बसों को देख बूढ़ी माँ नहीं रोक पायीं आँसू- “बेटुआ अब हम कभी नहीं आईं, तू बेशक हमका कांधा देन…”

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देशव्यापी लॉकडाउन के चलते हैं लाखों की संख्या में बेरोजगार हो चुकें प्रवासी मजदूर अलग-अलग राज्यों में फंसे हुए हैं और अपने घर जाने लिए दिन-रात बसों और ट्रेनों की आस में सरकार की ओर तकटकी लगायें इंतज़ार को बेबस हैं। उन्हीं में शामिल राजा देवी की आंखों में बसों को देखकर यह दर्द छलक उठा और वह अपने बेटे से कहती है कि उसे अब घर लौटना है और वह शहर को दोबारा कभी नहीं आना चाहतीं।

दरअसल, राजी देवी का परिवार को लोगों में शामिल में जो गुरुग्राम के सेक्टर 9 के सामुदायिक केंद्र में रुके हुए हैं और उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर ले जाने वाली बसों का इंतजार कर रहे हैं।वही बसों में बैठने ले लिए पहले और पहले पाओ का नियम हैं ऐसे मे यह परिवार सीट पाने में विफल रहा।बुजुर्ग महिला की उम्र करीब 70 वर्ष है, जो अपने बेटे का हाथ पकड़े हुए है और उससे कहती है कि वह अब नहीं लौटेगी और भले ही वह उसके अंतिम संस्कार के लिए नहीं आए। परिवार में राजी देवी, साहब लाल, उसकी पत्नी और दो बच्चे, उसका भतीजा और उसकी पत्नी शामिल हैं।वह अपने स्थानीय बोली में अपने बेटे से कहतीं है कि,”बेटुआ अब हम कभी नहीं आईं, तू बेशक हमका कांधा देन भी मत आइये।हमका नहीं देखना शहर।’’

हलांकि, इस बारे में राजी देवी के बेटे साहब लाल ने बताया कि,उनका घर यहां से करीब 850 किलोमीटर दूर भदोही के दारा पट्टी गांव में है,और लोगों की तरह इस यात्रा को वह पैदल नहीं तय कर सकता क्योंकि पैदल चलने के बाद उनकी मां फिर जीवित नहीं रह पाएंगी।लाल ने कहा, ‘‘भगवान जाने अब हम कैसे घर जाएंगे…हमने पैदल जाने का प्रयास नहीं किया क्योंकि मेरी मां इतनी लंबी दूरी तक नहीं चल पाएंगी। उन्हें ज्यादा आराम देने के लिए कुछ महीने पहले मैं यहां लाया।’’