बिहार में चल रही राजनीति ने पूरी भाजपा को हिला कर रख दिया है। सिर्फ बिहार की ही नहीं बल्कि सत्ता में बैठी भाजपा नीतीश के इस हमले से घायल हो गई है। नीतीश ने एनडीए गठबंधन से अलग होने के बाद भाजपा की मुश्किलों को और भी ज्यादा बढ़ा दिया है। अब बिहार में भाजपा का राज करना लगभग नामुमकिन है। बिहार की राजनीति के साथ साथ भाजपा को अब राज्यसभा में भी परेशानियों का सामना करना पढ़ेगा। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पिछले तीन सालों में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का साथ छोड़ने वाली ये तीसरी पार्टी है।
इससे पहले भी दो पार्टियों ने खुद को एनडीए गठबंधन से अलग कर लिया था। जिसमें से सबसे पहले ये कदम उठाया था शिवसेना ने, और फिर इस काम को अंजाम दिया अकाली दल ने और अब नीतीश ने भी जेडीयू को एनडीए से बाहर कर लिया है और ‘महागठबंधन’ का हिस्सा बनने का फैसला किया है। मिली जानकारी के अनुसार ‘महागठबंधन’ सरकार में भी नीतीश ही मुख्यमंत्री पद पर बरकरार रहेंगे। वहीं, तेजस्वी यादव उपमुख्यमंत्री के पद को संभालेंगे।
वहीं, अगर बात करें राज्यसभा की तो अब भाजपा को राज्यसभा में भी काफी मुश्किलें पेश आने वाली हैं। क्योंकि राज्यसभा में फिलहाल कुल सांसदों की संख्या 237 और बहुमत का आंकड़ा 119 है। जेडीयू के एनडीए से अलग होने के बाद अगर भाजपा राज्यसभा में बहुमत चाहती है तो उसको ओडिशा के बीजू जनता दल और आंध्र प्रदेश की वाई.एस.आर. कांग्रेस जैसी पार्टियों की मदद लेनी पड़ेगी। मौजूदा समय में भाजपा के पास केवल 110 सदस्य हैं।