आज दुनिया के सामने सबसे बड़ी समस्या है कि कैसे इस सिंगल यूज़ प्लास्टिक से छुटकारा पाएं क्योंकि यह पूरी तरह से ख़त्म नहीं किया जा सकता। भारत के प्रधानमंत्री ने भी भारत को सिंगल यूज़ प्लास्टिक से मुक्त करने का संकल्प लिया है। आज लोग प्लास्टिक के इस्तेमाल से बचने की कोशिश करते भी दिख रहे हैं। साथ ही इस सिंगल यूज़ प्लास्टिक के दोबारा इस्तेमाल के तरीकों पर भी सोचा जा रहा है। इसी क्रम में दिल्ली के अश्विनी अग्रवाल ने सिंगर यूज़ प्लास्टिक का दोबारा इस्तेमाल करके पब्लिक टॉयलेट बनाए हैं। अश्विनी अग्रवाल दिल्ली यूनिवर्सिटी में आर्ट्स के स्टूडेंट हैं। साल 2014 में उन्होंने कॉलेज प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू किया।
वैसे तो यह कॉलेज प्रोजेक्ट था। लेकिन अश्विनी ने सोचा कि देश में पब्लिक टॉयलेट्स की बहुत जरूरत है। लोग 2 रुपये देकर टॉयलेट जाने की जगह ख़ुले में पेशाब करना पसंद करते हैं। यह बात ध्यान में रखते हुए उन्होंने अपने कॉलेज प्रोजेक्ट के तहत प्लास्टिक से टॉयलेट बनाया।
ये पहला टॉयलेट धौला कुआं के एक पुलिस स्टेशन में इंस्टॉल किया, जबकि दूसरा टॉयलेट एम्स के बाहर रिंग रोड पर लगाया गया है। अश्विनी ने बताया कि वह प्लास्टिक की बोतलों को मिक्सर में ग्राइंड कर के मटेरियल तैयार करते हैं और उससे टॉयलेट बनाते हैं। एक प्रोजेक्ट बनाने में 2 से 3 घंटे का समय लगता है और लगभग 12 हज़ार लागत आती है। इसे बनाने में तीन से चार लोगों की ज़रूरत होती है। एक टॉयलेट बनाने में 9 हज़ार बोतलों की ज़रूरत पड़ती है। इन टॉयलेट्स कर रंग हरा रखा गया है। इन टॉयलेट्स का इस्तेमाल 10 से 12 साल तक किया जा सकता है।
अश्विनी का कहना है कि इन यूरिनल टॉयलेट्स को और बेहतर बनाने की कोशिशें जारी हैं। अश्विनी की इस तरह के सिंगल यूज प्लास्टिक के टॉयलेट्स पूरे देश में शुरू करने की योजना है। जिसकी शुरुआत दिल्ली से की गई है। दिल्ली में अभी 100 टॉयलेट करने की योजना बनाई गई है, जिसके लिए अश्विनी क्राउड फंडिंग से पैसा जुटा रहे हैं। साथ ही इवेंट्स में टॉयलेट्स इन्स्टॉल करके कंपनियों से पैसे ले रहे हैं। is सिंगल यूज़ प्लास्टिक से बने टॉयलेट्स का नाम Pee-Pee रखा गया है। और इस बेसिक शिट प्रोजेक्ट में अश्विनी के दोस्त अदिति, आशु, सहज और युवा भी शामिल हैं।