स्वर्गवासी फ़िल्मी हस्तियों के आभारी मंच कलाकार, कार्यक्रमों की हो रही भरमार, फलफूल रहा कारोबार

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यह एक कटु सत्य है कि वर्तमान समय में भले ही कुछ हिन्दी फ़िल्मी कलाकार करोडपती और अरबपती बन गये हैं, परंतु आज भी पुराने कलाकारों का नाम और काम याद किया जाता है । उनका नाम ले लेकर आजकल के अनगिनत मंच कलाकार अपने आप को जीवित रखे हुए हैं और अपने तथा अन्य अनेक कलाकारों के परिवार के सदस्यों का भरण-पोषण करते रहते हैं । महान गायक-अभिनेता कुन्दन लाल सहगल से लेकर अभिनेता राजेश खन्ना तक अनेक कलाकार हिन्दी फ़िल्म जगत में ऐसे रहे हैं, जिनके नाम और काम के बल पर आज के अनगिनत कलाकार दाम कमा रहे हैं । यह किसी एक नगर या महानगर की बात नहीं है । हर जगह ऐसे कार्यक्रमों की भीड लग जाया करती है।

महान गायक मोहम्मद रफ़ी के निधन को अभी 31 जुलाई 2019 को 39 वर्ष पूरे हो गये । उनके जन्मदिन और पुण्यतिथि के एक महीने पहले से उनके नाम पर कार्यक्रम आयोजित होने लगते हैं, और लगभग एक महीने बाद तक चलते ही रहते हैं । अपने आप को “वॉइस ऑफ़ मोहम्मद रफ़ी” कहने वाले अनेक नये गायक अपने अपने शहर में कार्यक्रम आयोजित करते रहते हैं । कुछ आयोजक मोहम्मद रफ़ी के पुत्र, पुत्री, दामाद या मोहम्मद रफ़ी के साथ गायक या वादक रहे किसी कलाकार को मुख्य आकर्षण के रूप में आमंत्रित कर लेते हैं । उनके नाम से टिकिट बिक जाते हैं । बाद में मुकेश के नाम पर ऐसे ही कार्यक्रमों का सिलसिला शुरू हो जाता है । फ़िर किशोर कुमार के नाम को उछाल दिया जाता है । कोई कोई आयोजक मोहम्मद रफ़ी-किशोर कुमार; या मोहम्मद रफ़ी-मुकेश के नाम जोडकर भी कार्यक्रम आयोजित कर देते हैं ।

राज कपूर, देवानंद, राजेन्द्र कुमार, मीना कुमारी, नूतन, महमूद, जॉनी वाकर, आदि के नाम पर भी कुछ लोग कार्यक्रम प्रस्तुत करते रहते हैं । फ़िर गीतकारों और संगीत निर्देशकों के नाम चल पडते हैं । शंकर-जयकिशन, नौशाद, ओ0 पी0 नैयर, एस0 डी0 बर्मन, आर0 डी0 बर्मन, शैलेन्द्र, साहिर लुधियानवी, मजरूह सुलतानपुरी आदि की रचनाओं को मंच पर प्रस्तुत कर दिया जाता है । कुछ आयोजक तो जीवित कलाकारों के नाम पर भी कार्यक्रम आयोजित कर डालते हैं । लता मंगेश्कर, आशा भोसले, येसुदास, गुलज़ार, जावेद अख्तर, ए0 आर0 रहमान जैसे प्रसिद्ध नामों का उपयोग ऐसे आयोजक करते रहते हैं । मैंने एक विशेष बात देखी है कि आमतौर पर पचास से अस्सी लोकप्रिय गीतों को सूचीबद्ध करके उनकी तैयारी कर ली जाती है । उन्हीं में से 18 या 20 गीत एक कार्यक्रम में शामिल कर लिये जाते हैं । बदल बदल कर वे ही गीत विभिन्न कार्यक्रमों में रख दिये जाते हैं । कभी फ़िल्मी कव्वाली, कभी शास्त्रीय संगीत पर आधारित फ़िल्मी गीत, कभी बरसात के गीत, कभी बच्चों के फ़िल्मी गीत, कभी आंख या फ़ूल या कोई भी शीर्षक लेकर गीतों का क्रम चलता रहता है ।

