बीती 26 जून को राजकोट में नारन वसोया की गिरफ्तारी ने पूरे गुजरात को हिलाकर रख दिया. उन पर अपने ही बेटे की हत्या करवाने का आरोप है. खबरों के मुताबिक वसोया को लंबे समय से शक था कि उनका 33 साल का बेटा दीपेश उनका नहीं है. आरोप है कि कुछ समय पहले उन्होंने दो लोगों को पांच लाख रु दिए और दीपेश को मरवा दिया.
यह भले ही एक दुर्लभ मामला हो लेकिन, द हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट की मानें तो गुजरात में लोगों का अपने पितृत्व पर संदेह कोई विरली बात नहीं है. खबर के मुताबिक बीते कुछ समय के दौरान आधुनिक तकनीक की उपलब्धता बढ़ने के बाद ऐसे लोग अब पितृत्व परीक्षण के लिए प्रयोगशालाओं (लैब्स) का रुख कर रहे हैं. यही वजह है कि गुजरात में एक के बाद एक डीएनए कलेक्शन सेंटर खुलते जा रहे हैं. मोटा-मोटा अनुमान है कि बीते चार साल में ऐसे 100 सेंटर खुल गए. कई लोकल पैथॉलॉजी लैब्स भी यह सुविधा देने लगी हैं. वे सैंपल लेती हैं और परीक्षण के लिए उन्हें राज्य से बाहर के शहरों में स्थित प्राइवेट डीएनए लैब्स में भेज देती हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक डीएनए लैब्स इंडिया से जुड़े रवि किरण बताते हैं, ‘गुजरात में डीएनए टेस्टिंग की मांग लगातार बढ़ रही है जिसके चलते हमें वहां पर नए कलेक्शन सेंटर खोलने पड़े हैं.’ हैदराबाद स्थित इस लैब के गुजरात में 22 कलेक्शन सेंटर हैं. एक अन्य कलेक्शन सेंटर के कर्मचारी बताते हैं कि जागरूरकता और तकनीक की उपलब्धता के चलते बीते दो साल में पितृत्व परीक्षण के मामलों की संख्या लगभग दुगुनी हो गई है. वे बताते हैं कि सौराष्ट्र और अपेक्षाकृत पिछड़े उत्तरी गुजरात के दूर-दराज के इलाकों से भी लोग उनके यहां आ रहे हैं.
हालांकि इसमें अपनी पत्नी पर संदेह करने वाले लोगों की भूमिका ही नहीं है. बहुत से लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने आईवीएफ तकनीक की मदद से संतान सुख पाया है और अब वे जानना चाहते हैं कि डॉक्टर ने अपना काम ठीक से किया या नहीं. आईवीएफ एक ऐसी तकनीक है जिसमें शुक्राणु और अंडाणु को प्रयोगशाला में मिलाया जाता है और इसके बने भ्रूण को गर्भ में प्रत्यारोपित किया जाता है. गुजरात में आईवीएफ की मदद से माता-पिता बने कई लोग जानना चाहते हैं कि कहीं डॉक्टर ने किसी और का शुक्राणु या अंडाणु तो इस्तेमाल नहीं कर लिया. डीएनए लैब्स के रवि किरण कहते हैं, ‘जिन लोगों ने आईवीएफ पर करीब पांच लाख खर्च कर दिए वे मन की शांति के लिए 13 हजार रु का टेस्ट करवाने के लिए भी तैयार रहते हैं.’
लोगों के ये संदेह निराधार भी नहीं हैं. ऐसे मामले सामने आ चुके हैं जब पितृत्व परीक्षण के बाद पता चला कि फर्टिलिटी क्लीनिक ने अपना काम ठीक से नहीं किया.