गोविंद…यानी मेरे प्रिय भगवान का नाम…। उम्र के हिसाब से भी सम्मान बनता है। एक प्रेम, अलग और साथ में चंद भी…। सोने पर सुहागा। पर मुझे लगता है दोनों ही नौकरी लगवाते वक्त सोए नहीं होंगे! बेचारे युवाओं के भविष्य को लेकर चिंतत जो होंगे…। उन्होंने कोई बुरा थोड़े ही किया…उनकी नौकरी लगाई, जिनके आका करते कुछ नहीं हैं…थोड़ा-बहुत सरकार देती है। उसी से अपना बिजनस चलाते हैं बेचारे…।
वो आपकी और हमारी गलती है, जिन्होंने उनको यहां तक पहुंचाया…। उनके पास भी कुछ नहीं है। दो-तीन महंगी-महंगी गाड़िया होंगी। बड़े-बड़े महलनुमा छोटे-छोटे घर होंगे। करोड़ों के टर्नओवर का बिजनस होगा…। कुछ बेनामी संपत्तियां होंगी…और थोड़े होगा बेचारों के पास…।
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी….हरे राम ये मैंने क्या कह दिया…असल में मैं गोविंद जी का भक्त हूं ना…आपके वाले का नहीं, ठाकुर जी का हूं…। उनकी भी क्या गलती है। उनको हमने और आपे ने वोट दिए तो वो जीत गए। पार्टी ने कहा बुजुर्ग हैं…कुछ बना दो। हमारी तरह ज्यादा तो नहीं लूट सकेंगे। उनको क्या पता कि वो पीछे वाले दरवाज से घर भर लेंगे…। बात उनकी भी सही है…। आपके पिताजी भी तो सोचते होंगे कि उनका बेटा-ब्वारी नौकरी लगें। उन्होंने भी वही सोचा…।
प्रेम…ऐसा शब्द जिसके बारे में सुनकर ही मन आनंदित हो उठता है….। लेकिन…प्रेम अब बदल गया है। प्रेम की परिभाषा बदल गई है। उनका कहना है कि अगर पहले वालों ने किया तो हम भी करेंगे…। प्रेम नहीं…आप सही समझे हैं। वो तो पायो जी मैंने राम रतन धन पायो…की तर्ज पर नौकरियों से प्यार कर बैठे….। अपना समझा और बांट दिया।
इसमें बुरा क्या है…सत्ता उनकी है, राज्य हमारा है। उन्होंने कुर्सी पर बैठकर अपनी जागीर समझ लिया…। बुरे वो नहीं, हम हैं, जो उनको बार-बार सत्तासीन कर रहे है। अब जिन बेचारों को नौकरी मिली। किसी ने नेता जी के लिए कुछ किया होगा? किसी ने कुछ लाया होगा? किसी ने कुछ कमाया होगा? किसी ने कहीं से उठाया होगा? अब इनको इनाम तो मिलना ही चाहिए…भर-भर कर…। तभी तो प्रेम कह रहे हैं प्रेम से कि हां…किया…किया…किया। गोविंद कह रहें है लगाया…लगाया…लगाया…।