मुंबई बना 'बेटियों' का शहर, लड़कों की अपेक्षा ज़्यादा लड़कियों ने लिया जन्म

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मुंबई: जहां एक तरफ भारत के कई राज्यों में आज भी लड़कियों की भ्रूण में ही हत्या की घटनाएं सामने आ रही हैं, वहीं मुंबई और महाराष्ट्र के कई अन्य भागों में पिछले पांच सालों में लड़कों की अपेक्षा ज़्यादा लड़कियों का जन्म हुआ है. यह ना सिर्फ राज्य के लिए बल्कि पूरे देश के लिए गर्व की बात है.
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 (NHFS) (2015-16) के मुताबिक महाराष्ट्र में जन्म के समय लिंगानुपात का 1000 का आंकड़ा पार हो चुका है. वहीं मुंबई में यह आंकड़ा 1,033 है. आम तौर पर 1,000 लड़कों में 950 लड़कियों का लिंगानुपात सामान्य माना जाता है. ऐसे में मुंबई में 1,033 का सेक्स रेशियो काफी अच्छा है.
महाराष्ट्र के मुंबई, पुणे, नागपुर, औरंगाबाद, भंडारा और अकोला जैसे शहरों में सेक्स रेशियो ने पूरा 1,000 का आंकड़ा छुआ है. सिर्फ कोल्हापुर और पुणे के कुछ इलाकों के अलावा पिछ्ले पांच साल में महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में भी लड़कियों ने लड़कों से ज़्यादा जन्म लिया है. आम तौर पर ऐसा सिर्फ केरल और कुछ उत्तर-पूर्वी राज्यों में ही देखने को मिलता है.
टाइम्स ऑफ इंडिया में दी गयी खबरों के मुताबिक, महाराष्ट्र का वर्धा इस मामले में सबसे आगे है. वर्धा के शहरी इलाकों में यह सेक्स रेशियो 1,266 है और ग्रामीण इलाकों के लिए 1,377 है. अकोला, औरंगाबाद और पुणे में चाइल्ड सेक्स रेशियो 1,068, 1,067 और 1,066 क्रमानुसार हैं. चाइल्ड सेक्स रेशियो के ये आंकड़े लोगों की बदलती विचार धारा को दर्शाते हैं.
लेकिन, हैरानी की बात यह है कि जहां एक तरफ ग्रामीण इलाकों में यह आंकड़े बढ़े हैं, वहीं दूसरी ओर मुंबई के थाने (747), धुले (805), जलगाओं (819) और कोल्हापुर (831) जैसे ‘रिच’ और ‘डेवेलप्ड’ इलाकों में चाइल्ड सेक्स रेशियो अभी भी कम है.
आपको बता दें कि NHFS, केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की तरफ से बड़े पैमाने पर किए जाने वाला एक सर्वे है. यह सर्वे महाराष्ट्र के 27,000 घरों में किया गया था, जिससे राज्य में लोगों की बदलती मानसिकता का पता चलता है. डिस्ट्रिक्ट-लेवल पर इस सर्वे में 700-800 घरों का निरीक्षण किया गया.
लिंगानुपात के बढ़ते आंकड़ों के साथ ही महाराष्ट्र में लड़कियों के शिक्षा के स्तर और उनकी शादी की उम्र में भी बढ़ोत्तरी हुई है. एक दशक पहले 30% के मुकाबले अब 42% महिलायें (15-49 वर्ष) 10 साल तक शिक्षा प्राप्त करती हैं. वहीं 18 साल की उम्र में शादी करने वाली लड़कियों (20-24 वर्ष) की संख्या 39% से घट कर 25% हो गयी है.
हालांकि, यह आंकड़े महाराष्ट्र में परिवार नियोजन के गिरते स्तर को भी दिखाते हैं. एक दशक पहले जहां 67% महिलायें परिवार नियोजन के तरीकों का इस्तेमाल करती थी, वहीं अब यह स्तर घट कर 65% हो गया है. करीब 9.7% महिलायें ऐसी भी हैं जिनके पास गर्भ निरोधक उपाय उपलब्ध ना होने के कारण उन्हें ना चाहते हुए भी गर्भ धारण करना पड़ता है.
पिछ्ले दशक में बिहार और तमिलनाडु में भी इन आंकड़ों में काफी सुधार आया है. वहीं खबरों के मुताबिक हरयाणा, मध्य प्रदेश, कर्नाटका और वेस्ट बंगाल में यह स्तर और आगे फिसल गया है. स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि NHFS-4 के आंकड़ों से ना सिर्फ सरकार को अभी चल रही योजनाओं के प्रभाव का पता चलता है, बल्कि इससे यह जानकारी भी मिलती है कि अभी और किन जगहों पर कौन सी योजनायें लागू करने की ज़रूरत है.