देहरादून: ताउम्र पहाड़ के लिए समर्पित रहने वाले पहाड़ पुत्र बीपी नौटियाल का कल निधन हो गया। बागवानी विभाग के पूर्व निदेशक डॉ. बीपी नौटियाल पहाड़ की माटी और थाती के लिए हमेशा ही समर्पित योद्धा थे। वह एक बेहद ईमानदार अधिकारी रहे।
शिक्षक पिता परमानंद शास्त्री की सीख को जीवन भर गांठ में समेटे डॉ. भगवती प्रसाद नौटियाल ने कलम से पहाड़ लिखा और मन, क्रम, वचन से पहाड़ को जिया। उनको रिटायरमेंट के बाद भी हमेशा ही पहाड़ की चिन्ता सताती रही। उनकी सोच में ही पहाड़ रचा-बसा था।
उनका मानना था कि पहाड़ पर बागवानी और नगदी फसलों को प्रमुखता देनी होगी। काश्तकारों को बाजार उपलब्ध कराना होगा। उन्होंने अपनी पीएचडी के लिए तुंगनाथ जैसे ऊंचे इलाके में फसलों पर पड़ने वाले प्रभाव को चुना। उन्होंने बाद में तुंगनाथ में पालीहाउस में टमाटर, मटर और बीन्स उगाने के प्रयास किये।
1979 में डॉ. नौटियाल जब गढ़वाल विश्वविद्यालय में पढ़ते थे तो वो हिमालय पुत्र हेमवती नंदन बहुगुणा के बेहद करीबी युवा समर्थक थे। लेकिन, जब बात पहाड़ की आई तो उन्होंने हेमवती नंदन बहुगुणा के राजनीतिक कद की परवाह किए बगैर पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा को चुना। इससे साबित होता है कि पहाड़ के प्रति उनका कितना गहरा लगाव था।
डॉ. बीपी नौटियाल ने सुंदरलाल बहुगुणा के साथ में आराकोट से शिमला तक की कागज बचाओ पदयात्रा की। लगभग 500 किलोमीटर की पदयात्रा थी। इसमें पांच लोग शामिल थे। श्रीनगर गढ़वाल विश्वविद्यालय में फारेस्टी डिपार्टमेंट शुरू करने का श्रेय भी डॉ. बीपी नौटियाल की जाता है। नाबार्ड में वो विभिन्न पदों पर रहे और पूरी ईमानदारी से पहाड़ के लिए काम करते रहे।
2008 में उन्होंने नाबार्ड के महाप्रबंधक पद से वीआरएस लिया। उन्हें बागवानी विभाग का निदेशक बनाया गया और फिर गलत काम करने को कहा, लेकिन वो भ्रष्ट नेताओं और नौकरशाहों के लिए गले की फांस बन गये। उन्हें हटाने के लिए षडयंत्र रचा गया तो वह हाईकोर्ट पहुंच गये। तीन साल के कार्यकाल के बाद ही यह पद छोड़ा।
2013 में वो भरसार विश्वविद्यालय के डीन बने। 2017 में माजरीग्रांट में फूड प्रोसेंसिंग यूनिट की जिम्मेदारी संभाली। साथ ही वह शिल्पी का प्रकाशन भी करने लगे। पहाड़ के युवाओं को स्वरोजगार और बागवानी के लिए प्रेरित किया। उनका कहना था कि पहाड़ के युवाओं को नौकरशाहों के तौर पर तैयार करना होगा। पीसीएस और आईएफएस को एलबीएस या हैदराबाद में ट्रेनिंग देनी होगी।
डॉ. नौटियाल बहुआयामी प्रतिभा के धनी थे। कालेज के समय से वह नाटक लिखते और उनका मंचन करते थे। 1974 में लिखा उनो नाटक खून का दाग खूब सराहा गया। इतिहास का पन्ना और अमर पुष्प् नाटक भी चर्चित रहे। अमर पुष्प श्रीदेव सुमन पर आधारित नाटक था। इतना ही नहीं, उनको जटरोफा पर शोध और कई लेख प्रकाशित हुए।