आज का दुख, कल का सुख
– किशन शर्मा
देश भर में जिस जिस नगर में सडकों, उड्डान पुलों, या मैट्रो का काम चल रहा है, वहां एक ही संदेश हर थोडी थोडी दूर पर लिखा हुआ दिखाई देता है – “आज का दुख, कल का सुख” । मैं बहुत लंबे समय से इसी ‘कल’ की प्रतीक्षा में हूं । हर दिन सडक पर चलते हुए, या वाहन चलाते हुए जिस असुविधा का सामना करना पडता है, मैं और अन्य सभी नागरिक यही सोच कर सारे कष्टों को सह लेते हैं कि बस आज का दुख है, कल सुख ही सुख होगा ।
मुझ जैसे ज्येष्ठ नागरिक के लिये असमतल और ऊबड-खाबड रास्तों पर चलना किसी भी समय घातक सिद्ध हो सकता है । धूल हर समय उडती रहती है । रात-दिन मैट्रो का काम चलता रहता है और मशीनों की भयंकर कर्कश आवाज़ से रात में सोना भी दुश्वार होता रहता है । अनेक नागरिक इसके विरोध में अदालत में भी गये, परंतु मैट्रो के अधिकारियों ने यह कह कर बात समाप्त कर दी कि समय बद्ध काम के लिये मैट्रो पर ‘ध्वनि प्रदूषण’ के नियम लागू नहीं होते । लगभग एक वर्ष से भी अधिक समय तक उस भयंकर कर्कश आवाज़ को सहने के बाद अब उस आवाज़ में भी सोने की आदत पड गई है । अब तो मुझे यह चिंता सताने लगी है कि जब काम पूरा हो जाने के बाद ये आवाज़ें बंद हो जायेंगी, तब मुझे नींद कैसे आयेगी ? सडकों की चौडाई कम होती चली गई है और मैट्रो के लिये सडक पर जो अवरोधक लगाए गए हैं, वो कहीं भी फ़ैल और सिकुड जाते हैं । इस कारण वाहन चालकों को बहुत ही सतर्क रहना पडता है । अनेक वाहन इस प्रकार के अचानक सिकुडे हुए रास्ते के कारण आपस में टकरा भी जाते हैं ।
दुपहिया वाहन चालक तो कहीं भी और कैसे भी अपने वाहन को घुसा देते हैं । उनके लिये कोई नियम, कानून लागू नहीं होते और मैट्रो के यातायात नियंत्रकों के निर्देशों का पालन तो कम से कम दुपहिया वाहन चालक नहीं ही करते । वो बेचारे अधिक से अधिक सीटी ही बजाते रह जाते हैं । अधिकृत यातायात पुलिस कर्मी और अधिकारी ही जब दुपहिया वाहन चालकों को नियंत्रित नहीं कर पाते, तो बेचारे मैट्रो के यातायात ‘वौलंटीयर’ उनको कैसे नियंत्रित कर सकते हैं ? सडकें कहीं भी, कैसे भी खोद डाली गई हैं और ऐसी असमतल सडकों पर वाहन चलाना किसी सर्कस की कलाबाज़ी से कम नहीं होता । अनेक रास्तों को सुधारा जा रहा था, परंतु वर्तमान स्तिथि कुछ ऐसी है कि यूं लगने लगता है कि रास्तों को सुधारा नहीं, बल्कि बिगाडा जा रहा है । थोडा सा काम करके बीच में ही सडकों को ऊबड-खाबड छोड कर नागरिकों की सतर्कता की परीक्षा क्यों ली जा रही है, यह संबंधित नेता और अधिकारी ही जानते होंगे । अनेक स्थानों पर सडक का आधा हिस्सा कुछ ऊंचा कर दिया गया है, और दूसरा आधा हिस्सा लगभग एक फ़ुट नीचा छोड दिया गया है, जो बहुत ही खतरनाक है । अनेक आधी सडकों पर दोनों तरफ़ का यातायात चलता रहता है और उसी छोटी सी सडक पर वाहन खडे भी कर दिये जाते हैं, लेकिन किसी को कोई चिंता नहीं होती है ।
मैं ऐसी हर जगह पर “आज का दुख, कल का सुख” संदेश पढकर हर दिन उस सुख भरे अदृष्य कल की आशा में सब कुछ सहता रहता हूं । मैं अति कुशल, कर्मशील, दूरदृष्टा, वचन पालक और अति उत्साही नेता नितिन गडकरी जी का प्रशंसक तो हूं, परंतु कभी कभी उनके कुछ वक्तत्व मुझे परेशान कर जाते हैं । अभी उन्होंने कह दिया कि 16 वर्ष के युवा लडके-लडकियों को दुपहिया वाहन चलाने की अनुमति देने का प्रस्ताव है । वैसे बिना अनुमति के भी 13-14 साल के बच्चे स्कूटर और कभी कभी कार भी चलाते हुए दिखाई देते रहते हैं और अनेक बार दुर्घटनाएं भी होती रहती हैं । जिस लापरवाही से अधिकतर युवा लडके-लडकियां वाहन चलाते और यातायात नियमों की धज्जियां उडाते रहते हैं, उस आग में घी डालने का काम 16 वर्ष के युवाओं को वाहन चलाने का अधिकार देने से हो जायेगा । मैंने उनसे निवेदन किया था कि दुपहिया वाहनों की बिक्री को सीमित किया जाये, क्योंकि सडक दुर्घटनाओं में दुपहिया वाहनों का लापरवाही से चलाया जाना एक मुख्य कारण बन गया है ।
ऐसा लगता है कि मंत्री महोदय दुपहिया वाहनों की बिक्री असीमित रूप से बढाने का काम करने के लिये अति उत्साहित होते जा रहे हैं । मैं तो 74वें वर्ष में चल रहा हूं, और मुझे मालूम नहीं कि ईश्वर की तरफ़ से मुझे अभी कितना समय और प्रदान किया गया है; परंतु आज वाला दुख हर दिन देखने और सहने के बाद मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि सुख वाला कल मेरे जीवन काल में आ सकेगा या नहीं । बहरहाल, उम्मीद पर दुनिया कायम है और हम सब को भी उम्मीद करते रहना चाहिये कि सुख भरा कल कभी न कभी अवश्य आयेगा ।
901, केदार
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