नेता जी के साथ अनगिनत वाहनों का काफ़िला होना आवश्यक होता है अन्यथा लोगों को पता कैसे चलेगा कि कोई नेता जी आये हैं, या जा रहे हैं । एक मुख्य मंत्री जी ने केवल कुछ दिन तक सामान्य विमान में किसी भी आसन पर बैठकर यात्रा की और उसका भरपूर प्रचार-प्रसार किया । लोगों ने प्रशंसा करनी शुरू करदी कि कितना सीधा-सरल मुख्य मंत्री है । परंतु कुछ समय बाद ही जो सरकारी विशेष विमान से यात्रा करने की शुरूवात की, तो आजतक सामान्य विमान में यात्रा करना ही भूल गये । प्रधान मंत्री, उप राष्ट्रपति, राष्ट्रपति जैसे अति प्रमुख विशिष्ट नेता या प्रमुख की किसी शहर में यात्रा के पहले सैकडों वाहनों को उन रास्तों पर पूर्वाभ्यास के लिये दौडाया जाता रहता है, जिन रास्तों पर उन्हें जाना है या प्रस्त्वावित है । यह दुरुपयोग क्यों किया जाता है, यह या तो नेतागण ही जानते होंगे या वे चापलूस अधिकारी, जो अपना सारा सरकारी और सार्वजनिक काम छोडकर केवल इसी अनावश्यक काम म्कें व्यस्त होते रहते हैं । एक व्यक्ति के स्वागत के लिये अनगिनत अधिकारी हवाई अड्डे पर उपस्थित रहते हैं और फ़िर एक व्यक्ति के लिये 70-80 वाहनों का काफ़िला उन सडकों पर तेज़ रफ़्तार से दौडाया जाता है, जिनपर अन्य नागरिकों के वाहनों के आवागमन पर बहुत देर पहले से ही पूरी तरह से रोक लगा दी जाती है । सभी सम्बन्धित पुलिस अधिकारी और पुलिस कर्मी, उनके काफ़िले के गुज़रते ही तुरंत कहीं गायब हो जाते हैं । मैंने एक बार एक मुख्य मंत्री जी की पत्नी के व्यक्तिगत दौरे के समय भी उनके काफ़िले में 36 कारों को गिना था और इस बारे में मैंने सम्बन्धित मुख्य मंत्री जी को पत्र भी लिखा था । उसके बाद, स्वयं उन मुख्य मंत्री महोदय के साथ भी केवल 7 या 8 ही वाहनों को ही काफ़िले में देखा जाता रहा । हवाई जहाज़ में हर नेता को पहली पंक्ति में विशिष्ट आसन ही चाहिये होता है । उस नेता का हल्का और छोटा सा ‘हैंड बैग” भी उठाने के लिये प्रस्थान के हवाई अड्डे और आगमन के हवाई अड्डे पर दो-तीन सेवक तैयार खडे रहते हैं । जो नेतागण, नेता बनते ही, अपने हल्के से छोटे से हैंड बैग का बोझ भी स्वयं नहीं उठा पाते, वे देश और नागरिकों की समस्याओं का भारी भरकम बोझ कैसे उठा सकते हैं, यह नेतागण ही सोचकर बताएं । मैं आजतक समझ नहीं सका हूं कि जिन देशवासियों ने उन नेताओं की भिखारी जैसी दयनीय हालत देखकर उनको अपना वोट देकर चुना, उन्हीं से उन नेताओं को किस प्रकार का खतरा पैदा होने लगता है । मेरा स्पष्ट मत है कि यह सब अनावश्यक दिखावा किया जाता है, क्योंकि किसी नेता को इन सब सुविधाओं के लिये अपने पास से एक रुपया भी खर्च नहीं करना पडता । करोडों रुपये कमाने और जमा करने वाले अति अमीर नेतागण कम से कम अपने लिये किये जाने वाले सारे खर्च तो स्वयं की घोषित-अघोषित आय से कर ही सकते हैं । ऐसा होने लगे तो मैं देखना चाहूंगा कि कितने नेतागण ये सारी सुविधाएं प्राप्त करने का साहस दिखा पायेंगे । जीवन भर मुफ़्त में यात्रा करने, हज़ारों-लाखों रुपये की अनावश्यक “पेंशन” प्राप्त करते रहने, और अनेक अन्य सुविधाओं का लाभ उठाते रहने के आदी ये नेतागण क्या कभी सामान्य नागरिक की तरह जीवन जीने का प्रयास कर सकेंगे । बैंक की लाइन में लगना, सामान खरीदने के लिये बाज़ार जाना, प्रोपर्टी टैक्स या बिजली का बिल या पानी का बिल भरने की पद्धति भी नहीं मालूम होगी अब तो इन नेताओं को । यातायात सिग्नल पर रुकना नेताओं की शान के खिलाफ़ होता है । उनके वाहन पर से भले ही “लाल बत्ती” हटा दी गई हो, और उनके वाहनों में लगे “सायरन” भले ही बंद कर दिये गये हों, परंतु उनके आगे-पीछे चलने वाले वाहनों में तो पीली, नीली, लाल बत्ती लगी ही होती है और वे वाहन सायरन का दुरुपयोग हमेशा करते ही रहते हैं । मैं किसी की प्रशंसा और किसी की आलोचना नहीं कर रहा हूं, परंतु यह सर्वविदित सत्य है कि पहले के समय में अनेक बहुत बडे नेतागण भी आम लोगों से सहज ही मिल लिया करते थे । एक प्रधान मंत्री जी ने तो एअरफ़ोर्स के विशेष विमानों या सरकारी विशेष विमानों के स्थान पर सामान्य नागरिक की तरह से सामान्य विमानों में यात्रा करना शुरू कर दिया था, जिस प्रथा को उनके पद से हटते ही तुरंत बंद कर दिया गया था । भले ही प्रधान मंत्री बार बार कहते रहें, परंतु क्या उनके किसी स्थान पर जाने के पहले से लेकर वापस लौटने तक अति विशेष सुरक्षा प्रबंध और सारा दिखावा नहीं होता रहता है ? क्या उन्हें यह जानकारी नहीं है कि उनके और उनके मतदाताओं-नागरिकों के बीच अनावश्यक दूरी बढाई जाती रहती है ? क्या वास्तव में कभी नेतागण सामान्य नागरिक का जीवन जीने के लिये तैयार हो सकेंगे और क्या कभी नेताओं द्वारा छोडी और तोडी जा सकेगी, इस वी0वी0आई0पी0 कल्चर में जीने की प्रथा ?
किशन शर्मा, 901, केदार, यशोधाम एन्क्लेव,
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