सड़क यातायात के नियम मानता ही कौन है- किशन शर्मा

0
172

केन्द्रीय सडक यातायात मंत्री नितिन गडकरी जी ने सारे देश में सडकों और उड्डान पुलों के निर्माण कार्य को विशेष रूप से बहुत प्रगति पथ पर ला दिया है । वे जब महाराष्ट्र के सार्वजनिक कार्य मंत्री थे, तभी से उनका सारा ध्यान सडकों को सुधारने और नई सडकों को बनवाने में लगा रहा है । फ़िर उन्होंने उड्डान पुलों के निर्माण को पहले महाराष्ट्र में और फ़िर पूरे देश में प्राथमिकता पर शुरू कर दिया । देश भर में उनको उनके इस कार्य के लिये अलग अलग नाम से पुकारा जाने लगा । आम तौर पर सभी लोगों ने उनकी भरपूर प्रशंसा की है ।

उनके विरोधी भी इस मामले में उनकी प्रशंसा करते रहे हैं । यह अलग बात है कि अनेक नेताओं और अधिकारियों की मिली भगत से भ्रष्टाचार भी पनपता रहा और धीरे धीरे सडकों तथा उड्डान पुलों का निर्माण निचले स्तर का होने लगा । बनाए जाने के कुछ ही समय में सडकें उखडने और उनमें गड्ढे पडने का क्रम चल पडा । इस पर नितिन गडकरी जी का कोई नियंत्रण नहीं रह गया है । जो लोग दावा कर रहे थे कि अब “न खाऊंगा, न खाने दूंगा” वे शायद चुप ही हो गये हैं । भ्रष्टाचार कहीं भी कम नहीं हो सका है, बल्कि कुछ बढता ही जा रहा है । जब सभी तरफ़ भ्रष्टाचार बढने लगा है तो पुलिस विभाग, विशेषकर यातायात पुलिस विभाग के अधिकारी और कर्मचारी क्यों पीछे रह जायें ।

यातायात नियमों की धज्जियां हर दिन, हर जगह, देश भर में उडाई जा रही हैं । किसी को इस मामले की चिंता नहीं है । पुलिस विभाग के लगभग हर अधिकारी-कर्मचारी को हर महीने उसके हिस्से का “लिफ़ाफ़ा” मिलता रहता है और वे लोग इसी में खुश और संतुष्ट रहने के आदी हो गये हैं । अधिकांश पुलिस स्टेशनों के बाहर ही यातायात नियमों की धज्जियां उडती रहती हैं । उच्च अधिकारियों के कार्यालयों के बाहर भी लोग सारे नियम कानूनों को धता बताते हुए निर्भीक चलते रहते हैं । मैं हर दिन अलग अलग स्थानों पर यही हाल देखता रहता हूं और कानून तोडने वालों की हिम्मत पर मुस्कुराता रहता हूं । मेरा यह दृढ विश्वास हो गया है कि केवल नागपुर में ही नहीं, पूरे देश में सडक यातायात को अब कोई भी अधिकारी-कर्मचारी सुधार नहीं सकता ।

अगर पूरी ईमानदारी के साथ पुलिस अधिकारी-कर्मचारी कठोरता के साथ नियमों के पालन करवाने का कार्य शुरू कर दें, और अपनी जेब का ध्यान छोडकर सरकार की जेब को भरने की तरफ़ ही ध्यान देने लगें; तो प्रतिदिन करोडों रुपये सरकारी खज़ाने में जमा होने लगेंगे और फ़िर डर के कारण वाहन चालक भी अपनी आदतें सुधारने लगेंगे । लेकिन यह केवल मेरी भ्रमित कल्पना ही है । वास्तव में ऐसा कुछ हो ही नहीं सकता । एक मज़ेदार बात मैंने देखी है कि अधिकांश उड्डान पुलों पर गति सीमा के फ़लक लगे रहते हैं । ज़्यादातर जगहों पर अधिकतम गति सीमा केवल 50 किलोमीटर प्रति घंटा लिखी रहती है । मुझ जैसा मूर्ख ही उस गति सीमा का पालन करते हुए, सब वाहनों से सबसे पीछे चलता रहता होगा ।

उड्डान पुलों और सडकों पर अधिकांश दोपहिया, तीन पहिया, और चार पहिया वाहन कम से कम 80 से 100 की रफ़्तार से ही दौडते रहते हैं । कुछ बहुत बहादुर लोग 120 से 150 तक की रफ़्तार से भी “उडते” रहते हैं । पुलिस के वाहन, सरकारी अधिकारियों के वाहन, नेताओं के वाहन, मंत्रियों के वाहन, मुख्य मंत्री-उप मुख्य मंत्री के वाहन, यहां तक कि राज्यपाल महोदय के वाहन भी सारे नियम कानूनों की अनदेखी करते हुए “उडते” ही रहते हैं । हां, कुछ भाग्यहीन सामान्य लोग अवश्य पुलिस कर्मी द्वारा पकड लिये जाते हैं, गति सीमा से तेज़ वाहन चलाने या यातायात नियमों को तोडने के जुर्म में । कभी कभी जुर्माना भरना पड जाता है, क्योंकि हर पुलिस कर्मी को एक निर्धारित संख्या में “केस” भी दर्ज करने ही होते हैं । अन्यथा “आपस में समझौता” हो ही जाता है । क्या कोई अधिकारी यह बता सकता है कि उड्डान पुलों या सडकों पर जिस अधिकतम गति सीमा के, ‘नो एंट्री’ के, ‘नो पार्किंग’ आदि के फ़लक लगे होते हैं, उनका पालन सभी वाहनों के लिये अनिवार्य रूप से किया जाता है और यदि “हां” तो कितने नेताओं, मंत्रियों आदि के वाहनों के चालान इस नियम के अंतर्गत किये गये हैं । मैं तो केवल इतना ही जानता हूं कि चाहे नेतागण हों या अधिकारीगण, और चाहे आजकल के सामान्य नागरिकगण ही हों; पूरे भारत देश में सडक यातायात के नियम मानता ही कौन है ।

किशन शर्मा, 901, केदार, यशोधाम एन्क्लेव, प्रशांत नगर, नागपुर-440015; मोबाइल-8805001042