नई दिल्ली। मॉनसून सत्र के पहले ही दिन विपक्ष ने मोदी सरकार के खिलाफ सदन में अविश्वास प्रस्ताव पेश किया, जिसे मंजूर करते हुए लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन ने चर्चा के लिए शुक्रवार का वक्त दिया। इसके बाद लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा होगी और सरकार के पक्ष और विपक्ष में वोटिंग की जाएगी।
देश की संसद में 20 जुलाई को पूरे 15 साल बाद कोई सरकार अविश्वास प्रस्ताव का सामना करेगी। सत्तारूढ़ मोदी सरकार को अपने 4 साल में किसी अविश्वास प्रस्ताव का सामना नहीं करना पड़ा। यही नहीं अपने दम पर पर पूर्ण बहुमत ना होने के बावजूद मनमोहन सिंह सरकार को भी अपने 10 साल में एक बार भी अविश्वास प्रस्ताव का सामना नहीं करना पड़ा था। पिछला अविश्वास प्रस्ताव नवंबर 2003 में अटल बिहारी वाजपेई सरकार के खिलाफ आया था, हालांकि उस अविश्वास प्रस्ताव में भी सरकार कामयाब रही थी।
संसद में शुक्रवार को पेश होने वाले अविश्वास प्रस्ताव को लेकर विपक्ष इस बात पर खुश है कि उसे सदन के अंदर विपक्षी एकता दिखाने का अच्छा मौका मिल जाएगा। हालांकि, कांग्रेस इस बात पर खुश हो सकती है कि उसे NDA में दरार डालने में कामयाबी मिल गयी है। क्योंकि यह अविश्वास प्रस्ताव उस तेलुगू देशम पार्टी की ओर से आया है जो कुछ महीने पहले तक एनडीए सरकार में भागीदार हुआ करती थी। भारतीय जनता पार्टी की सबसे पुरानी सहयोगी शिवसेना भी इस बार भाजपा के खिलाफ खड़ी होगी। इसके साथ ही विपक्ष के बड़े नेता देश के प्रमुख मुद्दों पर एक-एक कर सरकार को घेरने का अवसर भी पा जाएंगे, लेकिन विपक्ष के पास जिस तरह का संख्याबल है, उसमें बहुत मुश्किल है कि वह अपना अविश्वास प्रस्ताव पास करा सके।
इससे पूर्व बुधवार को मॉनसून सत्र की शुरुआत से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मीडिया से बात करते हुए कहा था कि इस सत्र में देशहित के कई मसलों पर निर्णय होना जरूरी है।