विवादों में रानी की फिल्म, इन्होंने जताई आपत्ति, बोले- खराब हो रही छवि

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नई दिल्ली : रानी मुखर्जी की गिनती फिल्म इंडस्ट्री की टैलेटेंड एक्ट्रेस में होती है। उन्होंने अपने अब तक के करियर में जितनी भी फिल्में दी हैं, उनमें कहानी के साथ-साथ उनकी दमदार अकादारी ने भी लोगों का दिल छुआ है। यही वजह है कि एक्ट्रेस की जब भी कोई मूवी रिलीज होती है, तो उसे देखने के लिए ठीकठाक संख्या में दर्शक थिएटर में मौजूद रहते हैं।

हाल ही में उनकी मूवी ‘मिसेज चटर्जी वर्सेज नॉर्वे’ रिलीज हुई, जिसके रिस्पांस को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि यह फिल्म दर्शकों की हिट लिस्ट में शामिल हो चुकी है। रानी मुखर्जी की फिल्म को जहां सेलेब्स और फैंस ने अपने अनुसार रिव्यू दिया है, वहीं भारत में नॉर्वे के एम्बेसडर हंस जैकोब फ्रैडुलंद ने फिल्म में दिखाए गए दृश्यों को लेकर अपनी बात रखी है।
आशिमा छिब्बर के निर्देशन में बनी ‘मिसेज चटर्जी वर्सेज नॉर्वे’ एक मां की अपने बच्चों के लिए कानूनी जंग की लड़ाई को दिखाती कहानी है। इस फिल्म में रानी, सागरिका चटर्जी के रोल में हैं, जो लगभग चार साल से नॉर्वे में अपने पति और दो बच्चों के साथ रह रही है। उसकी जिंदगी में सब कुछ अच्छा चल रहा होता है कि अचानक एक दिन नॉर्वे की चाइल्ड वेलफेयर सर्विस से तूफान आ जाता है।

भारत में नॉर्वे के एम्बेसडर हंस जैकोब फ्रैडुलंद ने इस फिल्म को फिक्शनल बताते हुए कुछ बातों पर आपत्ति जताई है। इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि मिसेज चटर्जी वर्सेज नॉर्वे फिल्म फैमिली लाइफ में नॉर्वे के विश्वास और विभिन्न संस्कृतियों के प्रति हमारे सम्मान को गलत तरीके से दर्शाता है। बाल कल्याण एक बड़ी जिम्मेदारी का विषय है, जो कभी भी भुगतान या लाभ से प्रेरित नहीं होता है।

उन्होंने आगे कहा, ”चाइल्ड वेल्फेयर केस बहुत आसान नहीं होते। न बच्चों के लिए, न पेरेंट्स के लिए और न ही चाइल्ड वेल्फेयर सर्विस के लिए। वैकल्पिक देखभाल एक बड़ी जिम्मेदारी का विषय है और वैकल्पिक देखभाल के बारे में कोई निर्णय कभी भी भुगतान या लाभ से प्रेरित नहीं होगा। यह फिल्म कल्चर में अंतर को प्राइमरी फैक्टर के तौर पर दिखाती है, जो कि पूरी तरह से गलत है। विशेष मामले के किसी भी विवरण के बारे में जाने बिना, मैं स्पष्ट रूप से इंकार करता हूं कि हाथों से खाना खिलाना और एक ही बिस्तर पर सोना बच्चों को वैकल्पिक देखभाल में रखने का कारण होगा। न ही इस मामले में और न ही किसी और मामले में।

मैं जिस सिस्टम को रिप्रेजेंट करता हूं, उस पर मुझे गर्व है। हम लगातार अपने अनुभव से कुछ नया सीखने और आलोचनाओं को सुनने के लिए तैयार रहते हैं। चाइल्ड वेल्फेयर केस काफी जटिल होते हैं। नार्वे के अधिकारियों के पास सभी चाइल्ड प्रोटेक्शन के मामलों में गोपनीयता और गोपनीयता की सुरक्षा का वैधानिक कर्तव्य है। बच्चों और उनके निजता के अधिकार की रक्षा के लिए सरकार किसी विशिष्ट मामले पर टिप्पणी नहीं करेगी।”

फिल्म में दिखाया गया है कि सागरिका कोलकाता की रहने वाली हैं। वह शादी कर चार साल से अपने पति के साथ नॉर्वे में रह रही हैं। एक दिन नॉर्वे की चाइल्ड वेल्फेयर सर्विस उन पर यह आरोप लगाती है कि वह अपने बच्चों को जबरदस्ती खाना खिलाती हैं। उनके साथ सागरिका का बर्ताव ठीक नहीं है। देखते ही देखते सागरिका से उनके दोनों बच्चे छीन लिए जाते हैं। यहीं से शुरू होती है सागरिका बनीं रानी की कानूनी लड़ाई।