जब हर शहर में धन कमाने का यह क्रम ज़ोर शोर से सफ़लता पूर्वक चलने लगा तो दो परिवारों ने अपने परिवार प्रमुख के नाम पर ऐसे आयोजन करने पर रोक लगवा दी । कवि प्रदीप की पुत्री मितुल प्रदीप और जगजीत सिंह की पत्नी चित्रा सिंह ने बिना उनकी अनुमति के, कवि प्रदीप और जगजीत सिंह के नाम पर कोई भी कार्यक्रम आयोजित करने पर रोक लगवा दी । किसी बहुत लोकप्रिय और गुणी कलाकार को श्रद्धांजलि देना एक अलग बात है । परंतु वर्षानुवर्ष कई कई दिन तक यह क्रम चलने लगता है तो श्रद्धांजलि वाली भावना का स्थान व्यावसायिक और व्यापारिक भावना लेने लगती है । हर नगर में आजकल “वॉइस ऑफ़ मुकेश”, “वॉइस ऑफ़ किशोर कुमार”, “वॉइस ऑफ़ लता मंगेश्कर”, “वॉइस ऑफ़ आशा भोसले”, “वॉइस ऑफ़ शमशाद बेगम”, “वॉइस ऑफ़ नूरजहां”, “वॉइस ऑफ़ येसुदास”, “वॉइस ऑफ़ मन्ना डे” कहलाने वाले कलाकार मिल जाते हैं ।

वास्तव में ऐसे सभी कलाकार केवल किसी की नकल करने वाले के रूप में ही अपने आपको प्रस्तुत करते रहते हैं; क्योंकि उनका वास्तविक नाम लोगों को पता ही नहीं होता । मंच संचालकों में भी “वॉइस ऑफ़ अमीन सायानी” कहलाकर अपनी शान दिखाने वाले लोगों की कमी नहीं है । भले ही वे अमीन सायानी जी का नाम अमीन स्यानी या अमीन सयानी ही कहते हों, पर उनके नाम पर अपनी दूकानदारी तो चलाते ही रहते हैं । कुछ वर्ष पूर्व तक इस तरह के कार्यक्रम इतनी बडी संख्या में आयोजित नहीं होते थे, और तब वास्तव में श्रद्धांजलि के रूप में कोई एक आयोजक या कलाकार उस दिन एक कार्यक्रम रख देता था जिस दिन उस महान कलाकार का जन्म हुआ हो या निधन हुआ हो ।

तब श्रोता-दर्शक भी पूरी भावनाओं के साथ उस कार्यक्रम को सुनने के लिये आया करते थे । आजकल ऐसे कार्यक्रमों का एक धारावाहिक क्रम चल पडा है । हाल ही में मैंने पुणे में “ट्रिब्यूट टू लता मंगेश्कर” शीर्षक एक कार्यक्रम का बडा सा विज्ञापन देखा था । वैसे यह सच है कि “ट्रिब्यूट” केवल निधन पर ही आदर देने की क्रिया को नहीं कहा जाता; परंतु आमतौर पर “ट्रिब्यूट” शब्द पढकर या सुनकर किसी के निधन का ही खयाल दिमाग में आ जाता है । कुछ भी हो, मंच कलाकारों की तरफ़ से मैं उन सभी महान स्वर्गवासी फ़िल्मी कलाकारों का आभार मानता हूं, जिनके चले जाने के बाद, आज के कलाकारों को जीवनयापन करने और अपने नाम को जीवित बनाये रखने के लिये उनके नाम और काम का सहारा मिलता रहता है, कार्यक्रमों की भरमार होती रहती है, और उनका “कारोबार” फ़लता-फ़ूलता रहता है ।

(किशन शर्मा– 901, केदार, यशोधाम एन्क्लेव, प्रशांत नगर, नागपुर – 440015; मोबाइल – 8805001042)