया गया है कि भारतीय संघवाद एक संवाद है जिसमें राज्य और केंद्र हमेशा एक संवाद में संलग्न होते हैं।”