महाराष्ट्र चुनाव नतीजों से सामने आयी जनता की बदलती पसंद, शिवसेना और भाजपा को…

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Devendra Fadnavis- Uddhav Thakarey

शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी का गठबंधन भले ही सत्ता की कुर्सी तक पहुंचने में क़ामयाब हो गया हो, लेकिन इस विधानसभा चुनावों ने लोकसभा चुनावों के बाद आए अति-आत्मविश्वास को डगमगा दिया है। विपक्षी पार्टियों के लिए यह चुनाव अस्तित्व का सवाल बन गया था क्योंकि लोकसभा चुनाव में उन्हें क़रारी हार का सामना करना पड़ा था। इन पार्टियों ने विधानसभा चुनाव में अपना प्रदर्शन बेहतर किया है। हरियाणा में कांग्रेस ने 2014 की तुलना में दोगुनी सीटों पर क़ब्ज़ा जमाया। वहीं महाराष्ट्र में उसकी सहयोगी पार्टी एनसीपी ने 15 सीटों की वृद्धि की।

कह सकते हैं कि इन विधानसभा चुनावों में अस्तित्व की राजनीति राष्ट्रवाद के मुद्दे से ज़्यादा प्रभावित तौर पर अपना काम किया है। प्रकाश आंबेडकर की पार्टी वंचित बहुजन आघाड़ी पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम ने कांग्रेस और एनसीपी गठबंधन को लगभग 12 सीटों का नुक़सान पहुंचाया है। हालांकि, वंचित आघाड़ी पार्टी कोई सीट जीत पाने में क़ामयाब नहीं हो पाई, लेकिन, उसने 4.6 फ़ीसदी वोट शेयर हासिल किया। तो वहीं एआईएमआईएम का वोट शेयर 1.4 फ़ीसदी है। क़रीब 35 सीटों के नतीजों को देखें तो पाएंगे कि वंचित बहुजन आघाड़ी पार्टी और एआईएमआईएम ने हार-जीत के अंतर से ज़्यादा वोट हासिल किए हैं।

इन सीटों पर क़रीब 27 पर वंचित बहुजन अघाड़ी पार्टी और एआईएमआईएम ने और विजयी रहे NDA प्रत्याशी के वोटों के अंतर से ज़्यादा वोट हासिल किये। और 8 सीटों पर वंचित बहुजन अघाड़ी पार्टी और एआईएमआईएम प्रत्याशी उपविजेता रहे। बुलढाना, अकोट, बालापुर, मुर्तजाप, वाशीम, सलमनूरी, औरंगाबाद सेंट्रल और बायकला में वंचित बहुजन अघाड़ी पार्टी और एआईएमआईएम ने कांग्रेस और एनसीपी गठबंधन के प्रत्याशियों को भी पीछे छोड़ दिया। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि वंचित बहुजन अघाड़ी पार्टी और एआईएमआईएम ने कांग्रेस एनसीपी के परंपरागत वोट बैंक से अपने वोटर बनाए हैं।