दिल्ली हाई कोर्ट के उस फैसले को, जिसमें यह कहा गया था कि उपराज्यपाल ही राष्ट्रीय राजधानी के प्रशासनिक मुखिया हैं और AAP सरकार के इस तर्क में कोई दम नहीं है कि वह मंत्रिपरिषद की सलाह से ही काम करने को बाध्य हैं, सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया है। पांच जजों की बेंच में शामिल जस्टिस चंद्रचूड़ सिंह ने भी बेहद अहम टिप्पणी की है। उन्होंने कहा है कि चुनी हुई सरकार के पास ही असली ताकत और असली जिम्मेदारी है। इसलिए सरकार के काम में उपराज्यपाल को अड़ंगा डालने का अधिकार नहीं है।
जस्टिस चंद्रचूड़ सिंह ने अपनी टिप्पणी में कहा कि कानून के मुताबिक, उपराज्यपाल के पास स्वतंत्र अधिकार नहीं हैं, जबकि चुनी हुई सरकार को फैसले लेने का हक है। उपराज्यपाल को याद रखना चाहिए कि चुनी हुई सरकार जनता की पसंद है ऐसे में सरकार की जवाबदेही भी ज्यादा है। उपराज्यपाल दिल्ली के प्रशासनिक मुखिया हैं, इसलिए उन्हें सभी फैसलों की जानकारी दी जानी चाहिए, लेकिन वो दिल्ली सरकार के फैसलों में अड़ंगा नहीं लगा सकते। उन्होंने कहा कि दिल्ली कैबिनेट को हर मामले में उपराज्यपाल की मंजूरी की जरूरत नहीं है।
दिल्ली के उपराज्यपाल को राजधानी का प्रशासनिक मुखिया घोषित करने से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनते हुए कहा है कि दिल्ली की स्थिति बाकी राज्यों से अलग है। ऐसे में दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार मिलकर जनता की भलाई के लिए काम करें।
आम आदमी पार्टी सरकार ने संविधान पीठ के सामने दलील दी थी कि उसके पास विधायी और कार्यपालिका दोनों के ही अधिकार हैं। उसने ये भी कहा था कि मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद के पास कोई भी कानून बनाने की विधायी शक्ति है, जबकि बनाये गये कानूनों को लागू करने के लिये उसके पास कार्यपालिका के अधिकार हैं। यही नहीं, AAP सरकार का ये भी तर्क था कि उपराज्यपाल कई प्रशासनिक फैसले ले रहे हैं और ऐसी स्थिति में लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित सरकार के जनादेश को पूरा करने के लिये संविधान के अनुच्छेद 239 एए की व्याख्या जरूरी है।
दूसरी ओर, केंद्र सरकार की दलील थी कि दिल्ली सरकार पूरी तरह से प्रशासनिक अधिकार नहीं रख सकती क्योंकि ये राष्ट्रीय हितों के खिलाफ होगा। इसके साथ ही उसने 1989 की बालकृष्णन समिति की रिपोर्ट का हवाला दिया जिसने दिल्ली को एक राज्य का दर्जा नहीं दिये जाने के कारणों पर विचार किया।
केंद्र ने सुनवाई के दौरान संविधान, 1991 का दिल्ली की राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार कानून और राष्टूीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार के कामकाज के नियमों का हवाला देकर ये बताने का प्रयास किया कि राष्ट्रपति, केंद्र सरकार और उपराज्यपाल को राष्ट्रीय राजधानी के प्रशासनिक मामले में प्राथमिकता हासिल है।
इसके उलट, दिल्ली सरकार ने उपराज्यपाल पर लोकतंत्र का मखौल उड़ाने का आरोप लगाया और कहा कि वो या तो निर्वाचित सरकार फैसले ले रहे हैं या बगैर किसी अधिकार के उसके फैसलों को बदल रहे हैं। दिल्ली उच्च कोर्ट ने 4 अगस्त, 2016 को अपने फैसले में कहा था कि उपराज्यपाल ही राष्ट्रीय राजधानी के प्रशासनिक मुखिया हैं।