चुनाव की घोषणा से बहुत पहले ही लगभग सभी समाचार पत्रों में पूरे पृष्ठ के या कम से कम आधे पृष्ठ के विज्ञापन प्रकाशित होने शुरू हो गये थे, जिनमें सरकार की उपलब्धियों का गुणगान किया जा रहा है । यह क्रम चलता रहेगा चुनावों की समाप्ति तक । मैं आज तक यह नहीं समझ पाया हूं कि इस प्रकार से सरकार की उपलब्धियों का गुणगान करने की आवश्यकता क्यों होती है । ढोल बजा-बजा कर लोगों को बताना कि सरकार ने क्या क्या पराक्रम किये, इसकी उपयोगिता क्या है? मैं ऐसा मानता हूं कि जनता के हित में अच्छे काम करते रहने के लिये ही तो सरकार बनाई जाती है । जो भी काम हो गये होंगे, उनकी जानकारी तो जनता को तभी मिल जाती है । फ़िर उसके लिये करोडों रुपये खर्च करके विज्ञापन छपवाने की क्या आवश्यकता है?
अगर बताना ही है तो यह बताना चाहिये कि कौन कौन से जनहित के काम सरकार नहीं कर सकी और क्यों नहीं कर सकी। जनता को वास्तव में ऐसी जानकारी देने की आवश्यकता होनी चाहिये । जो धन खर्च किया जाता रहता है वह तो जनता का ही है । उसका उपयोग अपनी तारीफ़ में विज्ञापन छपवाकर करना, मेरी दृष्टि में जनता के धन का दुरुपयोग ही है । यही करोडों रुपये, जनता की भलाई के कुछ कामों में खर्च करने से सरकार की अधिक प्रशंसा करते सभी लोग। विपक्ष सरकारी खज़ाने से अपने कार्यों का विवरण इस प्रकार नहीं छपवा सकता। अपना- अपना ढोल बजाने में कोई गलत बात नहीं है, परंतु जनता के धन का उपयोग इस प्रकार किया जाना मेरे विचार से बहुत गलत है । हां, समाचार पत्रों और टेलीविज़न चैनलों के मालिकों की जेबें भरने और उन्हें खुश करने का यह तरीका अवश्य सरकार के नेतागण अपनाते रहते हैं । नेताओं का क्या जाता है? पैसा तो जनता का है। फ़िर भी वाहवाही उन्हीं की होती है।
यह भी सच है कि सरकार जिस समाचार पत्र या टेलीविज़न चैनल को केवल इसलिये पसंद न करे कि वह सरकार की आलोचना करता रहता है, उसको सरकारी विभागों के विज्ञापन मिलना बंद कर दिया जाता है । समाचार पत्र वास्तव में विज्ञापनों की आमदनी पर ही जीवित रहते हैं और उनके मालिक इसी के बल पर करोडपति बनते रहते हैं । समाचार पत्रों की बिक्री से प्राप्त राशि तो नगण्य होती है । इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि हवाई अड्डों पर, कुछ रेलगाडियों में, अधिकांश बडे होटलों में हज़ारों-लाखों प्रतियां प्रतिदिन मुफ़्त में प्रदान कर दी जाती हैं। अगर समाचार पत्र की बिक्री ही आर्थिक महत्व का कारण होती, तो इस तरह लाखों प्रतियां, प्रतिदिन मुफ़्त में प्रदान नहीं की जा सकती हैं। परंतु आर्थिक कमाई का मुख्य स्रोत तो विज्ञापन से ही जुडा होता है।
अभी चुनावी प्रचार-प्रसार शुरू हो गया है। हर दल, हर उम्मीदवार अपनी अपनी तारीफ़ में और अपने अपने पक्ष में हर दिन कुछ न कुछ छपवाते रहेंगे। यह किसको मालूम नहीं है कि इस तरह के सभी समाचार केवल धन प्राप्त होने पर ही छापे जाते हैं और जितना धन प्राप्त होता है, उतना ही स्थान उस समाचार को मिल जाता है सब जानते हैं, परंतु फ़िर भी कोई नहीं जानता। “पेड न्यूज़” के विरुद्ध कठोर कार्रवाई करने की धमकी अनेक बार दी जाती रहती है, परंतु सभी जानते हैं कि यह सब केवल बंदर भभकी ही होती है। छोटे समाचार पत्रों की तरफ़ लोग ज़्यादा ध्यान नहीं देते और इसलिये उनको अपेक्षाकृत बहुत कम आर्थिक लाभ मिल पाता है। चुनाव आयोग इस प्रकार के कृत्यों के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं करता और इसलिये चुनावी दौर में “पेड न्यूज़” का धंधा ज़ोरशोर से चलता रहता है।
मेरा ऐसा मानना है कि यदि सरकार के किसी नेता को अपने किसी अच्छे काम का ढोल पीटना ही है तो वह अपने कार्यकाल में किसी भी तरह से कमाये हुए अरबों रुपये के भंडार में से विज्ञापन की राशि का भुगतान स्वयं करे । तब मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी । परंतु जनता के धन का अपनी गुणगाथा के लिये उपयोग किया जाना मेरी दृष्टि में अनुचित ही है । जनता इतनी अनजान नहीं है कि वह यह भी न समझ सके कि उसकी भलाई के लिये किसने क्या क्या काम किये हैं । फ़िर उसके लिये विज्ञापनी ढोल का सहारा क्यों लिया जाता है ? अच्छा काम खुद बोलता है । उसे विज्ञापन के द्वारा प्रचार-प्रसार की आवश्यकता नहीं होती । मैं स्पष्ट रूप से यह मानता हूं कि यह सर्वथा अनुचित है कि मुख्यत: चुनावी दौर में, सरकार का गुणगान करने के लिये जनता के धन का दुरुपयोग करके इस प्रकार विज्ञापन दिये जाएं ।
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