नई दिल्ली। एक अहम मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट के तहत दर्ज मामलों में तुरंत गिरफ्तारी न किए जाने के आदेश दिए हैं। इसके अलावा दर्ज होने वाले मामलों में अग्रिम जमानत की भी मंजूरी दे दी है। मामले की सुनवाई करते हुए मंगलवार को अदालत ने कहा कि इस कानून के तहत दर्ज मामलों में तत्काल गिरफ्तारी की बजाय पुलिस को 7 दिन के भीतर जांच करनी चाहिए और फिर आगे ऐक्शन लेना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून के अंतर्गत तत्काल गिरफ्तारी के कड़े प्रावधान को हल्का कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि कई मौकों पर निर्दोष नागरिकों को आरोपी बनाया जा रहा है और सरकारी कर्मचारियों को अपनी ड्यूटी निभाने से डराया जाता है, जबकि यह कानून बनाते समय विधायिका की ऐसी मंशा नहीं थी। मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल और न्यायमूर्ति उदय यू ललित की पीठ ने की।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस कानून के तहत दर्ज मामलों में किसी लोकसेवक या सरकारी कर्मचारी की गिरफ्तारी उसकी नियुक्ति करने वाले प्राधिकार से मंजूरी और गैर लोकसेवक के मामले में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की स्वीकृति से ही की जाएगी, जो उचित मामलों में ऐसा कर सकते हैं। न्यायालय ने कहा कि अग्रिम जमानत नहीं देने का प्रावधान उन परिस्थितयों में लागू नहीं होगा जब पहली नजर में कोई मामला नहीं बनता हो या साफतौर पर मामला झूठा हो। इसका निर्धारण तथ्यों और परिस्थितियों के अनुसार संबंधित अदालत करेगी। इस कानून की धारा18 में इसके प्रावधानों के तहत आरोपी व्यक्ति को अग्रिम जमानत देने पर रोक है।
शीर्ष अदालत ने महाराष्ट्र सरकार में तकनीकी शिक्षा निदेशक डॉ. सुभाष काशीनाथ महाजन को अपने विभाग के दो वरिष्ठ अधिकारियों पर मुकदमा चलाने की अनुमति देने से इंकार करने के कारण इस कानून के तहत आरोपी बनाए जाने के खिलाफ दायर याचिका पर यह व्यवस्था दी। महाजन ने बंबई हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी जिसने उन्हें अग्रिम जमानत देने और उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी रद्द करने से इंकार कर दिया था।