वीवीआईपी कल्चर (भाग 1)

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प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी अनेक बार यह कह चुके हैं कि राजनेताओं, विशेषकर विधायक, सांसद, मंत्री गण को वी0वी0आई0पी0 कल्चर का त्याग करना चाहिये और सामान्य सेवक बनकर जन जन के हित में काम करना चाहिये । परंतु, क्या इस कथन या सुझाव का कहीं कोई असर दिखाई देता है ? केवल और केवल चुनाव के दौरान कुछ दिन के लिये पैदल चलने, गंदी-संकरी गलियों में गंदे बच्चों को नकली हंसी के साथ गोदी में उठाने, सभी गरीब लोगों के पैर छूने, और हाथ जोडते हुए वोट की भीख मांगने का नाटक करने में माहिर राजनेतागण, चुनाव जीतकर सत्ता में आते ही अकडकर उन्हीं लोगों से दूर हो जाते हैं, जिनके वोट ने उन्हें सत्ता दिलवाई । चारों तरफ़ सुरक्षा कर्मियों का घेरा, घर और दफ़्तर में चाटुकारों की फ़ौज, सहायकों और सेवकों की भारी भीड, और बडी बडी देशी-विदेशी कारों के काफ़िले में नेता जी अपने वास्तविक “मालिकों” से दूरी बनाते चले जाते हैं । उनका जन्मदिन आने वाला हो या विवाह की वर्षगांठ का दिवस आने वाला हो; उनके सहायकगण अनगिनत अमीर लोगों को फ़ोन पर याद दिलाना शुरू कर देते हैं । उनके बच्चे से लेकर कुत्ते तक के जन्मदिन धूमधाम से मनाये जाते हैं । मतलब परस्त स्वार्थी लोग अपने अपने हित में कुछ आदेश प्राप्त कर लेने की जुगाड में नकली हंसी चेहरे पर दिखाते हुए, भारी भरकम भेंट लेकर हाज़िर हो जाते हैं । दिवाली, दशहरा, नया वर्ष, क्रिसमस, ईद आदि त्यौहारों पर भी कीमती भेंट चढाने का सिलसिला जारी रखा जाता है । कार ड्राइवर, साहब की कार की वातानुकूलन मशीन कम से कम एक-दो घंटे पहले ही शुरू कर देते हैं, ताकि साहब को एक क्षण भी गर्मी न लगे । उनके कार्यालय की वातानुकूलन मशीन भी साहब आयें या न आयें, सुबह से ही शुरू कर दी जाती है । साहब को कब पानी, ठंडा पेय, चाय, मेवा, फ़ल, भोजन आदि दिया जाना है, इसकी पूरी जानकारी सभी सेवकगण और सहायकगण को होती ही है और उन सबको इसकी तैयारी हर क्षण रखनी ही पडती है । चाहे घर हो, दफ़्तर हो, या कोई भी जगह हो, जहां भी नेता जी को जाना हो, वहां पहले से पूरी तैयारी कर ली जाती है । बन्दूकधारी अनेक सुरक्षा कर्मियों की भीड में नेता जी वास्तव में अनेक बार दिखाई भी नहीं देते । बिना सुरक्षा कर्मियों के कोई नेता कहीं जाता ही नहीं । वे ही लोग, जिनके पैर छूकर, जिनके सामने हाथ जोडकर, जिनसे वोट की भीख मांगकर ये नेतागण “नेता” बनते हैं, उन्हीं से इन नेतागणों को “जान का खतरा” महसूस होने लगता है । चूंकि एकबार नेता बनने के बाद आमतौर पर पांच वर्ष तक उन्हें सारी सुख सुविधायें मुफ़्त में मिलती रहती हैं, इसलिये वे हर क्षण इन सुविधाओं का दुरुपयोग करने में व्यस्त होते रहते हैं । मंत्रालय की अधिकृत कारें, विभागों की अनगिनत कारें, अनेक स्वार्थी लोगों के वाहन उनकी सेवा में लगे रहते हैं और नेता जी स्वयं, उनके परिवार के सभी सदस्य, उनके रिश्तेदार, उनके मित्र, उनके सहायक, उनके सेवक, यहां तक कि उनके कुत्ते भी इन वाहनों का भरपूर दुरुपयोग करते ही रहते हैं । विदेश के अनेक प्रधान मंत्री भी सुरक्षा कर्मियों के बिना, स्वयं साइकिल पर बाज़ार और अपने कार्यालय तक चले जाते हैं, परंतु भारत के नेतागण एक कदम भी पैदल नहीं चल सकते । मैंने स्वयं देखा था कि भोपाल रेलवे स्टेशन पर एक बडे भारी भरकम मंत्री जी की सुविधा के लिये उनको लाने वाली रेलगाडी को दो नम्बर के स्थान पर एक नम्बर के प्लेटफ़ार्म पर लाया गया, और प्लेटफ़ार्म पर जहां उनका डिब्बा आने वाला था, वहीं सारे उच्च अधिकारी उनकी विशेष कार के साथ उपस्थित थे । मैंने जिज्ञासावश एक अधिकारी से इस बारे में पूछ लिया तो उसने बताया कि पिछली बार कार प्लेटफ़ार्म पर नहीं लाई गई थी तो कुछ अधिकारियों के तबादले कर दिये गये थे और एक अधिकारी को निलम्बित कर दिया गया था । एक नम्बर प्लेटफ़ार्म पर आने वाली रेलगाडी को दो नम्बर पर भेज दिया गया और सभी बच्चे, युवा, वृद्ध, अपंग, महिला और पुरुष यात्री अपने अपने भारी सामान के साथ एक नम्बर से दो नम्बर की तरफ़ भागने के लिये मजबूर कर दिये गये । केवल एक दिन के लिये भी कोई “नेता” बन गया, तो जीवन भर मुफ़्त में यात्रा करने, पेंशन की भारी रकम हर महीने प्राप्त करने, और कभी कभी सरकारी आवास में रहने तक की सारी सुवाधाओं का भरपूर लाभ उठाने से कोई चूकता नहीं । दूसरों की हर छोटी-बडी सुविधा पर सकारात्मक निर्णय लेने से पहले लम्बी बहस करने वाले नेतागण, स्वयं अपने वेतन और भत्तों तथा सुविधाओं को बढाने आदि की मांग को एक क्षण में बिना किसी विरोध के मंज़ूर कर देते हैं । उस समय कोई भी दल किसी प्रकार का विरोध नहीं करता ।

 

किशन शर्मा, 901, केदार, यशोधाम एन्क्लेव,

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