नया व्यवसाय

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लोग अपने अपने ढंग से धन कमाने के अनेक रास्ते ढूंढते रहते हैं । एक नया रास्ता धन और नाम कमाने का कुछ लोगों ने ढूंढ निकाला है । वैसे इसके प्रयोग बहुत पहले से कुछ व्यापारिक मस्तिष्क वाले लोग करते रहे हैं, परंतु आजकल यह व्यवसाय बहुत तेज़ गति से सफ़लतापूर्वक चल निकला है । अलग अलग नगरों में अनेक लोग संगीत के मंच कार्यक्रम आयोजित करने लगे हैं ।

पारम्परिक गायकों के स्थान पर ऐसे हर कार्यक्रम में, हर जगह, हर दिन, नये नये गायकों के नाम उनके चित्र के साथ प्रचारित-प्रसारित किये जाते हैं । कार्यक्रम की संकल्पना करने वाले व्यक्ति का नाम और चित्र भी प्रचार-प्रसार का अंग होता है । कार्यक्रम का शीर्षक किसी फ़िल्मी गीत के शब्द या किसी अक्षर को लेकर रख दिया जाता है । संगीत नियोजक का नाम या सभी वादकों के नाम भी प्रचारित-प्रसारित किये जाते हैं । मुख्य अतिथि, विशेष अतिथि आदि के नाम भी लिख दिये जाते हैं । हर गायक से तीन हज़ार से पांच हज़ार रुपये तक की राशि प्रत्येक गीत के लिये वसूली जाती है।

आमतौर पर आयोजक या प्रस्तुतकर्ता स्वयं भी गायक ही होता या होती है, जो मुफ़्त में अपना प्रचार-प्रसार भी करने में सफ़ल हो जाते हैं और बिना कोई मूल्य चुकाये अपनी गायन कला का प्रदर्शन भी कर लेते हैं । ऐसे कार्यक्रमों के लिये कोई प्रवेश शुल्क नहीं होता, क्योंकि सारा खर्च सभी उत्साही गायक स्वयं उठा लेते हैं । उनको मंच पर अपनी कला का कैसा भी प्रदर्शन करना होता है । वे अपने परिवार के सदस्यों, परिचितों और मित्रों को नि:शुल्क कार्यक्रम में आमंत्रित भी कर लेते हैं । अगर दस-पन्द्रह गायक भी कार्यक्रम में भाग ले रहे होते हैं और प्रत्येक गायक बीस-पच्चीस लोगों को भी अपने गीत पर ताली बजवाने और “वंस मोर” की आवाज़ लगवाने के लिये लाने में सफ़ल हो जाते हैं, तो सभागार लोगों से लगभग भर ही जाता है।

यह अलग बात है कि अधिकांश बेसुरे-बेताले और प्रभावहीन गायकों की भारी-भरकम “कला” का बोझ बहुत अधिक समय तक न उठा पाने के कारण अपने अपने आमंत्रक का गीत सुनने तक अधिकतर लोग मजबूरी में बैठे रहते हैं और अपने गायक का गीत समाप्त होते ही मंच के पीछे उसे बधाई देकर वे अपने घर लौट जाते हैं । थोडी देर बाद सभागार खाली होता चला जाता है । उन गायकों के द्वारा अपनी “श्रेष्ठतम” कला का वीडियो बनाकर बाद में फ़ेसबुक या “यू ट्यूब” पर डाल दिया जाता है और उनके मित्रगण उनके बेसुरे गाने की भी भरपूर प्रशंसा तुरंत करते रहते हैं । देश भर की बात तो अलग ही है, लेकिन किसी एक नगर में भी हर सप्ताह ऐसे कार्यक्रम लगातार आयोजित किये जाने लगे हैं । गायकों के हर दिन नये नाम दिखाई दे जाते हैं और दूसरी बार मुश्किल से ही कहीं नज़र आते हैं ।

मुख्य आयोजक-गायक का नाम अवश्य बार बार देखने को मिलता रहता है क्योंकि वह लगातार कार्यक्रम आयोजित करने के व्यवसाय में व्यस्त हो जा जाता है । पहले के समय में किसी फ़िल्मी अभिनेता, गायक, संगीत निर्देशक, या गीतकार का नाम और चित्र तभी प्रचारित-प्रसारित किया जाता था जब वह स्वयं कार्यक्रम में उपस्थित हो रहा हो । आजकल सब बडे बडे कलाकारों के नाम और चित्र ऐसे कार्यक्रमों के प्रचार-प्रसार फ़लकों और विज्ञापनों में प्रमुखता से दिखाए जाने लगे हैं ।

गायक-संगीत निर्देशक जगजीत सिंह की पत्नी गायिका चित्रा सिंह और पंडित रामचन्द्र द्विवेदी “कवि प्रदीप” की पुत्री मितुल प्रदीप ने इस प्रथा पर रोक लगवा दी थी । उनका कहना था कि उनसे अनुमति लिये बिना और “रौयल्टी” के रूप में कुछ सम्मानजनक राशि दिये बिना कोई उन कलाकारों के नाम का उपयोग अपने कार्यक्रम के प्रचार-प्रसार में नहीं कर सकेगा । कुछ बडे कलाकारों के पुत्र-पुत्री-बहू-दामाद आदि ने धन कमाने का यह रास्ता अपना लिया है । अब वे उन बडे कलाकारों के जन्मदिन या पुण्यतिथि से सम्बन्धित अनेक कार्यक्रमों में भारी-भरकम रकम लेकर मुख्य अतिथि बनकर उपस्थित होने लग गये हैं । अधिकांश वास्तविक गुणी गायक आजकल खामोश बैठे हुए हैं और हर दिन नये नये गायकों के नाम सुनते रहते हैं । कभी कभी तो मैं भी यह सोचने लगता हूं कि क्या हर शहर का हर व्यक्ति प्रतिभाशाली गायक बनता जा रहा है । जो भी हो, व्यापारिक मस्तिष्क रखने वाले कुछ व्यवसाइयों ने आजकल धूमधाम से शुरू कर दिया है, धन कमाने का यह नया व्यवसाय ।

किशन शर्मा, 901, केदार,
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