आज के समय में ओला और उबर हमारे यातायात का महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुके हैं| अब हमें जब भी कहीं जाना होता है तो हम पहले ओला और उबर के बारे में सोचते हैं क्योंकि कैब हमें अपनी जगह से लेकर झन जाना हो वहाँ आसानी से पहुँचा देती है। लगातार बेहतर होती सर्विसेज़ के कारण ओला और उबर की डिमांड बढ़ने लगी है और लोग इसके आदी भी होने लगे हैं ख़ासकर उन मेट्रो शहरों में जहां पब्लिक ट्रांसपोर्ट के साधन कम हैं|
लेकिन अब ओला और उबर के ग्राहकों के लिए आ सकती है मुश्किल क्योंकि केंद्र सरकार पीक आवर्स यानी अधिक मांग वाली अवधि में कैब एग्रीगेटर्स को ग्राहकों से बेसिक फेयर से अधिक किराया लेने की इजाजत दे सकती है| जिसका भारी असर कैब का प्रयोग करने वाले ग्राहकों की जेब पर पड़ेगा| दरअसल एग्रीगेटर्स इंडस्ट्री के लिए कुछ नए नियम बनाये जा रहे हैं, जिसका फ़ायदा कैब कम्पनियों को हो सकता है।
कैब कंपनियां डिमांड-सप्लाई को मैनेज करने के लिए सर्ज प्राइसिंग लागू करने के लिए सरकार से कहती आई है| इस विधेयक के लागू हो जाने से यात्रा के लिए ग्राहक को तीन गुना तक ज़्यादा किराया देना पड़ सकता है। इस विधेयक में बताया जा रहा है कि कैब एग्रीगेटर्स सर्ज प्राइसिंग के तहत कितना किराया ग्राहक से ले सकती है| 1 सितम्बर 2019 से लागू मोटर व्हीकल एक्ट के बाद से ही इस प्रस्ताव को डिजिटल इंटरमिडियरी यानी मार्केट मानकर कैब एग्रीगेटर्स के लिए यह प्रस्ताव में लाया जा रहा है| खबरों के अनुसार कर्नाटक देश का पहला राज्य है जिसने कैब एग्रीगेटर्स को रेगुलेट यानी नियमित किया है|